शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यरमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार के ड्रीम प्रोजेक्टे विवेका नंद ट्रस्टक के तहत खोले गए अस्परताल में धांधलियां करने जैसे इल्जांमों वाली याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।
प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योात्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने इन अपने आदेश में कहा है कि एक लाख रुपए की रकम में से 50 हजार रुपए शांताकुमार व अन्य वादी को बराबर –बराबर देने होंगे जबकि 50 हजार रुपए प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन कल्याण फंड में दो महीनों के भीतर जमा कराने होंगे।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि याचिका कर्ता ने ये याचिका शांता कुमार की छवि का खराब करने के लिए गलत मंशा से ये याचिका दायर की है।याचिका में कोई मेरिट नहीं है और यह शरारत पूर्ण हरकत है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से लगाए गए इल्जा मों को लेकर जब विशेष सचिव स्वास्थ्य ने अदालत के आदेशों पर 14 अप्रैल 2019 में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की तो तो याचिका कर्ता ने सरकार के पक्ष को कहीं भी झुठलाया नहीं । इससे साफ है कि याचिका कर्ता ने के तमाम इल्जारम झूइे थे व उसने ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है।
है।यही नहीं शांता कुमार की ओर से ये ट्रस्ट 2000में गठित कर दिया अगर ये गठन अवैध या गैर कानूनीथातो याचिका कर्ता इसके खिलाफ 2012 में याचिका दायर करता है। ये देरी क्यों की इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता प्रचार चाहता था व शांता कुमार से हिसाब पूरा करने की मंशा से उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया
भुवनेश चंद सूद नामक याचिका कर्ता ने अदालत में याचिका दायर की थी कि 1989-90 में जब शांता कुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने विवेकानंद मेडिकल रिसर्च ट्रस्ट का गठन किया था। उस समय कांगड़ा के लोगों को शांता कुमार ने सपना दिखाया था कि ट्रस्ट के तहत पीजीआइ की तरह बड़ा अस्पताल खोला जाएगा। ट्रस्ट् की बैठक नंवबर 1992 में ततकालीन स्वास्थ्य सचिव की अध्यक्षता में हुई थी। तबकहा गया था कि ये अस्पाताल धर्मार्थ अस्पताल होगा व लोगों को सस्ता इलाज मिलेगा लेकिन बाद ये कमर्शियल अस्पताल बना जो ट्रस्ट अधिनियम का उल्लंंघन था। यही नहीं जिस जमीन पर ये बना है वह पहले चाय बागान थी लेकिन बाद में इसकी किस्म बंजर कदीम कर दी गई।।पहले यह जमीन राष्ट्रीय जैव अनुसंधान संसथान के अधीन थी। लेकिन इसे रातों रात पहले सरकार के नाम हस्तांतरित कर दिया व बाद में ट्रस्ट के नाम कर दिया गया।
सूद ने अपनी याचिका में कहा था कि यही नहीं ट्रस्ट ने जय प्रकाश सेवा संस्थाान जो जेपी कंपनी का एक संस्थाान है से समझौता कर लिया । ट्रस्ट् के 15 सदस्यों में से 9 जेपी इंडस्ट्री से बना लिए गए।
शांता कुमार ने अपने प्रभाव का इस्तेहमाल कर इस जमीन को एक रुपए के पटटे पर ट्रस्ट के नाम करा दिया। याचिका कर्ता ने इन तमाम इल्जामों की जांच किसी स्वएतंत्र एंजेसी से कराने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने इस जमीन को सीएसआइआर को लौटाने का आग्रह किया था व दलील दी थी केि ये जमीन गैरकानूनी तरीके से ट्रसट को हस्तांतरित की गई थी।
अदलत ने इन तमाम इल्जामों को गलत पाते हुए याचिका कर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाकर याचिका को खारिज कर दिया है और शांता कुमार को क्लीन चिट दे दी है।
(1)