शिमला।960 करोड़ के जंगी थोपन पॉवर प्रोजेक्ट आवंटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उद्योगपति गौतम अदाणी की कंपनी अदाणी पॉवर कंपनी के 280 करोड़ लौटाने व ब्रेकल नामक कंपनी की ओर से प्रदेश सरकार के साथ फ्राड करने व गलत तथ्य पेश करने पर प्रदेश के खजाने को हुए 2713 करोड़ के नुकसान को माफ के वीरभद्र सरकार के फैसले पर एजी के अफसरों ने सवाल जवाब किए हैं।
भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक एनर्जी निदेशालय में आडिटरों की टीम कई दिनों तक डेरा डाली रही व इस प्रोजेक्ट से जुड़े दस्तावजों को खंगाल डाला व अब तक सवाल जवाब किए जा रहे हैं।निदेशालय के अफसर मानते है कि इस ठेके की प्री इंम्पलीमेंटेशन व इंप्लीमेंटेशन शर्तों का उल्लंघन करने पर अपफ्रंट मनी जब्त क्यों नहीं किया इसका जवाब विभाग के अफसर नहीं दे पाए थे। विभाग ने सारा ठीकरा केबिनेट पर डाल दिया।
Reporterseye .com के पास एनर्जी विभाग की ओर से 30 जनवरी 2017 को एजी ऑफिस को लिखी चिटठी मौजूद हैं। जिसमें एजी के अफसरों ने एजी कार्यालय के 20 जनवरी के लेटर का हवाला देकर निदेशालय से पूछा कि क्या ब्रेकल से 2713 करोड़ रुपए वसूलने के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका दायर की हैं।क्या कंपनी की ओर से जमा कराया गया अप फ्रंटमनी जब्त या लौटा दिया गया हैं और क्या सरकार किसी अदालत में कंपनी (ब्रेकल) से 2713 करोड़ रुपए वसूलने को सहमत हुई हैं।
ये रहा एनर्जी निदेशालय से एजी के अफसरों को भेजी चिटठी का पहला पेज-:
सूत्रों के मुताबिक इस चिटठी के साथ जो जवाब एजी को भेजा गया हैं उसमें इस मसले को लेकर केबिनेट के फैसले के हवाला दिया गया हैं व साथ ही कहा है कि एनएचपीसी की बोली आ गई हैं व एसजेवीएनएल ने 28 फरवरी तक का समय मांगा हैं। वीरभद्र केबिनेट ने ब्रेकल से 2713 करोड़ वसूलने से इंकार कर दिया है व अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ लौटाने का भी फैसला कर दिया हैं। निदेशालय के सूत्र बताते हैं कि एजी के अफसरों ने इसी पर सवाल उठाएं थे।
इससे पहले भी 960 करोड़ के जंगी थोपन पॉवर प्रोजेक्ट में ब्रेकल कंपनी को अदानी की कंपनी की ओर से दिए गए कर्ज को सरकार की ओर से चुकाने के फैसले पर सवाल उठे हैं ।इस 280 करोड़ की खातिर ब्रेकल नामक कंपनी की ओर से प्रदेश सरकार के साथ फ्राड करने व गलत तथ्य पेश करने पर प्रदेश के खजाने को हुए 2713 करोड़ के नुकसान को वीरभद्र सिंह सरकार ने माफ कर दिया हैं।इस तरह सरकार के खजाने को तीन हजार करोड़ का चूना लगाने का कारनामा हो गया हैं व इस कांड को अंजाम देने में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अकेले ही शामिल नहीं हैं ,उनकी पूरी केबिनेट इस कांड में शामिल हैं।
उधर,गजब यह है कि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी इस मामले पर पूरी तरह से खामोश हैं। चूंकि मामला प्रधानमंत्री के लाडले उदयोगपति अदाणी की कंपनी के साथ कहीं न कहीं जुड़ा हैं । ऐसे में भाजपा भी इतने बड़े कांड पर जुबान नहीं खोल पा रही हैं। हालांकि इस मसले पर 2007 से 2012 तक सता में रही धूमल सरकार पहले ही सवालों के घेरे में हैं।
मजेदार ये हैं कि फ्राड करने वाले कारपोरेट घराने की खातिर प्रदेश के खजाने को 2994.42 करोड़ का नुकसान करने वाली वीरभद्र सरकार प्रदेश में मिशन रिपीट का डंका बजाने जनता के बीच उतर चुकी हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये हैं कि जो उद्योगपतियों से प्रदेश के हितों की रक्षा नहीं कर सकती उसे सता में आने देने का क्या औचित्य हैं।इसके अलावा संदेह ये भी हैं कि कहीं वीरभद्र सिंह सरकार ने कोई डील तो नहीं कर ली हैं व मोदी सरकार भी इस डील में शामिल तो नहीं हो गई हो। या कहीं सराकर का टॉप नेतृत्व ब्लैकमेल तो नहीं हो रहा हैं।चूंकि 280 करोड़ रुपए अदानी की कंपनी को लौटाने का फैसला कई सवाल खड़ा करता हैं। दुनिया जानती है कि अदानी प्रधानमंत्री मोदी के करीबी करोबारी हैं। ऐसे में कुछ भी संभव हैं।
