शिमला । प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने जिस तरह किन्नौर में लगने वाले 480 मेगावाट के जंगी थोपन व 480 मेगावाट के थोपन पोवारी पावर प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बगैर अंबानी के रिलायंस इ्रफ्रास्ट्रक्चर लि. को देने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उद्योगपति अदाणी ग्रुप को ब्रेकल की ओर से जनवरी 2008 में जमा कराए 280 करोड़ रुपए को सरकार के खजाने से वापस करने के फैसले ने सरकार की नीयत पर सवाल खड़े दिए है। साथ ही ये संदेह भी पैदा हो गया है कि क्या कोई मुख्यमंत्री को ब्लैकमेल कर रहा है,या मुख्यमंत्री दबाव में है या रिश्वतखोरी का कोई बड़ा धंधा हुआ है। सबसे ज्यादा संदेह रिलायंस की ओर से सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने की एवज में सरकार की ओर से सिद्धांतिक तौर पर पर्यावरण मंजूरी दिलाने की शर्त ने पैदा किया है।
इस तरह मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई शिकंजे के बाद देश के दो नामी उद्योगपतियों के न्यारे व्यारे लग गए है, पर प्रदेश की नदियों के जल संसाधन को किस तरह उद्योग पतियों के आगे घुटने टेक कर उनके सुपुर्द किया जा रहा है,ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। चूंकि ये संसाधन प्रदेश की जनता के है,इन पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ,उनकी केबिनेट,चंद नौकरशाहों व उद्योगपतियों का एकाधिकार नहीं है।
। इसी के साथ बड़ा सवाल पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल व भाजपा की चुप्पी पर भी है। सवाल तो वीरभद्र सिंह के बाकी मंत्रियों की चुपपी पर भी है।जिस केबिनेट में अदाणी को ये 280 करोड़ रुपए लौटाने का फैसला हुआ था उसमें कौल सिंह ठाकुर,सुधीर शर्मा समेत तीन मंत्री नहीं थे।
ये संदेह इसलिए पैदा हो रहा है कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को 10 अगस्त 2015 को निदेशक एनर्जी अजय शर्मा ने लेटर ऑफ इंटेंट को लिखा ।तीन पेज की इस चिटठी में लिखा कि सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को देने का फैसला लिया है।
सरकार ने यहां अबांनी की इस कंपनी के साथ सौदा किया कि उसे सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका को वापस लेना होगा।साथ ही 346 करोड़84 लाख 80 हजार रुपया अप फ्रंट मनी जमा कराना होगा। अजय शर्मा ने रिलायंस से प्रार्थना कि इस लेटर ऑफ इंटेट को 15 दिनों के भीतर स्वीकार करे।
इसके लेटर के जवाब में जो रिलायंस ने शर्त रखी है वो कई संदेहों व सवालों को खड़ा कर रही है। रिलायंस ने 24 अगस्त 2015 को एक तीन पेज की चिटठी निदेशक एनर्जी को लिखी। उसमें कहा गया जिन शर्तों पर ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट आवंटित हुआ था ,उन्हीं पर इसे रिलायंस को देने पर आभार। सिंद्धातिक तौर पर रिलायंस सरकार की इस आफर को मंजूर करता है।
रिलायंस ने कहा कि ब्रेकल ने 1 अप्रैल 2014 को अपनी याचिका वापस ले ली थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी इजाजत दे दी थी1 पिछली15 अक्तूबर2014 की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए थे कि फ्रैश टेंडर पर जो बोलियां आई हैं उन पर आगे की कार्यवाही तो की जा सकती है लेकिन अदालत का आदेश आने तक प960 मेगावाट के इस प्रोजेकट का किसी को आवंटन नहीं होगा।
रिलायंस ने कहा कि याचिका को वापस लेने के लिए ज्वाइंट अर्जी देनी होगी ज्वाइंट ड्राफट तैयार होने से पहले वो प्रदेश सरकार से कुछ कहना चाहते है।इस तरह रिलायंस ने अब प्रोजेक्ट से जुड़े पर्यावरण संबधी पहलुओं को उठा दिया है।रिलायंस ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में 15 किमी हैडरेस टनल बनेगी जो 28 किमी तक नदी को प्रभावित करेगी।
रिलायंस ने अपने एक दूसरे 300 मेगावाट के हाइड्रो पावर पुर्थी का हवाला देकर कहा कि इसे अप्रैल 2011 में उसे आवंटित कर दिया था। लेकिन the expert appraisal committee of Ministery of Environment,Forest and Climate Change is yet to grant theTerms of references and the pre construction Activity clearance as Purthi project was proposed as extension of Reoli Dugli HEP,utilizing itsTail water discharge and affecting 23 km countinous length of river.इसके अलावा नदी के बहाव का मसला भी उठाया है।
संशोधन रिलायंस ने कहा कि पर्यावरण से जुड़े इन पहलुओं और मौजूदा प्रैक्टिस को देखते हम इसमें समझदारी समझते है कि State should obtain in-principle clearance of MoEF& CC on the development of projects as an integrated scheme.
