शिमला। कांग्रेस आलाकमान ने विधानसभा में कांग्रेस की 40 सीटें जीत जाने के बाद हिमाचल में वीरभद्र सिंह राज परिवार का कांग्रेस सरकार पर से वर्चस्व खत्म करने का का फैसला लेकर कांग्रेस की राजनीति में नई नजीर पेश की हैं।
कांग्रेस आलाकमान ने प्रतिभा सिंह की मुख्यमंदत्री पद की दवोदारी को खारिज कर दिया व उनके खेमे के मुकेश अग्निहोत्री को भी इस पद नहीं बैठने दिया। इस फैसले का असर देश भर में जाएगा व जहां –जहां भी चंद परिवारों ने कांग्रेस पर कब्जा कर रखा है वहां पर पार्टी को इन परिवारों से मुक्त करने में मदद मिलेगी। कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल से पहले यह प्रयोग पंजाब में कर डाला था जहां पर कांग्रेस के दिग्गज अमरेंद्र सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अमरेंद्र सिंह व वीरभद्र सिंह के राज परिवारों के बीच रिश्तेदारी हैं।
राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी रहे थे विफल
कांग्रेस को वीरभद्र सिंह के परिवार से मुक्त करने के लिए राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कई बार प्रयास हुए लेकिन कोई भी कांग्रेस को वीरभद्र सिंह के परिवार से मुक्त नहीं कर पाया। मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने कई बार प्रयास किया व वह विफल हो गए। इसके बाद सोनिया गांधी के दम पर विदया स्टोक्स भी मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गई। पी वी नरसिम्हा राव के दम पर सुखराम ने कोशिश की लेकिन वह भी विफल रहे। राहुल गांधी के समय में भी कांग्रेस को इस परिवार के चंगुल छुडाने की कोशिशें होती रही लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। इस परिवार को तरजीह देकर कांग्रेस 2014 , 2019 के लोकसभ चुनाव च 2017 के विधानसभा चुनाव तो हार ही गई लेकिन संगठन में नए चेहरों को भी नहीं उभार पाई। लेकिन प्रियंका गांधी ने सबकुछ पल भर में करदिया वह हालीलाज समर्थकों के दबाव के आगे झुकी नहीं।
1983 से रहा था दबदबा
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 1983 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। पूर्व मुख्यमंत्री राम लाल ठाकुर को हटा कर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था तब से लेकर 2021 तक उन्होंने न तो आलाकमान की कभी परवाह की और न ही संगठन की। उन्होंने संगठन को भी और कांग्रेस को भी अपने कब्जे में रखा। व प्रदेश में किसी को भी उभरने नहीं दिया। जिस भी नेता ने उनके समकक्ष उभरने की कोशिश की उसे उन्होंने राजनीतिक तौर पर जमीन पर ला दिया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री राम लाल ठाकुर,मेजर विजय सिंह मनकोटिया और विदया स्टोक्स जैसे कुछ ऐसे चेहरे थे जिनके साथ कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह से खडा रहता था लेकिन वीरभद्र सिंह के आगे वह धराशायी हो जाते थे।लेकिन सुक्खू एक मात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने वीरभद्र सिंह को भी हमेशा मात दी और उनके परिवार व उनके खेमे को भी जमीन पर ला दिया।
नौकरशाही भी हुई मुक्त
कांग्रेस आलाकमान के एक ही फैसले से प्रदेश की नौकरशाही भी हालीलाज कांग्रेस के दबाब से मुक्त हो गई हैं। 12 नवंबर को मतदान होने के बाद जब नौकरशाही को लगा था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आ सकती है व हालीलाज कांग्रेस का दबदबा अगली सरकार में रहने वाला है तो नौकरशाहों ने हालीलाज के दरबार में हाजिरी भरनी शुरू कर दी थी। दरबार का यह चलन अब समाप्त हो गया है व 1983 से जब भी कांग्रेस की सरकारें सता में आती थी तो चंद ही नौकरशाह होते थे जो सालों तक महत्वपूर्ण पदों को हथिया लिया करते थे। बाकी नौकरशाह या तो केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले जाते थे या फिर काबिलियत होने के बावजूद बेहतर पदों के लिए तरसते रहते थे।
सुक्खू के सामने चुनौती
सुक्खू के मुख्यमंत्री बन जाने से हालीलाज कांग्रेस का सरकार पर से वर्चस्व ही समाप्त हुआ हैं लेकिन अभी सरकार व संगठन में तो दखल रहेगा ही। ऐसे में सुक्खू के लिए कांग्रेस के भीतर से ज्यादा चुनौतियां वनिस्पत भाजपा के। यह जरूर है कि भाजपा आपरेशन लोटस जैसे अभियान चला सकती है लेकिन हिमाचल में ये शायद ही कामयाब हो। ऐसे में सुक्खू को पार्टी के भीतर की चुनौतियों से निपटने के लिए अलग तरह की बिसात बिछानी होगी। कांग्रेस के भीतर से किस तरह की चुनौतियां सामने आ सकती है उसकी झलक राजधानी में जिस तरह से नारेबाजी हुई है उससे मिल ही गई हैं।
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