सूत्रों के मुताबिक ये तीन हजार करोड़ का कांड यूं ही खत्म हो जाता अगर ऑडिट की टीम निदेशालय के कार्यालय में डेरा न डालती व सवाल-जवाब न चलते ।ऐसे में मामला अभी भी खुला हुआ हैं।मामले से जुड़े कुछ कागजात reporterseye.com के हाथ लगे हैं जो चौंकाने वाले खुलासे करते हैं।
ये हैं मामला
प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने 2006 में 480-480 मेगावाट के जंगीथोपन व थोपन पवारी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के लिए अंतराष्ट्रीय निविदाएं मंगवाई थी व नीदरलैंड की कंपनी मेसर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी ने 36.13 लाख रुपए प्रति मेगावाट के हिसाब सबसे ज्याद अपफ्रंट प्रीमियम देने की पेशकश की।
इस बीच प्रदेश में सरकार बदल गई और धूमल सरकार सता में आ गई। धूमल सरकार ने अप्रैल 2009 में ब्रेकल कारपारेशन के साथ प्री-इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट साइन किया।
प्री –इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट(क्लॉज 4) के मुताबिक आवंटन के समय अदा की गई अप फ्रंट मनी की राशि को जब्त किया जा सकता हैं अगर पीआइए के किसी प्रावधान/क्लॉज का उल्ल्ंघन किया जाता हैं। इसके अलावा सरकार के पास ये अधिकार भी सुरक्षित था कि अगर बोली या सेलेक्शन प्रक्रिया के दौरान गलत तथ्य पेश किए जाते हैं तो पीआईए के क्लॉज 48 के मुताबिक पीआइए को रदद किया जा सकता था।
धूमल सरकार में ब्रेकल की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों की पड़ताल विजीलेंस विभाग व आयकर विभाग ने की थी व जिसमें ढेरों महत्वपूर्ण जानकारियां गलत पाई गई थी। लेकिन धूमल सरकार ने न तो ये आवंटन रदद किया और न ही किसी को कोई सजा दी। उल्टे कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज का गठन् कर दिया व कमेटी की सिफारिश पर प्रोजेक्ट को ब्रेकल को आवंटित कर दिया।( इस मामले में हिमाचल हाईकोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता की 7 अक्तूबर 2009 की जजमेंट में सारे काले कारनामों को जिक्र हैं)
पॉलिसी पैरामीटर से संबंधित एग्रीमेंट,प्री इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट, इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना पर पीआइए के क्लॉज 49 के तहत मौद्रिक जुर्माना व प्रोजेक्ट को रदद किया जा सकता था ।पीआइए के मुताबिक प्रोजेक्ट को कमीशन करने के तीन साल बाद तक ब्रेकल को सौ फीसद इक्विटी पार्टीसिपेशन रखनी थी व क्लॉज 39(1) के मुताबिक इक्विटी पार्टीसिपेशन में किसी भी तरह के बदलाव पर पीआइए को रदद किया जाना था।
सूत्रों के मुताबिक जब निदेशालय में एजी की टीम आई थी बहुत कुछ सामने आया ।दस्तावेजों में पाया गया कि प्री बिड कंडीशंस के मुताबिक ब्रेकल को दिसंबर 2006 में लेटर ऑफ अवार्ड मिलने के तुरंत बाद 50 फीसद अप फ्रंट प्रीमियम 173.42करोड़)जमा कराना था और बाकी प्रोजेक्ट के विभिन्न चरणों के पूरा होने पर जमा कराना था। दस्तावेजों में पाया गया कि ब्रेकल ने अप फ्रंट मनी जनवरी 2008 तक जमा नहीं कराया व धूमल सरकार ने जनवरी 2008 में ब्रेकल को शो कॉज नोटिस जारी कर दिया। इस बीच रिलायंस ने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर कर दी थी ।
ब्रेकल ने मैसर्स अदानी पॉवर से कर्ज लेकर अप्रैल 2009 में 280.69 करोड़ का अप फ्रंट मनी जमा करा दिया । (ये तो बाद में 2014 में सुप्रीम कोर्ट में सार्वजनिक हुआ कि ब्रेकल ने अदानी पॉवर से कर्जा लिया था।) जिस कंपनी के पास अपफ्रंट जमा कराने के लिए पैसे नहीं थे 2006 में वीरभद्र सिंह सरकार ने उस कंपनी को 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट रेवडि़यों की तरह बांट दिया ।ऐसा क्यों किया गया इसका जवाब आज तक नहीं मिला हैं। इसके बाद धूमल सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट को इसी ब्रेकल को दे दिया। ये क्यों किया होगा ये जवाब धूमल की ओर से भी नहीं आ रहा हैं।