In view of above,you would kindly agree that disposal of SLP in Hon’ble SC requires certain compliances to be made.MoEF&CC’s in –principle clearance on the integrated development of the project will also take some time.Therefore,we request DOE,GOHP to kindly extend the validity of LOI by atleast 8 weeks or till the disposal of SLP by SC and grant of in-principle approval by MoEF&CC,whichever is later.
ये चिटठी ग्रुप प्रेसिडेंट एएन सेतुरमन ने लिखी है। अब वीरभद्र सरकार इस बात फंसी है कि वो इन शर्तों का क्या करे।इसे रिलायंस की दबंगई कहे या कुछ और कि वो पर्यावरण क्लिीयरेंस भी सरकार से दिलाने की मांग कर रहा है। हालांकि प्रदेश में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है। हालांकि प्रदेश सरकार ने 4 मार्च2014 को पहले ही अपनी पॉलिसी में तीस से ज्यादा शर्तों में ढील दे कर उदयोगपतियों के आगे घुटने टेक दिए है। ये केंद्र में मोदी सरकार के सता में आने से भी पहले कर दिया है।
रिकार्ड के मुताबिक सरकार ने इस प्रोजेक्ट के दोबारा टेंडर मंगवाए थे लेकिन हर बार एक ही बोलीदाता आया था। आखिर में फ्लैक्स इंडस्ट्री ने टेंडर भरे । लेकिन सरकार ने उसे रदद कर दिया चूंकि वो शर्तों को पूरा नहीं कर रहा है। हालांकि ये अपने आप में जांच का विषय हो गया है। इस छह हजार करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट के लिए दुनिया से कोई निवेशकर्ता ही नही मिल रहा है। संदेह तो ये भी है कि कहीं ऐसा तो नहीं है किसी को आने ही नहीं दिया जा रहा हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उद्योग पति अदाणी को अप फ्रंट का 280 करोड़ रुपया वापस करने का फैसला भी कई संदेह पैदा कर रहा है। ये पैसा ब्रेकल ने जमा कराया था बेशक उसने अदानी से कर्ज लिया था। लेकिन वो सीधे तौर पर सरकार के साथ कभी भी लेनदेन में नहीं था।ऐसे में जब सरकार ने उससे कभी पैसा लिया ही नहीं तो उसे पैसा क्यों वापस किया जा रहा है। दूसरी ओर ने ब्रेकल को आवंटित ये प्रोजेक्ट इसलिए रदद किया गया था क्योंकि उसने सरकार के साथ फ्राड किया था।इस फ्राड के आलोक में प्रदेश हाईकोर्ट ने 2009 में तत्कालीन धूमल सरकार के काल में रदद कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ ब्रेकल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल 2014 कोखारिज कर दिया या फिर ब्रेकल को याचिका वापस लेने को कहा था। याचिका वापस ले ली गई थी। इसी याचिका में अदाणी ग्रुप ने भी पार्टी बनने के लिए अर्जी दी थी। चूंकि ब्रेकल ने याचिका वापस ले ली थी तो अदाणी ग्रुप की अर्जी भी तबाह हो गई। इसके बाद अदाणी ग्रुप की ओर से सरकार को करीब दर्जन भर बार चिटिठयां लिखी गई है व ब्रेकल की ओर से जमा कराए 280 करोड़ अपफ्रंट मनी को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाने का आग्रह किया जा रहा था। ब्रेकल ने 2008 में ये पैसा जमा कराया था व तब से इस पैसे पर 15 प्रतिशत ब्याज लगाना है। गंभीर ये है कि वीरभद्र सिंह सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये स्टैंड ले चुकी है कि उसने कभी भी अदाणी से अप फ्रंट मनी नहीं लिया।इसलिए उसका अदाणी से कोई लेना देना नहीं है।बावजूद इसके वीरभद्रसिंह सरकार ने अदाणी को 280 करोड़ रुपया वापस लौटाने का हैरानी वाला फैसला लिया है।सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये भी कह चुकी है कि ब्रेकल की ओर से जमा कराए गए अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए को जब्त करने जा रही है व ब्रेकल की वजह से हुए नुकसान की उससे भरपाई की जाएगी।इसके लिए सरकार ने ब्रेकल को बाकायदा एक शोक कॉज नोटिस भेजा व उससे 2713 करोड़ का डैमेज भरने को कहा। ब्रेकल ने इस नोटिस का जवाब दे दिया उसके बाद सरकार खामोश हो गई।
