शिमला। देश के नामी उद्योगपति गौतम अदाणी की कंपनी ने जिस विदेशी कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी की ओर से 9 हजार करोड़ के 960 मेगावाट के प्रोजेक्ट को हासिल करने के बाद 280 करोड़ रुपए का अपफ्रंट मनी जमा कराया था उस विदेशी कंपनी के खिलाफ तत्कालीन भाजपा की मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल व अब कांग्रेसी सीएम वीरभद्र की सरकारें 2008 से लेकर अब तक चार सौ बीसी का मुकदमा दर्ज नहीं कर रही हैं। इस 9 हजार करोड़ के मेगा प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिए ब्रेकल के बाद अंबाणी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर नामक कंपनी की बोली दूसरे नंबर पर रही थी। अब भी सचिवालय के बड़े बाबू इस मामले में गजब के गुल दिखाने पर उतारू हैं।
याद रहे कि पुलिस जांच में ब्रेकल के खिलाफ चार सौ बीसी के तथ्य सामने आए थे। ब्रेकल को आवंटित इस प्रोजेक्ट के आवंटन को 2009 में प्रदेश हाईकोर्ट ने रदद कर दिया था। सरकार ने ब्रेकल कंपनी की ओर बतौर अपफ्रंट मनी लिया 280 करोड़ भी जब्त नहीं किया जबकि प्री इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट व इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट की शर्तों के मुताबिक ये पैसा जब्त किया जाना था। इस पैसे को अदाणी ग्रुप की कंपनी ने जमा कराया था।आवंटन रदद होने के बाद 2009 से 2016 तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहा। इस बीच वीरभद्र सरकार ने 2015 में इस प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने का अजीब फैसला लिया। और लेकिन 2016 में सुप्रीम कोर्ट से केस वापस लेने के बाद रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने भी इस प्रोजेक्ट को लेने से इंकार कर दिया।
ब्रेकल की ओर से गलत तथ्य देकर प्रोजेक्ट हासिल करने की वजह से इसके आवंटन के रदद हो जाने से प्रदेश सरकार के खजाने को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने 2713 करोड़ रुपए के जुर्माने का नोटिस ब्रेकल को भेजा था।। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में बड़ा कांड करते हुए इस नोटिस को वापस ले लिया और अदाणी ग्रुप की कपंनी को 280 करोड़ रुपए लौटाने का फैसला ले लिया।इस तरह सरकार ने प्रदेश के खजाने को तीन हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाने का कांड कर दिया। चूंकि कांग्रेस व भाजपा की सरकारें इस कांड में पूरी तरह से शामिल रही हैं तो कोई जुबान नहीं खोल रहा हैं। जबकि तीसरा विकल्प आम आदमी पार्टी यहां उभरने से पहले ही तबाह हो गई हैं। वामपंथी पहले ही मजबूत नहीं हैं। जितने हैं भी वो भी जुबान नहीं खोलते हैं। ऐसे में कारामात दिखाने वालों के मजे हैं।
FIR को लेकर ये हैं सरकार की करतूतें
विजीलेंस विभाग ने 17 जून 2008 को प्रारंभिक जांच करने के बाद ब्रेकल को आवंटित किए गए इस प्रोजेक्ट में ब्रेकल की ओर से दिखाए गए कारनामों को लेकर सरकार से नियमित एफआईआर दर्ज करनी की सिफारिश की थी। लेकिन तब धूमल सरकार ने कहा था कि विजीलेंस जांच जारी रखेगी। इसके बाद फरवरी 2010 में एडीजीपी विजीलेंस की ओर से तत्कालीन आईजी विजीलेंस(अब डीजीपी होमगार्ड) सीताराम मरड़ी ने तत्कालीन प्रधान सचिव गृह को चिटठी लिख कर नियमित एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी। इसके बाद 2011 में भी मंजूरी मांगी गई। लेकिन तक की धूमल सरकार ने 9 हजार करोड़ के इस प्रोजेक्ट से जुड़े खेल में एफआईआर दर्ज करने की इजाजत नहीं दी। ये कानूनी राय मिली कि मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं, फैसले का इंतजार किया जाए। ये राय कितनी कानूनी व गैरकानूनी थी, ये अलग मामला हैं।