यही नहीं ब्रेकल ने सरकार से इजाजत लिए बगैर अपने फाइनेंसर अदानी पॉवर को इक्वटी पार्टनर (49 फीसद) बनाकर कंसोरटीयम में शामिल कर लिया ।ब्रेकल की ओर से अपने फाइनेंसर को इक्विटी पार्टनर में बदल देना व सरकार की मंजूरी के बगैर कंसोरटीयम को बदलना पीआइए की शर्तों के तहत गलत जानकारी देना था और विभिन्न क्लॉजों का उल्लंघन था।
जिस समय ये सब हो रहा था उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थी और हिमाचल में उनके सखा प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे। नतीजा ये हुआ कि ब्रेकल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।जबकि सारे कानून ताक पर रखे गए थे।
2008 में ही बोली में दूसरे नंबर आए रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने फ्राड करने व गलत जानकारी देकर इतना बड़ा प्रोजेक्ट हासिल करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
इसक बाद हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2009 में ब्रेकल को आवंटित इस प्रोजेक्ट के फैसले को रदद कर दिया। ये प्रोजेक्ट दूसरे बोलीदाता (रिलायंस) को दी जानी हैं या नहीं,इसका फैसला सरकार पर छोड़ दिया था।धूमल सरकार ने हाईकोर्ट का ओदश आने के बाद ब्रेकल की ओर से जमा कराई गई 280.69 करोड़ की अप फ्रंट मनी जब्त नहीं की गई जबकि पीआइए व आईए के विभिन्न प्रावधानों में इसका प्रावधान किया गया था।धूमल सरकार प्रदेश में दिसंबर 2012 तक सता में रही थी।दिसंबर 2012 में प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार सता में आ गई थी।
इसके बाद ब्रेकल व रिलायंस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2014 में वीरभद्र सिंह सरकार को निर्देश दिए कि वो 2014 में आई बोली पर प्रक्रिया शुरू करे। हालांकि नई बोली को पड़ताल के बाद सही नहीं पाया गया जुलाई 2015 में इसे रदद कर दिया गया।यही वह नाजुक समय था जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह वीबीएस रिश्वत कांड और आय से अधिक संपति के मामले में सीबीआई के शिकंजे में बहुत बुरी तरह से फंसे हुए थे।
ऐसे समय में वीरभद्र सिंह सरकार ने अगस्त 2015 में बड़ा कांड करते हुए इस मेगा प्रोजेक्ट को 346.85करोड़ के प्रीमियम पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर को आवंटित कर दिया।2009 से 2015 तक सुप्रीम कोर्ट में रिलांयस के खिलाफ मुकदमा लड़ने के बाद इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को ही आवंटित करने के फैसले पर हैरानी जताई गई थी। आशंकाएं ये भी उठी थी की कहीं बड़ा लेन देन हुआ हैं। लेकिन कोई सबूत नहीं मिला था।
उधर, जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट चल रहा था तो अदानी पॉवर कंपनी ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की व कहा कि ब्रेकल की ओर से जमा कराया गया अपफ्रट मनी का पैसा उसने जमा कराया हैं व इसे वापस लौटाया जाए। इस बावत अदानी पॉवर ने बैंकों के कागजात भी अदालत में जमा कराए थे। इस पर वीरभद्र सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश की कि सरकार की अदानी पॉवर से कोई लेना देना नहीं हैं।
इस बीच, एनर्जी निदेशालय ने मार्च 2014 में प्रोजेक्ट के कमीशन होने में नौ साल की देरी होने से सरकार को जो 12 प्रतिशत फ्री बिजली मिलनी थी उसका नुकसान हो गया व विभाग ने गणना कि ये नुकसान 2713.73 करोड़ रुपए बन रहा हैं। इसके अलावा एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना करने पर 280.69 करोड़ रुपए के अप फ्रंट मनी और उस पर ब्याज को जब्त करने का प्रस्ताव पेश किया। इस बावत सरकार ने अगस्त 2013 में कानून विभाग से राय मांगी थी व कानून विभाग ने इस बावत हरी झंडी दे दी थी। लेकिन ब्रेकल से न तो 2713.73 करोड़ रुपए वसूला गया और न ही 280.69 करोड़ जबत किए गए हैं।