सरकार ने कोई कोई रिकवरी नहीं की बल्कि उल्टे 980 मेगावाट का प्रोजेक्ट अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की झोली में डाल दिया व 280 करोड़ अगर ब्याज भी इसमें जमा है तो करीब पांच सौ करोड से अदाणी की गोद भरने का इंतजाम कर दिया और 2713 करोड़ जो ब्रेकल से बतौर डैमेज वसूलने थे उस पर खामोश रह कर उसे खुले आम छोड़ने का रास्ता दे दिया। इसमें जनता व राज्य का हित किस तरह का ये कोई भी समझ नहीं पा रहा है। रिलायंस को 2006 में हुए टेंडर के आधार पर प्राजेक्ट दे दिया।जबकि उसकी बोली के रेट दूसरे नंबर पर थे।सितंबर 2015 में उन्हीं शर्तों पर प्रोजेक्ट आवंटित करना प्रदेश के संसाधनों को लुटाने जैसा है। कंपीटीशन तो कहीं है ही नहीं है। सवाल ये भी है कि अगर कोई बोली नहीं लगा रहा है तो जरूरी थोड़े ही है कि प्रोजेक्ट लगा ही लेनाहै। चार पांचसाल बाद,जब निवेशकर्ता सामने आए और अच्छी बोली लगाए तो भी तो प्रोजेक्ट लगाया जा सकता है।टाफियों की तरह प्रोजेक्ट को बांट देना किसी की समझ में नहीं आ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि नदियां सूख रही है या ये गायब हो जाएगी।ये जनता का संसाधन है इसे इस तरह बेदर्दी से उदयोगपतियों को लुटाना अपराध करना है।
इस मसले पर सबसे ज्यादा हैरानी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल व प्रदेश भाजपा की चुप्पी पर है। ब्रेकल का सारा कांड उन्हीं की सरकार के समय बाहर आया था।उनकी सरकार दिसंबर 2012 तक प्रदेश में रही लेकिन ब्रेकल के खिलाफ कोई कार्रवाई उनकी सरकार ने की हो ऐसा किसी को पता नहीं है। सारा कांड बाहर निकालने के बाद उनके चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने क्या क्या गुल खिलाए ये अक्तूबर 2009 में प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से ब्रेकल को प्रोजेक्ट रदद करने को लेकर दी जजमेंट में दर्ज है। लेकिन उन्होंने वीरभद्र सिंह व उनकी केबिनेट व नौकरशाहों व बाकियों के खिलाफ कार्रवाई तो की ही नहीं उल्टे बड़ा कांड करते हुए उनकी केबिनेट ने इस 960 मेगावाट के प्रोजेक्ट को ब्रेकल के पास ही आवंटित रहने का सनसनी खेज फैसला ले लिया। यही नहीं ये उन्हीं की सरकार में हुआ था कि इस मसले पर विचार करने के बनी कमेटी से जिस अफसर आईएएस अजय मितल ने ब्रेकल की कारगुजारियां सामने लाई थी उसे कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज से बाहर कर दिया था। और ब्रेकल के प्रतिनिधियों के अलावा अदाणी ग्रुप के प्रतिनिधियों को भी कमेटी की बैठक मौजूद रहने की इजाजत दी थी। इस पर प्रदेश हाईकोर्ट ने भी हैरानी जताई थी कि और कहा थी कि ये अदालत समझ नहीं पा रही है कि बैठक में अदाणी ग्रुप के प्रतिनिधि कैसे व क्यों मौजूद रहे थे। दूसरे अदाणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उद्योगपति है,उन्हें वीरभद्र सिंह सरकार जनता के खजाने से 280 करोड़ रुपए दे रही है तो धूमल व भाजपा की जुबान बंद हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। चूंकि ये करीब 33 सौ करोड़ (ब्याज समेत अदानी के करीब पांच सौ करोड़ व ब्रेकल पर डैमेज के 2713 करोड़) व किन्नौर में प्रदेश के जल संसाधन का मामला है,सवाल तो पूछे ही जाएंगे।आखिर सवाल ये भी उठेगा कि वीरभद्र सिंह व धूमल किसके मुख्यमंत्री रहे व हैं, जनता के या उदयोगपतियों के ।
ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कैसे-कैसे मुख्यमंत्री,मंत्री व नौकरशाह रहे है और आज फिर ताल ठोक रहे है कि वो प्रदेश में सरकारें बनाएंगे। ये हैरान कर देने वाला है कि 2015में हमारे मुख्यमंत्री,मंत्री नेता ,नौकरशाह व उदयोगपति ये सारे खेल खेल रहे है।
यहां जाने किन्नौर में लगने वाले 960 मेगावाट की की इस प्रोजेक्ट् की पूरी कहानी-:
वीरभद्र सरकार ने 1दिसंबर2006 को किन्नौर के जंगी थोपन व थोपन पवारी हाइड्रो 960 मेगावाट के दो प्रोजेक्ट मैसर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी और मैसर्स ब्रेकल किन्नौर पावर लिमिटेड को आवंटित आवंटित किए थे।
960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट के लिए तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने अक्तूबर 2005 में ग्लोबल टेंडर के लिए विज्ञापन निकाला। विज्ञापन में शर्त थी कि बोलीदाता की मजबूत वि㠑तीय व तकनीकी आधार होना चाहिए with adequate free investible reserves and surplus होना चाहिए।इसके अलावा बोलीदाता के पास जरूरी तकनीकी क्षमता होनी चाहिए।लेटर इॉफ अवार्ड के तुरंत बाद 50 प्रतिशत अफ्रंट मनी जमा करानी होगी।बोली दस्तावेज जमा कराने की अंतिम तिथि 21जनवरी 2006 थी।बोली दस्तावेज नवंबर 2005 में जारी किया गया ।इसकेबाद 27 दिसंबर 2005 को कोरिजेंडम जारी कर पहली शर्त जोड़ी कि प्रदेश सरकार को इक्विटी 49 प्रतिशत का अधिकार होगा।बोली जमा कराने की आखिरी तिथि 16 मार्च 2006 तक बढ़ा दी गई। ब्रेकल व रिलायसंस ने दोनेां ने बोली दस्तावेज जमा कराए।राज्य विद्युत बोर्ड ने कुछ सवाल उठाए और आखिर में टेंडर 5 सितंबर 2006 को खोल दिए गए।ब्रेकल की बोली सबसे ज्यादा पाई गई।16 नवंबर 2006 को रिलायंस को ब्रेकल की बोली के मिलान को कहा गया।1दिसंबर 2006 को लेटर ऑफ इंटेट ब्रेकल को जारी कर दिया गया व दोनों प्रोजेक्टस के ठेके ब्रेकल को अवार्ड कर दिए । ब्रेकल ने 36 लाख प्रति मेगावाट की बोली लगाई थी जो सबसे ज्यादा थी।। इसे प्री-इंपलीमेंटेंशन एग्रीमेंट साइन करने और अपफ्रंट मनी जमा कराने के निर्देश वीरभद्र सिंह सरकार ने दे दिए।
ब्रेकल ने 9 दिसंबर 2006 को लेटर ऑफ इंटेट स्वीकार कर सरकार को बताया कि वो प्रीइंप्लीमेंटशनएग्रीमेंट को ड्राफ्ट करने जा रही है।इस बीच 11 दिसंबर 2006 को सरकार ने हिमाचल हाइड्रो पावरपॉलिसी अधिसूचित कर दी। और इधर ब्रेकल अफ्रंट मनी जमा नहीं कराया।
20 अगस्त 2007 को रिलायंस ने चिटठी लिखकर सरकार को बताया की वो ब्रेकल की बोली के साथ मिलान करना चाहती है और ब्रेकल ने चूंकि अपफ्रंट मनी जमा नहीं कराया है इसलिए ठेका उसे दिया जाए।इसी साल 25 सितंबर और 1 नवंबर को रिलायंस ने इसी तरह की और चिटिठयां लिखी।
लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने जब कोई गौर नहीं किया तो रिलायंस ने प्रदेश में जब चुनाव आचार संहिता लग गई थी तो इस बीच 17 नवंबर 2007 को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। पहली सुनवाई 13 दिसंबर 2007 को हुई और सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किए गए ।