बहरहाल18 जुलाई 2016 को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली तो विजीलेंस ने दोबारा सरकार से ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआई आर दर्ज करने की मंजूरी मांगी।लेकिन कुछ नहीं हुआ।इसके बाद विजीलेंस ने दोबारा रिमांइडर दिया तब गृह विभाग, बिजली विभाग,एनर्जी निदेशालय और कानून विभाग हरकत में आया। 31 मई 2017 को अतिरिक्त मुख्य सचिव पॉवर ने डायरेक्टर एनर्जी को निर्देश दिए कि वो कानून विभाग से सलाह कर अपनी राय भेजें।
अब 31 मई से लेकर अब तक फाइलें सचिवालय में इधर से उधर सरक रही हैं।मजेदार बात है ये है कि अगर प्रारंभिक जांच में पृथम दृष्टया मामला बनता हैं तो पुलिस अफसर स्वयं एफआईआर दर्ज कर सकता हैं। चूंकि ये मामला हाईप्रोफाइल हैं व इस प्रोजेक्ट से देश के टॉप उद्योगपति अंबाणी व अदाणी की कंपनियां जुड़ी हुई थी सो खाकी वालों ने 2008 से लेकर अब तक खुद एफआईआर नहीं की बल्कि मामले को सरकार के नौकरशाहों को सरका दिया जाता रहा हैं।खाकी और बगैर खाकी के टॉप बाबूओं के खेल अजीब हैं।
इस मसले पर विजीलेंस के डीजीपी एसबी नेगी का पक्ष जानना चाहा तो उनके कार्यालय से बताया गया कि वो कार्यालय से बाहर हैं।विजीलेंस के आईजी अरविंद शारदा ने कहा कि मामला सरकार को भेजा गया हैं व अभी मंजूरी नहीं मिली हैं।ये पूछने पर कि जब प्रारंभिक जांच में पृथम दृष्टया तथ्य सामने आ गए हैं तो सरकार से मंजूरी लेने की जरूररत कहां हैं ,पुलिस अफसर खुद ही एफआईआर दर्ज कर सकता हैं।शारदा ने कहा कि अगर गैजेटिड अफसर शामिल हो तो एफआईआर दर्ज करने के लिए भी सरकार की मंजूरी की जरूरत होती हैं। क्या गैजेटिड अफसर भी इस मामले में शामिल हैं, इस पर वो बोले कि उन्हें इस वक्त मामले की पृष्ठभमि ऑफ हैंड याद नहीं हैं।संभवत: आईजी शारदा समझ गए कि उन्हें क्या बोलना हैं।
हालांकि इस मसले पर एडिशनल सेक्रेटरी लॉ उग्र सेन नेगी से ये पूछने पर कि क्या लॉ विभाग ने ब्रेकल के खिलाफ चार सौ बीसी का मुकदमा चलाने बावत निदेशक एनर्जी की चिटठी पर राय दे दी हैं।उन्होंने कहा कि ये मामला उनके पास नही आया हैं,उन्हें इस बावत कुछ भी मालूम नहीं हैं।(चूंकि प्रधान सचिव लॉ,ज्वाइंट सचिव लॉ कार्यालय में नहीं थे,सो एडिशनल सेक्रेटरी से पूछा गया था।)
बहरहाल ,खाकी वाले बाबूओं ने खुद अपने स्तर पर एफआइआर दर्ज नहीं की और मामला सचिवालय के बड़े बाबूओं को भेज दिया। सचिवालय के बड़े बाबू यूं तो इस मामले में 2006 में जब से ये 9 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को आवंटित हुआ था तभी से खेल खेल रहे हैं। साथ में तत्कालीन वीरभद्र सरकार,उसके बाद की धूमल सरकार और अब की वीरभद्र सरकार के खेल चौंकाने वाले रहे हैं।
बाबूओं की ओर से यूं खेला जा रहा खेल
दस्तावेजों के मुताबिक 12 सितंबर 2016 को प्रिंसिपल सेक्रेटरी गृह ने अतिरिक्त मुख्य सचिव पॉवर को विजीलेंस के 15 सितंबर 2011 के लेटर का हवाला देकर लिखा कि 9 नवंबर 2011 को ला विभाग ने सुप्रीम कोर्ट का फाइनल आउटकम आने तक इंतजार करने की राय दी थी ।अब 16 अगस्त 2016 को बताया गया है कि 18 जुलाई 2016 को देश के टॉप उद्योगपति अंबाणी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने याचिका वापस ले ली है।ऐसे में अब एफआईआर बावत विजीलेंस के आग्रह पर ला विभाग से मश्विरा कर पुनर्विचार करे,व उसके मुताबिक इस विभाग को जल्द से जल्द अवगत कराए।
