शिमला। सोनिया और मोदी के बड़े दरबारियों के बीच अपने रसूक का दबदबा होने का भान हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर एडीएन वाजपेयी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भी करा दिया है। वाजपेयी ने दूसरी बार विवि का कुलपति बन कर अपने रसूख का जलवा ऐसा दिखाया कि वीरभद्र सिंह भी हैरान रह गए।वाजपेयी के दूसरी बार कुलपति बनने से पहले कहा जा रहा है कि सीएम कोकंसल्ट तक नहीं किया गया।बड़ा सवाल ये है कि क्या वीरभद्र सिंह इस मामले में दरकिनार कर दिए गए है।मुख्यमंत्री के अलावा वीरभद्र सिंह प्रदेश के शिक्षा मंत्री भी है।हालांकि नियमों में सरकार को कंसल्ट करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
राज्यपाल उर्मिल सिंह ने उन्हें दूसरी बार कुलपति बना दिया हो और वीरभद्र सिंह से केवल औपचारिकतावश ही पूछा गया हो ,ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है और ये इस बात का भी संकेत है कि वीरभद्र सिंह की विभिन्न चीजों पर किस तरह पकड़ कम हो गई है।विवि में चर्चे है कि सीएम कार्यालय से लिखित में नहीं केवल जुबानी सहमति आई और सुबह दस बजे विवि को उनके दोबारा कुलपति बनने की जानकारी भेज दी गई।
बताते है कि इससे कुलपति गदगद हो गए लेकिन बताते है कि कुलपति का ये अंदाज मुख्यमंत्री के करीबी आईएएस अफसरों और उनके करीबी नेताओं को कुछ अखरा है। अभी वो सारे मौन हो गए लेकिन राज्यपाल उर्मिल सिंह का कार्याकाल समाप्त होने के बाद असली ड्रामा शुरू होना है।हालांकि बताते है कि सोनिया दरबार की तरह ही मोदी सरकार में भी वाजपेयी की अच्छी पैंठ हैं और वो
विवि से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वीरभद्र सिंह वाजपेयी को दूसरे कार्याकाल का जिम्मा नहीं सौंपना चाहते थे। लेकिन वाजपेयी ने राज्यपाल उर्मिल सिंह का दरवाजा खटखटाया और वीरभद्र सिंह की मंशा के खिलाफ जाकर दोबारा विवि के कुलपति बन गए।ये दावा कुलपति के दौड़ में कांग्रेसियों के करीबी कर रहे है।
मोदी सरकार के सता में आने पर दिल्ली में नजीब जंग और हिमाचल में उर्मिल सिंह ही दो ऐसे नेता है जिन्हें सोनिया गांधी ने मनमोहन सरकार में राज्यपाल की कुर्सी थमाई थी,लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें हटाया नहीं। उर्मिल सिंह का कार्याकाल चार -पांच महीनों का ही बचा है।बावजूद इसके कुलपति के मामले में वो वीरभद्र सिंह पर भारी पड़ गई।
प्रोफेसर वाजपेयी ने का पिछला तीन साल का कार्याकाल कोई बहुत अच्छा नहीं रहा है। वो एससीए के चुनाव कराने में नाकाम रहे । वीरभद्र सिंह सरकार की इस मामले में जमकर फजीहत हुई। छात्रों पर लाठी चार्ज हुए जो इसका नजला भी वीरभद्र सिंह सरकार पर ही पड़ा । बीए से एमए तक छात्रों के रिजल्ट चार से पांच महीनों बाद निकल रहे है।जबकि विवि 40 दिनों में परिणाम घोषित करने का दावा करता रहा है।यही स्थिति रिअपीयर के रिजल्ट को लेकर भी है। जिसका संदेश ये जा रहा है कि वीरभ्ाद्र सिंह सरकार की गवर्नेंस पर पकड़ खत्म हो गई है।
यही नहीं बेहताशा फीस बढ़ोतरी कर दी गई है। प्राध्यापकों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना करने में जिस तरह से बाजीगरी दिखाई जा रही है,वह अपने आप हैरान करने वाली है। इस तरह वीरभद्र सिंह सरकार की लोकप्रयिता का ग्राफ गिराने में कोई कोर कसर इन तीन सालों में नहीं छोड़ी गई है।हालांकि इसमें वीरभद्र सिंह के अपने लोगों का हाथ भी कम नहीं है। चाहे वो ईसी के सदस्य हो या कोई और।अब छात्र कुलपति को दूसरी बार नियुक्ति देने के विरोध में सड़कों पर है।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है।
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