इस बीच प्रदेश में चुनाव हो गए और प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल की सरकार सता में आ गई। इस बीच हाईकोर्ट की सुनवाई से पहले 7 जनवरी 2008 को धूमल सरकार ने ब्रेकल को शो कॉज नोटिस जारी कर पूछा कि उसे दिया ठेका रदद क्यों करा दिया जाए। क्योंकि उसने न तो अप फ्रंट मनी जमा कराया है ओर न ही प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए कुछ किया है।
29 जनवरी2008को ब्रकल किन्नौर प्राइवेट लिमिटेड ने ब्रेकल कारपोरेशन की ओर से 173.43 करोडद्य रुपया अप फ्रंट मनी का जमा करा दिया।रिलायंस ने 3 मार्च 2008 को अपनी याचिका में एक अर्जी लगा दी कि अप फ्रंट मनी को स्वीकारन किया जाए।और याचिका में बदलाव करने को अर्जी दाखिल कर दी।सुनवाई 22 अप्रैल2008 को लगी।इसके बाद सरकार ने ब्रेकल को अप फ्रंट मनी को देरी से जारी करने के लिए उस पर ब्याज जमा कराने के निर्देश दिए। 1 मई 2008 को सरकार ने अदालत में बताया कि वो ब्रेकल के साथ प्री -इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट में नहीं जाना चाहती। 3 जून 2008 को अदालत ने आदेश दिया कि चूंकि सरकार की ओर से समय समय पर अदालत में दिए गए शपथ पत्र विरोधाभासी है । इसपर धूमल सरकार के एजी ने कहा कि सरकार को अपना स्टैंड स्पष्ट करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाए।यहां ये महत्वपूर्ण है कि अदालत में सरकार की ओर से दिए गए शपथपत्र विरोधभासी थे। जिन अफसरों ने ये विरोधभासी शपथपत्र दिए थे उनके खिलाफ आज तक क्या कार्यवाही हुई किसी को पता नहीं है। अदालत ने समय दे दिया और अदालत के निर्देशों पर धूमल सरकार की केबिनेट में विचार के लिए मेमोरेंडम तैयार किया गया।
ऐसे निकला था घोटाला-
इस मेमोरेंडम को तैयार करने से पहले धूमल सरकार ने पुलिस व आयकर विभाग से जांच कराई।
जांच के बाद तैयार इस मेमोरेंडम में जो सामने आया वो आंखे खोलने वाला था।
जांच के आधर पर मेमोरेंडम में बताया गया कि ब्रेकल एनवी ने गलत त्थ्य दिए कि ये कंपनी 13 फरवरी 2005 को बनी है जबकि ये 13 फरवरी 2006 को बनी थी।ब्रेकल ने दावा किया था13 मार्च 2006 को बब्रेकल की ओर से प्री कांट्रेक्ट ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट जो सरकार को दिया था जिसमें कहा गया था कि मैसर्स एसएनसी-लावालीन बोली में 30 प्रतिशत का इक्विटी पाटर्नर हैं,लेकिन जांच में इन कंपनियों ने ऐसा होने से इंकार कर दिया।
ब्रेकल का ये दावा कि मैंसर्स स्टैंडर्ड बैंक 45 प्रतिशत का इक्विटी पार्टनर है, भी गलत पाया गया। धूमल सरकार की ओर से कराई गई विजीलेंस जांच में स्टैंडर्ड बैंक ने इस तरह की किसी तरह की पार्टनरशिप से इंकार किया और इसे झूठा बताया।13 मार्च 2006 क्लेरिफिकेशन के तौर पर ब्रेकल की ओर से कहा गया कि मैसर्स ब्रेकल की कंपनी जेवी में कोई इक्विटी नही है।कंपनी की सारी इक्विटी एसएनसी लावालीन में 30 फीसद,मैसर्स स्टैंडर्ड बैंकस की 45 प्रतिशत,इको सिक्योरिटीज की 5 प्रतिशत और एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर ओवरसीज की 10 प्रतिशत व मैसर्स हालक्रॉ कंस्ल्टिंग की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। असल में ब्रेकल विभिन्न कंपनियों की एक एसोसिएशन थी जिसे एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी दर्शाया गया।लेकिन जब जांच हुई वदस्तावेज सामने आए तो इनमें से कोई भी कंपनी ज्वाइंट वेंचर में हिस्सेदार नहीं था और ब्रेकल एनवी के सारे दावे झूठे थे।
