शिमला।सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाइ चंद्रचूड़ की ओर से देश भर के उच्च् न्यायलयों के मुख्य न्यायधीशों से तीन महीनों से ज्यादा अवधि से रिजर्व फैसलों का हिसाब मांग लेने के बाद प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से देश के टॉप कारपोरेट अदाणी समूह से जुड़े मामले में रिजर्व फैसले के सुनाए जाने की उम्मीद बढ़ गई हैं।
अदाणी समूह की कंपनी अदाणी पावर की ओर से राज्य सरकार से 280 करोड़ रुपए के अपफ्रंट मनी को लौटाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें हाईकोर्ट की जस्टिस संदीप शर्मा की एकल पीठ ने अदाणी पावर के पक्ष 2022 में फैसला सुना दिया था।
इस फैसले के खिलाफ खंडपीठ में अपील दायर की गई व सुनवाई के बाद जस्टिस विपिन नेगी और जस्टिस विवेक ठाकुर की खंडपीठ ने 9 अक्तूबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले को रिजर्व किए हुए अब छह महीने हो गए हैं।
उधर, बीते रोज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाइ चंद्रचूड़ की देश भर के मुख्य न्यायाधीशों को चिटठी लिख कर उन मामलों की फेहरिस्त मांग ली है जिसमें तीन महीने से ज्यादा की अवधि से फैसले सुरक्षित किए गए हैं।
इस चिटठी में जस्टिस चंद्रचूड़ ने लिखा था कि जिन मामलों में सुनवाई पूरी हो चुकी है व फैसलें सुरक्षित रख लिए गए है उन मामलों की छह महीने बाद दोबारा नए सिरे से सुनवाई करने का मतलब समय को बर्बाद करने जैसा हैं।
उन्होंने कहा कि वह ऐसे मामलों का चिन्हित करना चाहते है जिनमें सुनवाई पूरी हो चुकी है और फैसलें भी रिजर्व हो गए है लेकिन फैसले लंबी अवधि बीत जाने के बाद भी सुनाए नहीं गए हैं।
याद रहे 2006-07 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने किन्नौर में 980 मेगावाट के दो बिजली प्रोजेक्टों जंगी व पोवारी थोपन को नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एन वी को आवंटित किया था। इन प्रोजेक्टों के लिए लगी बोली में दूसरे नंबर पर अंबाणी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर थी।
लेकिन ब्रेकल ने तय अवधि में 260 करोड़ रुपए की अप फ्रंट मनी जमा नहीं कराई। बाद में मामले के हाईकोर्ट में लंबित रहने के दौरान अदाणी समूह की कंपनियों ने ब्रेकल की तरफ से20 करोड़ के जुर्माने समेत अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए जमा कराए थे। बाद में धूमल सरकार ने इस आवंटन को लेकर जांच कराई व जांच में घपले वाले तथ्य सामने आने के बाद भी उन्होंने आवंटन को रदद नहीं किया। इसके खिलाफ रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी आग्रह किया कि चूंकि बोली में दूसरे नंबर पर है तो उन्हें इस प्रोजेक्ट को दिया जाए।हाईकोर्ट ने ब्रेकल को अवंटित इस प्रोजेक्ट के फैसले को रदद कर दिया व कहा कि सरकार चाहे तो इसे रिलायंस को सकती या फिर नए सिरे बोली या निविदाएं मंगा सकती हैं।
धूमल सरकार ने नए सिरे से बोली लगाने का फैसला लिया। इस बीच ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया।
लेकिन 2015 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने का फैसला ले लिया व तय किया कि रिलायंस से मिलने वाले वाली अप फ्रंट मनी की रकम में से अदाणी पावर की अप फ्रंट मनी की रकम को लौटा दिया जाएगा। लेकिन इस फैसले को अमलीजामा नहीं पहनाया गया व अक्तूबर 2017 में सरकार ने अदाणी पावर को चिटठी लिखी कि वो पैसे देने को तैयार है। लेकिन दिसंबर 2017 में जब प्रदेश में चुनाव हो रह थे तो अदाणी पावर को चिटठी लिख दी की कांट्रेक्ट के उपबंधों व कानूनी पेचीदकियों के चलते सरकार इस पैसे को नहीं लौटा सकती।
इसके बाद प्रदेश में जयराम सरकार सत्ता में आ गई और उसने इस मामले को मंत्रिमंडल में ले जाने का फैसला लिया। वो मंत्रिमंडल में क्यों ले गई इस बावत रहस्य बना हुआ हैं। बाद में 2019 में अदाणी पावर ने प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस रकम को उसे देने का आग्रह किया।
2022 में इस इसका फैसला हो गया व नौ फीसद ब्याज के साथ इस रकम को लौटाने के लिए सरकार को निर्देश दे दिए गए। इसकी अपील हो गई व अपील में सरकार ने बाकी दलीलों के अलावा दलील दी कि ये रकम अदाणी पावर ने जमा ही नहीं कराई थी । इसके अलावा ब्रेकल के लिए निदेशक डीन गेस्टरकैंप ने जगह-जगह दस्तख्त कर रखे थे वह फर्जी लग रहे हैं। वह कहीं मिल भी नहीं रहा हैं। इसके अदाणी से तो कभी सरकार ने पैसा लिया ही नहीं था।
तमाम बहस सुनने के बाद इस मामले में अक्तूबर 2023 में फैसला सुरक्षित कर लिया था।
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