षिमला। अदाणी समूह की कंपनी की ओर से बिना बताए जिला सोलन के दाडला में अंबुजा व जिला बिलासपुर के बरमाणा में एसीसी सीमेंट कारखाने को अचानक बंद कर देने के बाद सुक्खू सरकार इन कारखानों को अदाणी समूह की कंपनी से खुलवाने में करीब 46 दिनों बाद भी नाकाम रही हैं। जिला स्तर से अधिकारियों से लेकर सचिवालय स्तर के अधिकारियों के साथ कई दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी हैं। सुक्खू सरकार के उदयोग मंत्री हर्ष वर्धन चैहान से भी 20 जनवरी को वार्ता हो चुकी है। लेकिन मामला सुलझा नहीं हैं।
इतने स्तरों पर हो चुकी है वार्ता
इस मसले को सुलझाने के लिए बिलासपुर के डीसी पंकज राय और सोलन की डीसी कृतिका कुल्हारी के स्तर पर वार्ता हुई। डसके बाद इस मसले को बिलासपुर व अर्की के एसडीएम के सुपुर्द कर दिया गया। मामला नहीं सुलझा तो निदेषक उदयोग राकेष प्रजापति से कई बार वार्ता हो चुकी हैं। सुक्खू सरकार के परिवहन सचिव आर डी नजीम से भी वार्ता हो चुकी हैं। खादय आपूर्ति विभाग के निदेषक के सी चमन की अध्यक्षता में भी एक उप समिति बनाई जा चुकी हैं। इसके अलावा दरों को निर्धारित करने के लिए एक एजेंसी का भी सहारा लिया जा चुका हैं। लेकिन तमाम वार्ताएं विफल हो चुकी हैं।
बडा सवाल यह है कि क्या यह वार्ताएं इसलिए विफल हो रही है क्योंकि जो नौकरषाही जयराम सरकार में काम कर रही थी उन अधिकारियों के सुक्खू सरकार ने तबादले नही किए हैं। इन अधिकारियों को पता है कि देर सवेर उनके तबादले होन ही है। अगर सुक्खू सरकार सता में आते ही अािकारियों के तबादले कर देती तो नए अधिकारी परिणाम देते और यह मसला कभी का सुलझ जाता । सबको पता है कि अदाणी समूह के सर्वेसर्वा अदाणी गौतम की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दोस्ती है। ऐसे में भाजपा नेताओं के करीबी या उनकी ओर से तैनात अधिकारी क्यों रिजल्ट देंगे। सुक्खू व उनके सिपहसलार यह अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं। अन्यथा इस तरह की अचानक तालाबंदी के मसले पर तो इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी किसी को भी घुटने पर ला देते हैं।
14 दिसंबर से बंद है कारखाने
प्रदेष में भाजपा की जयराम सरकार के पदच्यूत जाने के बाद अचानक 14 दिसंबर 20 22 को अदाणी समूह की कंपनी ने एसीसी बरमाणा और अंबुजा सीमेंट कारखानों को अचानक बंद कर दिया । कंपनी ने दलील दी कि ढुलाई का मालभाडा अत्यधिक है। उन्हें घाटा हो रहा है। बाद में समूह की ओर से मीडिया को यह भी बताया गया कि आपरेटरों का दबदबा है और वह मनमानी करते हैं। कुल मिलाकार अदाणी समूह आपरेटरों से निजात चाहता हैं। उसने कहा था कि माल ढुलाई के काम को आपरेटरों के नियं़त्रण से किया जाना चाहिए जैसा बाकी राज्यों में होता हैं। उन्होंने हाईकोर्ट की ओर से सुझाए फार्मूले का भी समर्थन किया हैं। लेकिन पिछले पौने दो महीनों से चल रहे इस गतिरोध को दूर नहीं किया जा पा रहा हैं।
तालाबंदी वैध या अवैध