ब्रेकल एनवी ने बिजली विभाग को दिए जवाब में 21 मई 2008 की चिटठी में कहा कि वो मैसर्स अदानी पावर को 49 प्रतिशत हिस्सेदारी देने को सहमत है। लेकिन ये आवंटन शर्तों व पीआईए के खिलाफ था।इस सवाल का जवाब आज भी नहीं मिल रहा है कि ब्रेकल असल में अलग कंपनी थी या पीछे से अदानी का ही कोई खेल चल रहा था।
अपफ्रंट मनी को जमा करने में देरी के लिए ब्रेकल ने हमेशा विदेशी कंपनी होने की आड़ ली व आखिर में जब अपफ्रंट मनी जमा कराई तो वो इंडियन सोर्स से कराई ।केिबनिेट में विचार के लिए तैयार किए गए इस मेंमोरंडम में कहा गया कि कंपनी का ये दावा कि वो नीदरलैंड की कंपनी है, बेहद संदेहास्पद है।टैक्स हैवन आइसलैंड Curacao में कंपनी का बनना गंभीर संदेह उठाता है। यही नहीं नीदरलैंड का पता भी पोस्ट बॉक्स नंबर पर हैं।
मैसर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी कंपनी की गठन के व प्रोजेक्ट की बोली के समय पेड अप कैपिटल कुल एक डॉलर थी जबकि ये प्रोजेक्ट छह हजार करोड़ रुपए का था। यहीं नहीं मैसर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी की ओर से बनाई गई भारतीय कंपनी मैसर्स ब्रेकल किन्नौर पावर प्राइवेट लिमिटेड की पेड अप कैपिटल केवल आईएनआर एक लाख थी और कंपनी 9 मार्च 2007 को जालंधर के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी के दफ्तर मे रजिस्टर हुई थी।
इन दोनों कंपनियो में कॉमन डायरेक्टर और प्रमोटर नहीं थे। मजे की बात है कि कंपनी का बोली दस्तावेज का ये दावा कि मैसर्स एसएनसी-लावालीन,मैसर्स स्टैंडर्ड बैंक ,मैसर्स इको सिक्योरिटीज व मैसर्स हालक्रौ कंस्लटिंग इंडियन ज्वाइंट वेंचर कंपनी मैसर्स ब्रेकल किन्नौर पावर प्राइवेट लिमिटेड में शेयर होल्डर के पार्टनर ही नहीं थे।
अप फ्रंट मनी का पैसा ब्रेकल कारपोरेशन एनवी के लेटर हैड के तहत जमा कराया गया जबकि पैसा असल में मैसर्स ब्रेकल किन्नौर पावर लि. के खाते से आया। इस तथ्य को सरकार की ओर से कराई गई जांच के दौरान ब्रेकल ने माना भी।
आयकर विभाग की ओर से 23 मई 2008 को मिली जांच रिपोर्ट में कहा गया कि ये कंपनी पेपर कंपनी लग रही और इसके पास इसे आवंटित प्रोजेक्ट को विकसित करने की क्षमता या विशेषज्ञता ही नहीं है। हिमाचल प्रदेश के विजीलेंस विभाग की विजीलेंस रिपोर्ट में गया कि आवंटन के इस मामले में आगे जांच की जरूरत है और कंपनी को प्रोजेक्ट आवंटन में प्रथम दृष्टया केस धारा 420 के तहत बनता है।
विभिन्न कंपनियों के साथ किए गठजोड़ के आधार पर कंपनी की तकनीकी व वितीय स्ट्रेंथ के सभी दावे जो बोली के समय किए गए थे संदेहास्पद लगते है क्योंकि मैसर्स एसएनसी लावानी एंड मैसर्स स्टैंडर्ड बैंक ने इस तरह के किसी भी गठजोड़ से इंकार कर दिया है।
इसके बाद केबिनेट में 4 बिंदुओं पर विचार के लिए इस मेमेारेंडम को रखा गया। जिसमें ब्रेकल को 1 दिसंबर 2006 में आवंटित इस 960 मेगावाट के प्रोजेक्ट को रदद करने व अगर इसे रदद किया जाता है तो इसे रिलायंस को देने या दोबारा टेंडर निकालने और ब्रेकल एनवी के खिलाफ जैसा कि विजीलेंस की प्रारंभिक इंक्वारी में सिफारिश की गई है कि 420 के तहत मामला दर्ज किया जाए ,मामाला दर्ज करने और ब्रेकल एनवी को अप फ्रंट मनी को जब्त करने और प्रोजेक्ट को रदद करने के बारे में शो कॉज नोटिस क्यों न दिया जाए आदि पर विचार करना था ।