निदेशालय एनर्जी ने मामला कानून विभाग को भेज दिया। कानून विभाग ने इस पर सीधी राय न देकर मामले को दोबारा निदेशालय एनर्जी को भेज दिया कि वो ये बताएं कि किन बिंदुओं पर कानून विभाग की राय चाहिए। इसके अलावा लॉ विभाग ने ये भी कहा कि पुलिस अफसर खुद ही इस मामले में एफआईआर दर्ज कर सकते हैं।लॉ विभाग की राय की जरूरत नहीं हैं। हालांकि ये भी दिलचस्प हैं कि कानून विभाग के पास पूरा केस है व वो इस तरह स्पेसिफिक बिंदुओं को चिन्हित करने की बात कर रहा हैं। बहरहाल मामला कानून विभाग और अतिरिक्त मुख्य सचिव पॉवर के पास लटका हुआ हैं।
यहां ये दिलचस् हैं कि पॉवर विभाग व निदेशालय एनर्जी ने इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल कारपोरशन को आवंटित किया था। उन्हें ही ब्रेकल के सारे दस्तावेज जांचने थे।संभवत: उन्होंने जांचे भी होंगे। लेकिन 2009 में अपने फैसले में हिमाचल हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुपता(अब सुप्रीम कोर्ट के जज) व जस्टिस वी के आहुजा (अब सेवानिवृत) की ,खंडपीठ ने इन विभागों व ब्रेकल कारपोरशन के कारनामों की कलई खोल कर रख दी। ऐसे में कानूनविदों की मानें तो पॉवर विभाग और निदेशालय एनर्जी तो मुजरिमों की श्रेणी में हैं, विजीलेंस विभाग खुद इस मामले में एफआइआर दर्ज कर सकता था। मामला गृह विभाग को भेजने की जरूररत नहीं थी। अगर मामला गृह विभाग के पास आ भी गया था तो गृह विभाग के बाबूओं को मामले को पॉवर व एनर्जी निदेशालय को भेजने की जरूरत नहीं थी।
बहरहाल,कई कानूनविदों का मानना हैं कि कमेंटस या राय मांगने में बुराई भी क्या हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव पॉवर भारत सरकार में सचिवों के पैनल में आ गए हैं। जबकि गृह सचिव मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लाडले अफसरों में शुमार हैं और 2008 में जिस अफसर अजय मितल ने इस मामले को उजागर किया था वो मोदी सरकार में सचिव पर्सनल हैं। बावजूद इसके ब्रेकल कारपोरेशन एनवी के खिलाफ चार सौ बीसी की एफआईआर दर्ज नहीं हो पाई हैं।
कायदे से जब विजीलेंस विभाग ने अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह से नियमित एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी थी तो गृह विभाग व कानून विभाग को अपने स्तर पर फैसला लेना चाहिए था। चूंकि सबसे पहले ये मामला धूमल की दिसंबर 2007 से दिसंबर 2012 के बीच की सरकार के समय समाने आया था। भाजपा की धूमल सरकार ने ही जब ब्रेकल कारपोरशन अ फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई थी, तो ब्रेकल के इस प्रोजेक्ट को हथियाने के लिए दिए दस्तावेजी दावों की जांच विजीलेंस से करवाई थी।
विजीलेंस ने अपनी जांच में तब ये पाया था-:
ये रिपोर्ट आ जाने के बाद धूमल सरकार ने तब कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज की सिफारिशों पर ये आवंटन ब्रेकल को रहने दिया था। तब ये बड़ा कांड माना गया था। इस कमेटी की बैठक में अदाणी ग्रुप की कंपनी के नुमाइंदे भी मौजूद रहे थे जिस पर बाद में हाईकोर्ट ने हैरानी जताई थी।