अदाणी समूह की ओर से अचानक की गई यह तालाबंदी वैध है या अवैध स बावत भी सुक्खू सरकार मौन हैं। किसी भी कंपनी को तालाबंदी से पहले बहुत से कानूनी प्रावधानों का पालन करना होता है। यहां पर अदाणी समूह ने ऐसा कुछ किया है इस बावत सरकार मौन हैं। अगर यह तालाबंदी अवैध है तो सुक्खू सरकार ने अदाणी समूह के खिलाफ क्या कार्यवाही की है, यह किसी को नहीं बताया जा रहा हैं। पिछीले सप्ताह उदयोग मंत्री ने जरूर कहा था कि सरकार ने सीमेंट कारखानों के मालिक से अपनी नाराजगी जाहिर कर दी हैं। यह नाराजगी किससे व किस स्तर की जाहिर की गई है यह किसी को नहीं बताया गया है। नाराजगी के बाद अदाणी समूह ने क्या प्रतिक्रिया दी है, सरकार ने यह भी सार्वजनिक नही किया गया है।जो भी हो तालाबंदी जारी है और आपरेटर सडकों पर हैं।
20 जनवरी के बाद कंपनी और सरकार दोनों मौन
20 जनवरी को उदयोग मंत्री से हुई वार्ता के बाद प्रभावित आपरेटरों के साथ कोई वार्ता नहीं हुई हैं। इन कारखानों में लगे कर्मचारियों के मसले तो कहीं वार्ता में ही नहीं है।
सुक्खू का दावा की वह आपरेटरों के साथ
उदयोग मंत्री से वार्ता विफल होने के बाद इस मसले के समाधान को मुख्यमं़त्री पर छोड दिया गया हैं। सुक्खू ने बीते दिनों कहा कि वह इस मसले का समाधन चाहते है और सरकार आपरेटरों के साथ है। उममीद जताई जा रही थी कि 27 जनवरी को इस मसले को लेकर सुक्खू कुछ फैसला कर लेंगे। लेकिन कुछ नहीं हुआ । अब वह भारत जोडो यात्रा में षामिल होने के लिए श्रीनगर पहुंच गए हैं। उसके बाद वह दिल्ली जाएंगे व 31 जनवरी को राजधानी लौटने की संभवना हैं। मायने यह
कि इस मसले के जल्द सुलझने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
सरकार ने माल ढुलाई की दरें निर्धारित करने के लिए कंसल्टेंट भी नियुक्त कर रखा हैं। उसकी रपट भी सरकार के पास हैं। कायदे से इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए था लेकिन न जाने किसके दबाव में सरकार इस रपट को छिपाए बैठी हैं।
2010 में भी 47 दिनों तक चली थी हडताल
इससे पहले 2010 में आपरेटरों की हडताल 47 दिनों तक चली थी। लेकिन तब तालाबंदी नहीं हुई थी। कारखाने में कर्मचारी काम करते थे। उनके तबादले कहीं और नहीं किए गए थे। लेकिन इस बार तो तालाबंदी ही हो गई हैं।
90 फीसद वाहन कर्ज पर
दाडला व बरमाणा सीमेंट कारखानों में 90 फीसद वाहन बैंकों से कर्ज पर हैं। कइयों ने रिफायनांस भी कराए हैं। ऐसे में इनरकी किष्तों को लीेकर बडा मसला खडा हो गया हैं। तीन महीनों तक लगातार किष्त न देने पर बैंक व फायनांस करने वाली कंपनियां वाहनों को उठाने का काम ष्चालू कर देती है। बागा में लगे सीमेंट कारखाने से पूर्व में सैंकडों गाडियों को फायनांस कंपनियां उठा कर ले गई थी। यहां अब स्थिति ऐसी ही पैदा हो रही हैं।
दाडला में आपरेटरों की यूनियन के प्रधान जयदेव कौंडल कहते है कि बैंकों से बात की गई है कि जब तक मसला सुलझ नहीं जाता तब तक किष्त जमा न करने पर आपरेटरों के खिलाफ कोई कार्यवाई न की जाए। उन्होंने कहा कि आपरेठर दाडला में विरोध रैलियां निकाल रहे हैं व इंतजार है कि सरकार की ओर से इस मसले को सकब सुलझा लिया जाए।
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