7जुलाई 2008 को धूमल केबिनेट ने ब्रेकल एनवी को आवंटन रदद करने और अप फ्रंट मनी को जब्त करने का नोटिस जारी करने, प्रोजेक्ट के लिए लिए दोबारा टेंडर मंगाने, अलग से विजीलेंस जांच जारी रखने, विजलीबोर्ड व विभाग के उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने जिन्होंने प्रोजेक्ट का मूल्यांकन किया था और ऐसे प्रोजेक्टों के लिए आगे के लिए फुल प्रूफ सिस्टम तैयार करने का फैसला लिया गया।
केबिनेट के फैसले के बाद 19 जुलाई 2008 को ब्रेकल को नोटिस जारी कर दिया गया।जिसमें बाकी इल्जामों के बाद एक इल्जाम ये लगाया गया कि ब्रेकल ने 49 प्रतिशत हिस्सेदारी अदानी को हसतातंरित कर दी है जो लेटर ऑफ अलॉटमेंट के खिलाफ है।
इस बीच 31 जुलाई 2008 को रिलायंस की याचिका की सुनवाई हुई व अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि याचिका इंफ्रक्चुअस हो चुकी है।
ब्रेकल ने 4 अगस्त शो कॉज नोटिस जवाब दिया और प्रधान सचिव पावर को 4अक्तूबर 2008 और 9 अक्तूबर 2008 को लिखित में रिप्रेजेंटेशन दिए।इन सब जवाबों में ब्रेकल ने शो कॉज नोटिसों में लगाए सारे इल्जामों के जवाब देने के कोशिश की व माना कि उसने अदानी को 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए बतौर पार्टनर चिन्हित किया है।ये भी माना कि व्यक्तिगत कंसरटोरियम मेंबर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी के शेयर होल्ड करेंगे।
इस बीच रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड(पहले रिलायंस एनर्जी लि. नाम था)ने धूमल सरकार के 7 जुलाई 2008 के उस आदेश को चुनौती दे दी जिसमें इस प्रोजेक्ट के लिए दोबारा टेंडर मंगवाने का फैसला किया गया था। अदालत ने कहा कि सरकार ने अभी ब्रेकल के जवाब पर कोई फैसला नहीं लिया है। अदालत ने सरकार को आठ सप्ताह के भीतर आखिरी फैसला लेने के निर्देश देते हुए रिलायंस की याचिका खारिज कर दी व कहा कि वो बाद में दोबारा याचिका दायर करने का स्वतंत्र है।
इस बीच, 1 नवंबर 2008 की केबिनेट के लिए मेमोरेंडम तैयार किया गया व इन 960 मेगावाट के इन दोनों प्रोजेक्टों पर विचार करने के लिए आइटम नंबर 15 रखी गई।इस मेमोरेंडम में ब्रेकल पर सारे इल्जाम लगाए गए व प्रोजेक्ट को रदद किया जाए, जांच जारी रखी जाए आदि पर विचार करने के बिंदु थे। स्पेशल सेक्रेटरी पावर ने एक ड्राफ्ट आर्डर भी तैयार किया जिसमें प्रस्तावित किया गया कि चूंकि बोली दस्तावेज में अनियमितता है,इक्विटी पार्टीसिपेशन भी नहीं हैं तो इसे रदद किया जाए।
धूमल केबिनेट ने इस पर विचार किया व फैसला लिया कि इस मामले पर विचार करने के लिए चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज का गठन कर दिया। इस कमेटी में प्रधान सचिव इंडस्ट्री,मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव,प्रधान सचिव पावर,प्रधान सचिव वित व प्रधान सचिव लॉ शामिल किए गए। यानि सरकार के टॉप अफसर शामिल हुए।
कमेटी सभी पहलुओं पर ध्यान में रखते हुए एक प्रस्ताव तैयार करना था ताकि कोई आखिरी फैसला लिया जाए और 12 नवंबर 2008 को होने वाली केबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव के साथ आने को निर्देश दिए।