गौरतलब हो कि ब्रेकल कारपोरेशन एन वी की ओर से अदाणी की कंपनी ने 960 मेगावाट के 9 हजार करोड़ के जिला किन्नौर के पवारी में जंगी थोपन हाइडल पावर प्रोजेक्ट को हासिल करने पर ये अपफ्रंट मनी ब्रेकल की ओर से जमा कराया था। ब्रेकल कारपोरेशन ठेका हासिल करने के बाद अपफ्रंट मनी जमा नहीं करा पा रही थी।ये ठेका 2006 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार के समय ब्रेकल कारपोरशन को आवंटित किया गया था। 2007 में भाजपा की चार्जशीट में शुमार इस मामले में वीरभद्र सिंह सरकार ही नहीं धूमल सरकार ने भी गजब के सितम ढाए हैं।
2006- 2007 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार के तबकी सरकार में जिला किन्नौर में 960 मेगावाट जंगी थोपन हाइडल पॉवर प्रोजेक्ट के लिए निविदाएं मागी गई थी। इस प्रोजेक्ट के लिए सबसे ज्यादा बोली हालैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरशन एनवी ने लगाई थी। दूसरे नंबर पर देश के टॉप उद्योगपति अंबाणी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर रही थी। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने इसे ब्रेकल को आवंटित कर दिया। ब्रेकल ने प्रोजेक्ट आवंटित होने के बाद अपफ्रंट मनी जमा नहीं कराया। इस बीच ये आवंटन उस समय विपक्षी पार्टी भाजपा की ओर से राज्यपाल को कांग्रेस की ततकालीन वीरभद्र सिंह सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर तैयार की गई चार्जशीट में शामिल हो गया। भाजपा ने अपनी चार्जशीट में इस आवंटन को लेकर वीरभद्र सिंह सरकार पर बड़ी डील का इल्जाम लगाया था।
इस बीच दिसंबर 2007 में प्रदेश में भाजपा की सरकार सता में आ गई और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बन गए। चूंकि ब्रेकल ने अपफ्रंट मनी जमा नहीं कराया था तो रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने बोली की शर्तों का हवाला देकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया और अदालत से आग्रह किया कि निर्धारित समय में ब्रेकल अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई हैं ।ऐसे में बोली में वो दूसरे नंबर पर हैं,उसे ये प्रोजेक्ट आवंटित किया जाए। ब्रेकल ने अदालत से समय मांगा। अदालत ने उसे अपफ्रंट मनी जमा करने का समय दे दिया।इस बीच सरकार की ओर से अप फ्रंटमनी जमा कराने को लेकर ब्रेकल को नोटिस दिए गए । लेकिन अपफ्रंट मनी तब भी जमा नहीं हुआ। आखिर में अदालत के दखल के बाद ब्रेकल ने अपफ्रंट मनी जमा करा दिया।ये बाद में पता चला किया कि ये पैसा अदाणी की कंपनी के खाते से सरकार के खाते में जमा हुआ था।
इस बीच धूमल सरकार ने ब्रेकल की ओर से बोली दस्तावेजों के साथ जमा कराए दस्तावेजों की विजीलेंस व आयकर विभाग से जांच करा दी। विजीलेंस जांच में जो सामने आया वो चौंकाने वाला था व विजीलेंस ने अपनी जांच में पाया कि ये पृथम द्ष्टया चार सौ बीसी का मामला हैं ।इस पर स्पेशल सेक्रेटरी ने केबिनेट के लिए नोट तैयार किया व आग्रह किया इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रदद किया जाए।इस पर धूमल सरकार ने कमेटी ऑफ सेक्रेटरी की कमेटी बना दी। कमेटी ने अजीब राय दी कि इस समय आवंटन को रदद करना सही नहीं होगा। ये राय तब दी गई जबकि विजीलेंस की ओर से ब्रेकल के खिलाफ चार सौ बीसी की एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की जा चुकी थी। इस सिफारिश को दरकिनार कर दिया गया और धूमल सरकार ने आवंटन ब्रेकल को ही कर दिया। जब ये आवंटन हुआ था तो मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे व धूमल व मोदी के बीच की तब की दोस्ती राजनीतिक गलियारों में मशहूर थी।
