वाशिंगटन।अमेरिका में ‘द यूलर सोसाइटी, वाशिगटन’ के प्रैजीडैंट प्रोफैसर राबर्ट ब्रैडली ने लिखित व्यक्तव्य में अजय शर्मा के शोध को सराहा।‘न्यूटन ने नहीं दिया था, गति का दूसरा नियम’ ‘हिस्ट्री आफ सांइस’’ के वैज्ञानिको ने इस सच्चाई को स्वीकारा।
अमेरिका के टैक्सास स्टेट की सैंट एडबारडज यूनिवर्सिटी में ‘द यूलर सोसाईटी’ की कान्फ्रैंस मे अजय शर्मा ने तर्क दिये कि स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला गति का दूसरा नियम, न्यूटन ने नहीं दिया था। इस तरह 220 देशों में नियम को न्यूटन के नाम से पढ़ाना वैज्ञानिक दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है।
पहले अजय शर्मा ने 1687 में लिखी न्यूटन की पुस्तक ‘प्रिंसीपिया’ के नियम के सम्बंध में सभी तथ्यों का जिक्र किया। ‘प्रिंसीपिया’ में न्यूटन नियम पृष्ठ संख्या 19-20 में दिये हैं। न्यूटन ने नियम की परिभाषा कुछ और दी है; और स्कूलों से कुछ और ही पढ़ाया जा रहा है। शर्मा ने कान्फ्रैन्स में इन तथ्यों की विस्तृत व्याख्या की और वैज्ञानिकों के प्रष्नों के सटीक उतर दिये।
इसके बाद अजय शर्मा ने स्विटजरलैंड के वैज्ञानिक लियोन हार्ड यूलर के 1736, 1747, 1750, 1765 और 1775 के नियमों की व्याख्या की। (न्यूटन की मृत्यु 1727 में हो चुकी थी और यूलर ने नियम इसके बाद लिखे।) इन शोध पत्रों में न्यूटन की गति का दूसरा नियम को स्पष्ट रूप से लिखा गया है। बाद में वैज्ञानिकों ने यूलर के नियम को न्यूटन के नाम कर दिया। इस तरह गति का दूसरा नियम स्कूलों में न्यूटन के नाम से पढ़ाया जा रहा है वह लियोन हार्ड यूलर ने दिया था, न्यूटन ने नहीं। इस समय न्यूटन की पिं्रसीपिया और यूलर के शोध को इंटरनैट से मुफ्त डाऊनलोड किये जा सकते हैं। इन को पढ़ हम खुद सच्चाई का फैसला कर सकते हैं।
इस उलटफेर का प्रमुख कारण इंग्लैंड का महाशक्ति होना और न्यूटन की विलक्षण प्रतिभा तथा बेहद लोकप्रियता थी। कब और कैसे यूलर का काम न्यूटन के नाम हो गया इसका किसी को पता नहीं है? यह शोध का विषय है। न्यूटन 1929 में स्थापित विश्व की दूसरी सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी (यूनिवर्सिटी आॅफ कैम्ब्रिज, इंग्लैंड) में वैज्ञानिक थे जबकि यूलर रूस, जर्मनी, स्विटजरलैंड आदि देषों में गणितज्ञ रहे। यूलर ने लगभग 900 शोधपत्र लिखे और उन्हें एक पुस्तक में संकलित नही किया जबकि साधन सम्पन न्यूटन ने अपने शोध कार्य को पुस्तकों में लंदन से छपवाया। न्यूटन के नियम और यूलर के नियम में कोई समानता नहीं है। फिर भी न्यूटन का ही नाम चल रहा है।
‘दू यूलर सोसाईटी’ के प्रैंजीडैंट न्यूयार्क की अडैल्फी यूनिवर्सिटी के गणित एवं कम्पयूटर विभाग के अध्यक्ष प्रो0 राबरट ब्रैडली ने लिखित व्यक्तव्य में अजय शर्मा के शोध कार्य को महत्वर्पूण और सार्थक बताया।
अजय शर्मा की अगली कान्फरैंस में पाकिस्तान में भाग लेंगे।
अब देखना यह है कि किस तरह यूलर का नियम, न्यूटन का नियम बनाया गया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने प्रिंसीपिया के नियम में वाक्याशों और तथ्यों की गलत व्याख्या दी। प्रिंसीपिया मंे ‘गति’ और ‘गति की मात्रा’ दो अलग तथ्य है। गलती से इन्हें एक ही माना गया। इस ‘बदलाव की दर’ और ‘बदलाव’ पूरी तरह अलग-2 वाक्यांश है जबकि वैज्ञानिकों ने इन्हंे एक ही माना। इस तरह तर्कहीन परिवर्तन करने के बाद वैज्ञानिकों ने यूलर का नियम न्यूटन के नाम कर दिया।
हिमाचल के शोधकर्ता अजय शर्मा पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है और सभी देशों में उन्हे सुना पढ़ा और समझा जा रहा है।
(1)