शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने एनएचपीसी की ओर से चलाए जा रहे 180 मेगावाट के बैरा सियूल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को सुक्खू सरकार की ओर से अपने कब्जे में लेने की मुहिम को रोक दिया हैं। हाईकोर्ट के जस्टिस अजय मोहन गोयल ने एनएचपीसी की अर्जी पर सुक्खू सरकार के इस प्रोजेक्ट को टेक ओवर करने की मुहिम को आगामी आदेशों तक स्टे कर दे दिया हैं।
याद रहे ये परियोजना 1980 -81 में शुरू हो गई थी व ठेके के उपबंधों के मुताबिक एनएचपीसी को 40साल के बाद इस परियोजना को प्रदेश सरकार को वापस कर देना था। लेकिन जब प्रदेश् सरकार ने 40 साल का समय पूरा होने के बाद इसे अपने कब्जे में लेना चाहा तो एनएचपीसी ने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया।
एनएचपीसी का दावा है कि इस परियोजना का आधनिकीकरण और इसकर जीर्णोद्धार करने के बाद इसे हमेशा के लिए अपने लिए ले लिया था। एनएचपीसी का दावा है कि उसने ये काम अगस्त 2021 को पूरा कर लिया था।
ये प्रोजेक्ट रावी नदी पर बैरा, सियूल व भलदेह उपनदियों के पानी के बहाव के सहारे चलती हैं।
इस मामले की सुनवाई 22 अप्रैल को हुई व एनएचपीसी की ओर से इस मामले में देश के नामी वकील तुषार मेहता ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पैरवी की।
जस्टिस अजय मोहन गोय की एकल खंडपीठ ने इस मामले में सरकार नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
जस्टिस अजय मोहन गोयल ने 22 अप्रैल ये आदेश दिया -: Notice and reply in above terms.Having heard Mr. Tushar Mehta, learned Senior Counselappearing for the petitioner and having perused the deed of sale Annexure P-1 as well as the impugned communications
Annexure P-4, dated 26.03.2025 and Annexure P-7, dated05.04.2025, till further orders, this Court directs that let statusquo as it exists qua the “Baira Siul Hydroelectric 180 MWProject” be maintained by the respondents. Impugned
communication dated 26.03.2025 (Annexure P-4) and decisionof the Council of Ministers (Annexure P-7) qua the project in in
issue shall not be given effect to by the respondents-State till further orders.
मामले की अगली सुनवाई 26 मई को निर्धारित की गई हैं।
याद रहे सुक्खू सरकार ने एनएचपीसी के डुग्गर प्रोजेक्ट और एसजेवीएनएल के लुहरी, धौलासिद्ध समेत तीन परियोजनाओं को इन केंद्रीय उपक्रमों से वापस लेने की फैसला ले रखा हैं। केंद्र सरकार ने इन परियोजनाओंपर खर्च हुए 3400 करोड़ देने की मांग राज्य सरकार से की हैं। जबकि प्रदेश सरकार ने इस मामले में आजाद मूल्याकंक नियुक्त करने का फैसला लिया हैं।
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