उधर हाईकोर्ट से इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल को किए अवंटन को रदद करने के बाद ब्रेकल व रिलायंस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। ब्रेकल ने कहा कि उसका आवंटन गलत रदद हुआ था तो रिलायंस ने कहा कि प्रदेश हाईकोर्ट ने ब्रेकल के कारनामों को देखते हुए उसे ये आवंटन रदद कर दिया हैं। चूंकिवो बोली में दूसरे नंबर पर हैं तो प्रोजेक्ट का आवंटन उसे कर दिया जाए। हाईकोर्ट ने ब्रेकल को आवंटन को रदद करने के साथ ही तत्कालीन धूमल सरकार को कहा था कि प्रोजेक्ट को लेकरजो भी करना हैं वो सरकार करें। वो नए सिंरे बोली भी मंगावा सकती हैं। धूमल सरकार ने दोबारा बोली मंगवाने का फैसला लिया।
इस बीच ब्रेकल ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ब्रेकल की ओर गलत तथ्य देने से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया तो सरकार को 2713 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ हैं व इसकी भरपाई के लिए ब्रेकल को नोटिस दिया जा रहा हैं।इसी बीच ब्रेकल की याचिका के साथ ही अदाणी ग्रुप की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी गई थी जिसमें दावा किया गया था कि अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ उसकी ओर से जमा कराए गए। चूंकि आवंटन रदद हो गया हैं तो अपफ्रंट मनी को उसे वापस लौटा दिया जाए। इस बावत सरकार ने कहा कि उनका अदाणी की कंपनी से कोई लेना देना नहीं हैं। सरकार की ओर ब्रेकल को 2713 करोड़ रुपए जुर्माने का नोटिस देने की बात सुप्रीम कोर्ट में कहने के ब्रेकल ने अपनी याचिका वापस ले ली तो अदाणी कह 280 करोड़ रुपए वापस लेने बावत दायर अर्जी भी तबाह हो गई।
इसके बाद 2014 से अब तक अदाणी की ओर से बार-बार वीरभद्र सिंह सरकार के समक्ष फरियाद करने के बावजूद ये 280 करोड़ रुपया वापस नहीं हो पा रहा हैं। हालांकि कायदे से ये पैसा सरकार को बोली की शर्तों के मुताबिक जब्त कर दिया जाना चाहिए था। क्योंकि अदाणी की कंपनी ने ये पैसा ब्रेकल की ओर से दिया था। ऐसे में उसे ये पैसा प्रदेश सरकार के बजाय ब्रेकल कारपोरेशन एनवी से वापस लेना व मांगना चाहिए था। लेकिन अजीब ये हैं कि वीरभद्र सिंह सरकार की केबिनेट 2015 में जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ठिकानों पर आय से अधिक संपति मामले में सीबीआई छापे पड़ने से पहले इस 280 करोड़ रुपए को वापस लौटाने का अजीब फैसला कर चुकी हैं।ये फैसला भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या हैं ,ये बड़ा सवाल हैं। लेकिन प्रदेश में इस पर सब खामोश हैं।ये अजीब हैं।
यही नहीं सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ब्रेकल से 2713 करोड़ रुपए का नोटिस इस नुकसान की एवज में दिया गया हैं। लेकिन केबिनेट ने इस नोटिस को भी 2015 में वीरभद्र के ठिकानों पर सीबीआई रेड पड़ने से पहले ड्रॉप कर दिया था।)( इस मामले का भंडा रिपोटर्स आइ ने कर दिया था।)ऐसे में सरकार के खजाने को करीब तीन हजार करोड़ का चूना लगा दिया हैं और अब ब्रेकल के खिलाफ सरकार एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी नहीं दे रही हैं।
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