शिमला। प्रदेश की कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के खाली होते खजाने से 97 करोड़ रुपए एक ही दिन में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराने पड़े हैं। इतनी बड़ी ये रकम केवल एक बिजली प्रोजेक्ट की अप फ्रंट मनी की 60 करोड़ की रकम पर लगे ब्याज-ब्याज की हैं।60 करोड़ की रकम पर करीब 112 करोड़ रुपए का ब्याज हो गया है। इसमें से अभी तक केवल 97 करोड़ रुपए की जमा कराया गया हैं। जबकि 75 करोड़ रुपए सुक्खू सरकार को अभी जमा कराने है।जिसके लिए अदालत ने चार सप्ताह का समय दिया हैं। ये मामले अपने आप में किसी स्कैंडल से कम नहीं हैं।
ये रकम भी जस्टिस अजय मोहन गोयल के आदेशों के बाद जमा कराई गई हैं।
ये है मामला
जून 2006 में गैमन पावर कंपनी ने तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार से किन्नौर में 261 मेगावाट यंगथंग खाब बिजली प्रोजेक्ट के लिए बोली दस्तावेज जारी करने का आग्रह किया था। यह प्रक्रिया शुरू हुई और इसके बाद एक अगस्त 2008 को धूमल सरकार में गैमन कंपनी ने अप फ्रंट मनी के 52 करोड़ 85 लाख 25 हजार रुपए सरकार के खाते में जमा करा दिए। गैमन कंपनी ने इस प्रोजेक्ट का निर्माण करने के लिए मैसर्स यंगथंग पावर वैंचर्स लिमिटेड गठित की। 16 फरवरी 2009 को ही धूमल सरकार में प्री इम्प्लीमेंटेशन एग्रीमेंट भी हो गया।
प्रोजेक्ट के आवंटन के बाद कंपनी ने मैसर्स हाइड्रो तस्मानिया कंस्लटिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को साइट की प्रारंभिक जांच पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया व जांच में पता चला कि लियो गांव के नजदीक रीवर बैड की सतह से जहां पर 2751 मीटर की ऊंचाई पर डायवर्जन बांध बनना था उससे पूरा लियो गांव डूब क्षेत्र में जाना था। इस ऊंचाई को बदलने के लिए कंपनी ने 2009 में ही तत्कालीन धूमल सरकार को चिटठी लिख दी। 2009 की इस चिटठी के बाद 4 अगस्त 2011 को दो साल बाद धूमल सरकार ने जवाब दिया और बांध की ऊंचाई फुल रिजर्वायर स्तर पर 2763 मीटर और टेल वाटर स्तर पर 2538 मीटर कर दी।
लेकिन पर्यावरण कारणों से स्थानीय लोग इस परियोजना को लगाने का विरोध करते रहे। जून 2014 में वीरभद्र सिंह सरकार जब सता में थी तो कंपनी ने इस आवंटन को खारिज करने का आग्रह किया और अपफ्रंट मनी की रकम लौटाने का आग्रह किया। दिलचस्प यह है कि कंपनी ने तत्कालीन सरकार से 127 करोड़ 94 लाख रुपए लौटाने का आग्रह किया था। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट के निमार्ण के लिए समयावधि में छूट दे दी । हालांकि सरकार ने दलील दी थी प्रोजेक्ट के निर्माण में कंपनी खुद जिम्मेदार हैं।
मामला आर्टिबिट्रेशन में चला गया और जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने 23 जनवरी 2023 के अवार्ड में कहा है कि चूंकि कंपनी ने प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के पैमानों का कही उल्लंघन नहीं किया है ऐसे में अप फ्रंट मनी की रकम को जब्त नहीं किया जा सकता। इसके अलावा तत्कालीन सरकार बांध की ऊंचाई के मामले में दो साल तक फाइल पर बैठी रही हैं। ऐसे में देरी के लिए कंपनी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस दीपक गुप्ता के मुताबिक सरकार को कोई नुकसान भी नहीं हुआ है और सरकार को 60 करोड। 35 लाख 25 हजार रुपए अप फ्रंट मनी और बाकी खर्च के कंपनी को अदा करने का अवार्ड सुना दिया। इसके अलावा सितंबर 2014 से दस फीसद ब्याज अदा करने के आदेश भी दिए।
इस अवार्ड को सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी लेकिन अदालत ने कहा कि पहले ये 60 करोड़ 35 लाख 25 हजार और उस पर 2014 से दस फीसद ब्याज जमा कराओ। सरकार इसे टालती रही और ब्याज समेत ये रकम 31 अक्तूबर 2014 से लेकर 31 अक्तूबर 2024 तक 172 करोड़ 67 लाख 83हजार 656 रुपए हो गई है। इसमें से आर्थिक संकट झेल रही सुक्खू सरकार को 19 अक्तूबर को प्रदेश हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में 96 करोड़ 72 लाख 19 हजार 802 रुपए जमा कराने पड़े हैं। करीब-करीब 122 करोड़ रुपए ब्याज –ब्याज के ही बन गए हैं। अभी 75 करोड़ आगामी चार सप्ताह में जमा कराना पड़ेगा। तब तक और ब्याज लग जाएगा।
हालांकि जस्टिस दीपक गुप्ता के इस फैसले को सुक्खू सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। अब देखना है कि सुक्खू सरकार की कानूनी टीम इस मामले को कितनी गंभीरता से लड़ती है और जनता के खजाने को किस तरह बचा पाती हैं।
(24)