शिमला। इंग्लैंड में हुए आईसीसी महिला वर्ल्ड कप के फाइनल में हारने के बाद इंडियन टीम के ड्रेसिंग रूम में पांच बजे से शाम आठ बजे तक (इंग्लैड का समय) पूरी तरह से सन्नाटा पसर गया था। उदासी का आलम ये था कि किसी ने किसी से एक भी शब्द नहीं बोला था।चहुं ओर चुप्पी थी।कोई कुछ नहीं कर रहा था।
ये खुलासा आईसीसी महिला वर्ल्ड कप के फाइनल में भारतीय टीम की विकेट कीपर सुषमा वर्मा ने राजधानी शिमला में अभिनंदन समारोह में किया। वो बोली, ‘हम ठीक नहीं खेलें। बहुत बुरा लग रहा था कि हम इतना क्लोज मैच हार गए।‘
जिला शिमला क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से आयोजित इस अभिनंदन समारोह में अंतराष्ट्रीय महिला व पुरूष क्रिकेट में प्रदेश की इस पहली खिलाड़ी ने कहा कि ‘ हम सब बहुत उदास हो गए थे, हमें लगा कि हमने बहुत कुछ खो दिया।‘ वहां काम करने वाले लोगों ने कहा कि तुम्हें नहीं पता कि तुमने क्या कर दिया हैं। ।आप लोगों को खुश होना चाहिए।‘ जब आप अपने देश जाओगे तो आपको पता चलेगा कि आप लोगों ने क्या कर दिया हैं।
सुषमा ने कहा कि वो बिलकुल सही थे। जब हम मुबंई पहुंचे तो जिस तरह का स्वागत हुआ वो लाजवाब था व हमें तब लगा कि हमने क्या कर दिया।‘
हालांकि फाइनल में हार का गम वो अपने जेहन से अलग नहीं कर पाई। जब ग्रैंड होटल के हॉल में शिमला कि युवा क्रिकेटरों व जिला शिमला क्रिकेट एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियों से उनका अभिनंदन किया तो वो विनम्रता से बोली, ‘हम इतना डिजर्व नहीं करते, फिर भी इस अभिनंदन के धन्यवाद।‘
17 साल की उम्र में क्रिकेट की दुनिया में कदम रखने वाली जिला शिमला के सुन्नी के ये महिला क्रिकेटर दुनिया की बेस्ट विकेट कीपरों में शुमार हैं।
वो टीम में विकेटकीपर कैसे बनी,इस बावत भी इस महिला खिलाड़ी ने मासूमियत में दिलचस्प वाक्या सुनाया। वो बोली,’जब वो अकादमी में गई तो उन्हें नहीं मालूम था कि गेंदबाजी पूरी बाजू घुमाकर करनी होती थी।ये उन्हें वहीं पता चला।‘ वो सीधे तेजी से गेंद फेंकती थी। लेकिन इस तरह गेंदबाजी तो होती नहीं। तो गेंदबाजी छोड़नी पड़ी ।उस समय चौके- छक्के भी ज्यादा नहीं लग रहे थे। तब और क्या बचा था ,बस विकेटकीपिंग ।तो विकेट कीपर बन गईं।‘
अपने दादा जो खुद वालीबॉल के अच्छे अच्छे खिलाड़ी थे, के अलावा एडम गिलक्रिस्ट व सचिन तेंदुलकर को प्रेरणा स्त्रोत मानने वाली शिमला जिला की इस अंतराष्ट्रीय महिला क्रिकेटर ने कहा कि अब वो विरोट कोहली व महेंद्र सिंह धोनी के नक्शेकदम पर हैं।
राजधानी के पोर्टमोर स्कूल में पढ़ी सुषमा ने कहा कि उनके सबसे बड़े रोल मॉडल तो उनके दादा हैं।उन्हीं की प्रेरणा से वो क्रिकेट की दुनियां में हैं। वह बोली,जब न्यूजीलैंड से मैच होते थे वो दादा के साथ सुबह तीन बजे क्रिकेट मैच की कमेंटरी सुनने उठ जाती थी। फिर खेलों को लेकर बातें होती थी।
उन्होंने कहा कि पोर्टमोर स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई करने के बाद ये तो लग गया था कि पढ़ाई होने वाली नहीं हैं।चूंकि मैं पहले से ही हैंडबाल व वालीबॉल खेलती थी। ऐसे में सोचा कि क्रिकेट खेला जाए। तो 2009 में एचपीसीए की धर्मशाला में रेजिडेंशियल अकादमी में दाखिला ले लिया।
सुषमा वर्मा ने कहा कि वो दो सालों से बाहर ही हैं।रेलवे में तैनात सुषमा वर्मा ने हिमाचल सरकार की ओर से उन्हें ऑफर की गई डीएसपीकी पोस्ट की पेशकश पर कहा कि वो पहले से ही रेलवे में हैं व पांच साल का कांट्रेक्ट हैं। वो घर जाकर इस बावत अपने परिजनों से विमर्श कर फैसला करेंगी। वो बोली,वो अभी अपने घर सुन्नी नहीं पहुंची हैं।
नई प्रतिभाओं को सफलता के संदेश को लेकर उन्होंने कहा कि उनके पास ऐसा कोई मंत्र तो नहीं हैं।वो बोली, ‘एक बार रूटीन बन गया तो उसे किसी भी कीमत पर नहीं टूटने नहीं देना चाहिए।अगर सुबह योग करना हैं तो करना ही हैं, चाहे कुछ भी हो जाए।शाम को नौ बजे सोना हैं तो सोना ही हैं।दृढ निश्चय व हार्डवर्क से संभव हैं।हार्डवर्क यानि क्वालिटी हार्डवर्क‘।
अब सुविधाओं की इतनी कमी नहीं हैं।उन्होंने कहा कि ये जानकर उन्हें अच्छा लगा कि उनके बाद भी शिमला से कई खिलाड़ी आगे आ रहे हैं। वो स्टेट के लिए खेलें, इंडिया के लिए खेलें ये अच्छी बात हैं।उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो अंतराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में भारतीय टीम की ओर से खलेंगी।लेकिन वो आज टीम का हिस्सा हैं।
इस मौके पर जिला क्रिकेट एसोसिएशन ने उनके नाम से साल में बेस्ट क्रिकेटर के चयन के लिए सुषमा वर्मा रनिंग ट्राफी देने का एलान किया व कहा कि इसके साथ 11 हजार रुयए ईनाम भी दिया जाएगा।गुम्मा स्टेडियम में एक पैवेलियन का नाम भी सुषमा वर्मा के नाम पर रखा गया हैं।
जिला शिमला क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र ठाकुर, प्रेस सचिव मोहित सूद समेत एसोसिएशन के कई पदाधिकारी इस मौके पर मौजूद रहे।
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