शिमला। भाजपा के वरिष्ठ नेता जगत प्रकाश नडडा की कल दिल्ली में होने वाली भाजपा के नए राष्टीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के साथ ही प्रदेश की राजनीति से भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री शांताकुमार और प्रेमकुमार धूमल का युग भी समाप्त हो जाएगा। हालांकि पार्टी ने पहले ही दोनों को मार्गदर्शक मंडल की श्रेणी में पहुंचा दिया है। नडडा-बिंदल के आगमन के बाद जयराम व अनुराग की राजनीति पर संस्पेंस के बादल छा गए है।
प्रदेश की राजनीति में कल से अब नडडा व प्रदेश भाजपा के नए चुने गए भाजपाध्यक्ष राजीव बिंदल का युग शुरू हो जाएगा। नडडा को शांता कुमार ने प्रदेश भाजपा में धूमल की काट में आगे बढ़ाया था । बाद में जब धूमलने मुख्यमंत्री बनने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भष्टाचार के मामले चलाए तो वीरभद्र सिंह भी नडडा को भाजपा में मदद करते रहे, जैसे वह आज मुख्यमंत्री जयराम की मदद करते है।
सता में रहते धूमल ने नडडा का कद बौना करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा 2008 से 2012 के बीच धूमल ने नडडा को प्रदेश से ही बाहर कर दिया व उन्हें 2010में राज्य सरकार के मंत्री पद इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया गया ।नडडा प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा पाले हुए थे। नडडा ने धूमल मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय भाजपा में संगठन की जिम्मेदारी संभाली। बाद में भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी का वर्चस्व होने के बाद नडडा के दिन बदलने लगे।
जोड़तोड़ की राजनीति में माहिर नडडा की तरह ही प्रदेश में बिंदल भी जोड़तोड़ की राजनीति व प्रबंधन में माहिर है। वह भी मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा पाले हुए है।बिंदल को राजनीति में धूमल ही लाए थे। सोलन से शांता के कटटर समर्थक महेंद्र नाथ सोफत को नजरअंदाज कर धूमल ने बिंदल को 2000 में सोलन उपचुनाव में टिकट दिलवाया। उस समय धूमल शांता के कुनबे का सफाया करने पर लगे हुए थे।उनके मंत्रिमंडल में तब सुखराम की हिविकां के कोटे से महेंद्र सिंह ठाकुर मंत्रीथे।धूमल व महेंद्र सिंह बिंदल को 2000 के उप चुनाव सोलन से जीता कर ले आए व उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाया।बिंदल व नडडा दोनों ही धूमल मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। लेकिन बाद में जब नडडा दिल्ली चले गए व धूमल की 2012 में दोबारा सरकार नहीं बनी तो बिंदल नडडा की ओर झुक गए।
याद रहे धूमल ने दिसंबर 2007में सता में आने के बाद भाजपा नेताओं के बजाय अपने बेटे व भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर को आगे बढ़ाने का अभियान चला दिया था। ऐसे में बाकी नेता अपना अलग रास्ता निकालने की कोशिश में थे।
2012 में दोबारा सता पर काबिज न होना धूमल के लिए घातक साबित हुआ। उसके बाद नडडा ने मोदी व अमित शाह को साथ लेकर धूमल को ठिकाने लगाने का अभियान छेड़ दिया। धूमल को पहला झटका 2014 के लोकसभा चुनाव में दिया गया। इस चुनाव में भाजपा आलाकमान ने प्रदेश भाजपा पर से धूमल के वर्चस्व को समाप्त कर दिया था।उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के भितरघात के बाद धूमल सुजानपुर से अपना चुनाव ही हार गए। वह चुनाव न हारते तो आज जयराम की जगह धूमल प्रदेश के मुख्यमंत्री होते । तब से लेकर अब धूमल हाशिए की ओर धकेले जाते रहे है।
धूमल ने शांता को हाशिए पर धकेलने का काम किया था।ये दीगर है कि किसी समय हमीरपुर में भाजपा के दिग्गज व शांता के लिए खतरा जगदेव चंद ठाकुर को ठिकाने लगाने के लिए शांता ने धूमल को आगे किया था। लेकिन बाद धूमल ही शांता के लिए खतरा हो गए व उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। इस खेल में बतौर प्रदेश प्रभारी मोदी भी धूमल के साथ रहे थे।शांता ने तब नडडा को आगे किया तो धूमल ने नडडा को भी ठिकाने लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी
अब नडडा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन रहे है। ऐसे में समझा जा रहा है कि शांता उम्र के हिसाब से राजनीति से बाहर हो ही गए है और नडडा धूमल को प्रदेश की राजनीति में दखल नहीं देने देंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक नडडा अपने मोहरे बिंदल का इस्तेमाल कर प्रदेश की राजनीति से धूमल युग की समाप्ति कर देंगे।हालांकि धूमल के पुत्र व मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य वित मंत्री अनुराग ठाकुर और भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड में कोषाध्यक्ष व धूमल के छोटे पुत्र अरूण धूमल के सहारे धूमल क्या बिसात बिछाते ये देखा जाना है।
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