शिमला। हिमाचल किसान सभा ने केंद्रीय बजट में किसानों की अदनदेखी करने का इल्जाम लगाते हुए प्रदेश भर में बजट की प्रतियां जला कर अपना विरोध दर्ज किया।
हिमाचल किसान सभा के राज्य अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर व महासचिव होत्तम सोंखला ने यहां कहा कि केंद्रीय बजट में राज्यों के संघीय अधिकारों की अवेहलना की गई है व कुल बजट में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए आवंटन 2019 से लगातार घटकर 5.44 से वर्तमान में 3.15 फीसद पर आ गया है। 2022-23 के वास्तविक आंकड़ों की तुलना में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए आवंटन में 21.2 फीसद की कमी आई है। अंतरिम बजट में लागत का दुगुना व उस पर 50 फीसद ज्यादा पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। मनरेगा में कोई वृद्धि नहीं है।
इन दोनों किसान नेताओं ने कहा कि वित्त मंत्री ने कृषि को पहली प्राथमिकता देने का दावा करते हुए वास्तव में किसानों, मजदूरों और गरीबों के कल्याण को शून्य प्राथमिकता देते हुए कॉरपोरेट्स को प्राथमिकता दी है। मनरेगा के लिए आवंटन में शून्य वृद्धि से संकट बढ़ेगा। इससे ग्रामीण संकट के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन भी बढ़ेगा जो भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
’तंवर व सोंखला ने कहा कि हिमाचल पहाड़ी क्षेत्र होने के साथ-साथ यहां के किसानों के पास खेती बाड़ी ही एक मुख्य व्यवसाय होने पर बजट में पहाड़ी राज्य के लिए विशेष पैकेज होना चाहिए था लेकिन यहां किसानों को निराशा ही हाथ लगी।’
’हिमाचल की जनता विशेष रूप से इन पर आस लगाए हुए थी कि मोदी सरकार सेब का आयात शुल्क 100 प्रतिशत बढ़ाया जाए जोकि अभी 50 प्रतिशत है। जिसके कारण सेब घाटे का सौदा बनता जा रहा है।’
मंडी मध्यस्थता योजना के तहत केंद्रीय सरकार द्वारा 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा जाता था जो पिछले सालों में समाप्त कर दिया गया है। इस बार के बजट में इसका कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। जिसके कारण राज्य सरकार एमआइएस योजना के तहत केवल 12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ही फलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रही है।’
प्रदेश में लगभग 7 लाख मीट्रिक टन मक्की पैदा होती है। परन्तु उसकी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं की जाती। न ही फ़ूड कोर्पोरेशन ऑफ इंडिया इसकी खरीद करती है और न ही मक्की के लिए प्रोसैसिंग इकाईयां स्थापित करने की कोई योजना बजट में है।’
इन दोनों किसान नेताओं ने कहा कि हिमाचल में 87 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं। जिनकी भूमि का अधिग्रहण नये भूमि अधिग्रहण कानून के तहत करके सरकार फैक्टर 1 में केवल दो गुणा मुआवज़ा दे रही है जबकि किसानों की मांग 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत फैक्टर 2 के मुताबिक 4 गुणा की दर से मुआवज़ा देने की है।
हिमाचल में जो किसान सब्जी उत्पादन कर रहे हैं उनके उत्पाद के लिए कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता और न ही प्रोसैसिंग यूनिट या सीए स्टोर लगाने की कोई योजना बजट में है।’
इसके अलावा हिमाचल के किसानों के लिए जंगली जानवरों व आवारा व नकारा पशुओं द्वारा नष्ट की जा रही फसलों के लिए मुआवजे का बजट में कोई प्रावधान नहीं है और न ही इन पर नियंत्रण रखने के लिए वन्य प्राणी संरक्षण कानून में कोई संशोधन किया गया है।’
हिमाचल में पिछले साल आई भयंकर बरसात में किसानों के खेत,ज़मीन,मकानों के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोई विशेष आपदा राहत पैकेज नहीं दिया गया।
उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय किसान सभा व संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इस को बजट केवल मात्र निजीकरण और कॉरपोरेट घराना को फायदा पहुंचाने की दिशा में एक कदम करार दिया हैं।
तंवर व सोंखला ने कहा कि पिछले कुछ सालों से भारत में कृषि संकट गहराता जा रहा है। उससे बाहर निकलने की बजाए यह बजट कृषि को तहस नहस करने दिशा में ले जाएगा।
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