शिमला। लोकसभा की चारों सीटें बड़े अंतर से और छह में से दो सीटें विधानसभा की उपचुनाव में अपनी सरकार होने के बाद हार जाने के बावजूद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी बीवी कमलेश को देहरा से उप चुनाव में उतार कर बड़ा राजनीतिक जोखिम उठा लिया हैं। ये दांव चल हर उन्होंने संगठन व सरकार के अलावा अपने राजनीतिक दुश्मनों को बड़ा मौका दे दिया है कि वो स्कोर सेटल करने के लिए पूरी तरह से खेलें।इसी तरह की स्थिति लोकसभा चुनावों में विक्रमादित्य सिंह के सामने आ गई थी और विपक्ष के अलावा सरकार व संगठन में उनके ‘दुश्मनों’ ने उनसे अपने स्कोर सेटल करने में कोई चूक नहीं की थी।
इस कड़ी में उनके राजनीतिक दुश्मन सुधीर शर्मा ने तो हमीरपुर में भाजपा प्रत्याशी अशीष शर्मा के नामांकन के मौके पर एलान कर भी दिया कि वह सुक्खू से सूद समेत हिसाब चुकता करेंगे।सुधीर ने कहा कि वो अब चुनावों तक यहीं डेरा डालेंगे। उधर सुजानपुर से राजेंद्र राणा को भी मौका मिल गया है कि वो भी सुक्खू से अपना हिसाब चुकता करे।
याद रहे देहरा से जहां से सुक्खू ने अपनी पत्नी कमलेश को उपचुनाव में उतारा है वहां से पूर्व आजाद विधायक होशियार सिंह ने तत्कालीन भाजपा के फायरब्रांड व पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नजदीकी रविंद्र रवि को बुरी तरह से हराया था। होशियार सिंह के पास संसाधनों की कमी नहीं हैं।ऐसे में कमलेश को उनके मुकाबले खड़ा करना जोखिम भरा तो है ही साथ ही आत्मघाती भी हैं। बस एक ही रास्ता है कि कमलेश को किसी तरह धूमल परिवार का सहारा मिल जाए । देहरा में रविंद्र रवि व रमेश ध्वाला का तंत्र भी होशियार सिंह से हिसाब चुकता करने के लिए ताक में बैठा हैं।
हमीरपुर से उनके राजनीतिक सलाहकार सुनील बिटटू भी टिकट के दावेदार थे लेकिन पार्टी ने टिकट पूर्व कांग्रेसी नेता व मंत्री रणजीत सिंह वर्मा के पुत्र पुष्पेंद्र वर्मा को दिया। अब बिटटू वहां कितना काम करेंगे ये देखा जाना है। हालांकि बिटटू का ज्यादा जनाधार नहीं हैं।सरकार में रहते हुए उनकी छवि ज्यादा निखर नहीं पाई।
इसके अलावा लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों के साथ किस-किस ने किसके साथ क्या किया ये अंदरखाते सभी को पता हैं। ऐसे में सुक्खू ने विपक्ष के अलावा संगठन व सरकार में बैठे अपने दुश्मनों को स्कोर सेटल करने का मौका दे दिया हैं। वह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गए है कि अगर वो हमीरपुर व देहरा की दोनों सीटें हार गए तो उनकी कुर्सी दांव पर लगते देर नहीं लगेगी।
अब देखना है कि वो किस तरह से खुद इस चक्रव्यूह से निकाल कर लाते हैं। लोकसभा चुनावों में तो वो फिसडडी साबित हो चुके हैं।
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