इसके बाद वीरभद्र सिंह सरकार ने एक और बड़ा कांड किया। जिस ब्रेकल कंपनी ने गलत जानकारियां व फ्राड कर ये 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट हासिल किया था उस पर मेहरबानी कर दी । इस मेहरबानी की एवज में अंदरखाते क्या डील हुई किसी को पता नहीं हैं।वीरभद्र सरकार ने सितंबर 2015 में ब्रेकल कंपनी की वजह से सरकार के खजाने को हुए 2713.73 करोड़ के नुकसान की भरपाई न करने का अजीब फैसला ले लिया ।
यही नहीं वीरभद्र सिंह सरकार ने अदानी पॉवर को 280.69 करोड़ का अप फ्रंट मनी भी वापस करने का फैसला ले लिया ।यहां ये उल्लेखनीय हैं कि सरकार ने अदानी पॉवर से कभी भी अप फ्रंट मनी का 280 करोड़ रुपया नहीं लिया था। ये अप फ्रंट मनी ब्रेकल से लिया गया था। ब्रेकल ने अदानी से कर्ज लिया हो तो ये अलग मसला हैं। ऐसे में वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल द्धारा अदानी की ओर से लिए कर्ज को चुकाने का फैसला लेकर अजीब कारनामा कर दिया। अदानी से कर्जा लिया था ब्रेकल ने और उसे चुकता कर रही हैं प्रदेश की जनता ।जबकि कायदे से ब्रेकल व अदानी पॉवर के बीच का मामला था। ये खुलेआम क्रप्शन नहीं हैं तो फिर ये क्या हैं,ये बड़ा सवाल हैं। वीरभद्र सिंह सरकार ने अंबानी की रिलायंस को 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट दे दिया। ब्रेकल से 2713.73 करोड़ का नुकसान लेने से मना कर दिया और अदानी पॉवर को 280 करोड़ लौटाने का फैसला ले लिया जो सरकार ने अदानी पॉवर से कभी लिए ही नहीं थे।देश के टॉप कारोबारियों पर से मेहरबानियां करना कई सवाल खड़े करती हैं।और कारोबारी भी वो जिनकी प्रधानमंत्री मोदी से नजदीकियां हैं और प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्री से नजदीकियां हें।
एनर्जी निदेशालय के सूत्र व एजी कार्यालय को लिखी हाल की चिटठी के मुताबिक 16 सितंबर 2016 को अपने जवाब में वीरभद्र सरकार ने कहा है कि अगस्त-सितंबर 2015 में सरकार ने खजाने को हुए 2713.73 करोड़ रुपए के नुकसान की भरपाई न करने का फैसला लिया हैं।इसके अलावा सरकार ने जवाब में कहा कि अदानी पॉवर को अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ अक्तूबर 2016 तक नहीं लौटाए गए हैं । ये पैसे रिलायंस से प्रीमियम लेकर अदानी पॉवर को देने थे। लेकिन रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट को लेने से ही इंकार कर दिया जबकि रिलायंस ने 2009 से लेकर 2015 तक इस प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जंग लड़ी थी।
निदेशालय के अफसर बताते हैं कि एजी अफसर कह कर गए हैं कि वीरभद्र सिंह सरकार ने पीआइए के प्रावधानों,एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना के इन कारनामों को नजरअंदाज कर सरकार के खजाने को 2994.42 करोड़ का नुकसान पहुंचाया हैं। निदेशालय के अफसर बताते हैं कि अब देखना है कि ऑडिट की रिपोर्ट में क्या आता हैं।उधर ,कहा जा रहा हैं कि दिल्ली के कैग के दफ्तर में भी किन्हीं रसूखदार लोगों का आना जाना हुआ हैं व मोदी सरकार को काबू करने का जुगाड़ भिड़ाया गया था। जुगाड़ कितना कामयाब हुआ हैं,इसकी तस्दीक अप्रैल महीने में होनी हैं। लेकिन आशाकांए अभी से बाहर आनी शुरू हो गई हैं।
अब बड़े सवाल यही हैं कि ये सब आखिर क्यों किया गया । क्या मोदी सरकार भी कहीं शामिल हैं । क्या कहीं कोई बड़ा भ्रष्टाचार हुआ हैं।ब्रेकल के कर्ताधर्ता जेल में क्यों नहीं हैं। रिलायंस को 6 साल (2009-2015) तक सुप्रीम कोर्ट में विरोध करने के बाद अचानक इस प्रोजेक्ट को क्यों दे दिया गया। भाजपा इस मसले पर क्यों चुप हैं।इन सारे सवालों के जवाब धूमल व वीरभद्र दोनों को देने हैं।क्या कोई किसी को ब्लैकमेल कर रहा हैं । मोदी की इडी व सीबीआई चुप क्यों हैं। क्या एनर्जी निदेशालय व केबिनेट के फैसलों के सारे कागजात छानने के बाद कैग की रिपोर्ट में ये मसला सामने आएगा या वहां भी कोई खेल दिया गया हैं।
मामले पर लगातार निगाह बनी हुई हैं।
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