शिमला ।प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने पुलिस सेवा के सेवानिवृत अधिकारी पूर्व डीजीपी आई.डी. भंडारी परपलट वार करते हुए कहा है कि वह भाजपा के कहने पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रधान निजी सचिव सुभाष आहलुवालिया और कार्यकारी मुख्य सचिव पी मित्रा पर आरोप लगा रहे है जबकि इन दोनों के खिलाफ भाजपा की धूमल सरकार ने जांच कराई थी और जांच में कुछ नहीं पाया गया था। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि भंडारी ने प्रदेश सरकार और राज्य की कानून कार्यान्वयन एजेंसियों पर अनर्गल आरोप लगाए हैं। यह वक्तव्य एक ऐसे कुंठित अधिकारी का हताशा में दिया गया बयान प्रतीत होता है जिसकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं।वीरभद्र सिंह सरकार ने कहा है कि भंडारी का भाजपा के साथ राजनीतिक गठजोड़ है।
प्रवक्ता ने यहां जारी एक वक्तव्य में कहा कि फोन टैपिंग मामले की जांच अंतिम चरण में है और शीघ्र ही न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की जाएगी।
उन्होंने कहा कि जांच की तपिश से घबराकर भंडारी अपने राजनीतिक आकाओं के अनुसार ऐसे आधारहीन एवं तथ्यहीन बयानबाजी कर रहे हैं।प्रवक्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सेवानिवृति के बाद एक वरिष्ठ अधिकारी प्रदेश सरकार के कार्य की आलोचना कर रहा है जबकि कुछ दिन पूर्व वह स्वयं प्रदेश सरकार का हिस्सा था। उन्होंने कहा कि भंडारी जनता के समक्ष अपनी हताशा व्यक्त कर रहे हैं जो कि गैरवाजिब है और यह संकेत देती है कि उनका भाजपा के साथ राजनीतिक गठजोड़ है।
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा ने अपने कार्यकाल में सरकारी मशीनरी और अधिकारियों का पूर्ण राजनीतिकरण किया। उन्होंने कहा कि पूर्व पुलिस महानिदेशक का यह कार्य सरकारी मशीनरी के भगवाकरण का स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि भंडारी भाजपा की भाषा बोल रहे हैं और उनके हताश बयान से किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि सेवानिवृति के तुरंत बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा स्पष्ट कर दी थी।
उन्होंने कहा कि श्री भंडारी के लिए यह गैरवाजिब है कि वे कार्यवाहक मुख्य सचिव की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। 2011में पूर्व भाजपा सरकार ने इस मामले की जांच की थी और इसमें कुछ भी गलत नहीं पाया गया था। उन्होंने कहा कि अब उसी पुरानी मामले को उठाकर भंडारी भाजपा नेताओं की बात को ही दोहरा रहे हैं।
मुख्यमंत्री के प्रधान निजि सचिव के विरूद्ध भंडारी के झूठे आरोपों का प्रश्न है तो इस सम्बन्ध में मामला भाजपा सरकार के समय में बनाया गया था और यह रिकार्ड में है कि जांच एवं सुबूत के परिक्षण के बाद इस मामले को स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार को भेजा गया था और केन्द्र सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति न देकर अधिकारी को क्लीन चिट दी थी।
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