कांगड़ा /शाहपुर। एक साल से ज्यादा समय से लंबित मांगों को लेकर सेंट्रल यूनिविर्सर्टी के टीचरों ने विवि के कुलपति प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री केखिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विवि के टीचरों ने टीचर यूनियन केे बैनर तले केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अस्थाई शैक्षणिक खण्ड,शाहपुर के प्रांगण में अपनी मांगों को लेकर विरोध दर्ज किया। विश्वविद्यालय प्रशासन की अोर से लंबे समय से उपेक्षित मांगों कीी इस तरह अनदेखी करने पर अध्यापक संघ ने कड़ा रोष जाहिर किया है।
अध्यापक संघ के महासचिव प्रोफेसर रविंदर सिंह ने रिपोर्टर्ज आइ डॉट कॉम से कहा कि स्टाफ की भर्ती के लिए दो बार विज्ञापन निकल चुके है ,लेकिन भर्ती नहीं हो रही है। जिसकी वजह से हर विभाग में स्टाफ की कमी है और कामकाज में असर पड़ रहा है।उन्होंनेे कहा कि विवि के पास पैसों की कमी नहीं है, व पैसा वापस जा रहा है। उन्होंने कहा कि अध्यापकों ने वीसी को दोबारा मांगपत्र दिया है। लेकिन जिस तरह का भरोसा उन्होंने पिछले साल दिया था उसी तरह का आश्वासन दिया है।
अध्यापक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहिंदर सिंह ने कहा कि अध्यापकों को चंद मांगे हैं,जिनमें जिसमें समूह बीमा, केन्द्र सरकार की वे स्वास्थ्य सुविधाएं जो अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों को सरकार द्वारा दी जाती हैं, प्रमुख हैं।विश्वविद्यालय प्रशासन की दैनिक कार्यवाई में होने वाले विलम्ब, वार्षिक इन्क्रीमेंट का सही समय पर न लगाया जाना , विभिन्न आवेदनों पर निर्धारित समय पर कार्यवाई न होना आदि ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं जिनकी अनदेखी के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन जवाबदेह है।संघ ने इस माँग पत्र की अनदेखी कीने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।
इस माँग पत्र में अध्यापकों को रिफ्रेशर एवं ओरिएंटेशन कोर्स पर जाने के लिए अलग से उनकी ड्यूटी लीव न काटे जाने, एकेडमिक डेवलेपमेंट फंड की व्यवस्था किए जाने, ट्रैवेल ग्रांटए स्टडी लीव, कैरियर एडवांस स्कीम की प्रोन्नति सम्बन्धी व्यवस्था की मांग की गई ।इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय में महिला अध्यापकों के छोटे बच्चों के लिए क्रेेेेच की व्यवस्था की मांग भी रखी गई जो केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत है।
संघ ने कहा है कि विश्वविद्यालय में मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं भी अनुपलब्ध हैं जिसका खामियाजा समय-समय पर अध्यापकों एवं विद्यार्थियों को उठाना पड़ता रहा है । विश्वविद्यालय के शिक्षकों को बैठने एवं पठन-पाठन के लिए उचित स्थान न होने के कारण शोध एवं अनुसंधान में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।
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