कमेटी का गठन हो जाने के बाद ब्रेकल ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए चीफ सेक्रेटरी को एक चिटठी लिखी और आग्रह किया कि इस कमेटी में आईएएसअफसर अजय मितल को शामिल न किया जाए। अजय मितल ने प्रोजेक्ट को रदद करने का ड्राफ्ट आर्डर तैयार किया था।मितल ने ब्रेकल की कहानी पहले भी सुनी थी।
यहां ये बताना लाजिमी है कि मितल उस समय धूमल के करीबी अफसरों में से थे और इन दिनों वीरभद्र सिंह सरकार में वो प्रदेश में चीफ सेक्रेटरी पी मित्रा व दीपक सानन के बाद तीसरे नंबर के अधिकारी है व अतिरिक्त मुख्य सचिव है। उन्हें परविहन मंत्री बाली का विभाग दिया गया है।
अजय मितल इस कमेटी की कार्यवाहियों में शामिल नहीं हुए वजह चाहे कुछ भी रही हो।
जब टॉप आईएएस अफसरों ने दिखाया कारनामा-:
सरकार के टॉप अफसरों की इस कमेटी ने ब्रेकल के प्रतिनिधियों की व्यक्तिगत सुनवाई की। मजे की बात यह है कि इस सुनवाई के दौरान अदानी का प्रतिनिधि भी मौजूद रहा। ये आज तक रहसय ही है कि अदानी का ये प्रतिनिधि किस क्षमता में सरकार के इन टॉप अफसरों की कमेटी की बैठक में मौजूद रहा। जबकि ब्रेकल ने सरकार का संभवत एक आईएएस अफसर अजय मितल इस कमेटी से बाहर कर दिया। यहां अदानी के प्रतिनिधि के मौजूद रहने के Locus का प्रश्न है।इसका जवाब धूमल व वीरभ्रद सिंह को जनता को देना चाहिए।
इस टॉप आईएएस अफसरों की इस कमेटी ने अब तक इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद एक बड़ा कांड कर दिया जो चौंकाने वाला था।कमेटी ने सुनवाई की, ब्रेकल से सफाइयां ली,प्रासंगिक मुददों पर विचार किया।कमेटी ने पाया कि ब्रेकल की तकनीकी बोली में वितीय स्ट्रेंथ के लिए स्टैंडर्ड बैंक की इक्विटी पार्टिसिपेशन के लिए मजबूत प्रतिबद्धता नहीं थी। थी।ऐसे में वितीय प्रतिबद्धता के लिए दिए अंकों से पहले गहन विचार किया जाना चाहिए था। तकनीकी बोली का मूल्यांकन बिजली बोर्ड ने किया था।
कमेटी ने पाया की खामी मूल्यांकन प्रक्रिया की है।कमेटी ने पाया कि ये खामी बिजली बोर्ड के whole time members ने सोचसमझ कर इसलिए की कि कंपीटीशन को बढ़ाकर पेश करने से राज्य के हित सधेगे,रखी।कमेटी ने निष्कर्ष निकाला कि ब्रेकल और उसकी सहयोगी कंपनियों के गठजोड़ की ओर से महत्वपूर्ण जानकारियों को छिपाने को स्थापित नहीं किया जा सकता और चूंकि बावजूद किसी भी राजनीतिक पार्टी के सता में आने के बावजूद सरकार निरंतरता में होती है ,इसलिए पिछली सरकार के समय आवंटित प्रोजेक्ट को इस समय रदद करना, कानूनी तौर पर ठहरना मुश्किल होगा।पिछली सरकार यानि तब की वीरभद्र सरकार ने जानबूझ कर बहुत से पहलुओं को नजरअंदाज किया।ऐसे में इतनी देर बाद सारा इल्जाम मैसर्स ब्रेकल पर नहीं लगाया जा सकता।
कमेटी आफ सेक्रेटरीज ने अपना निष्कर्ष केबिनेट के समक्ष रखने का फैसला ले लिया। 6 टॉप आईएएस अफसरों की इस कमेटी ने विजीलेंस जांच व आयकर विभाग की जांच के बाद ये सब किया और सरकार के साथ किए गए फ्राड का पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। यहां बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसा किया क्यों गया।
जब धूमल केबिनेट ने किया बड़ा कांड-:
25 नवंबर 2008 को केबिनेट की हुई बैठक में इस मामले पर विचार किया गया और इस केबिनेट के फैसले ने सबको हैरान कर दिया।इस केबिनेट ने कई चीजों का नोटिस लिया । ये पाया कि तब की वीरभद्र सिंह सरकार ने बोली दस्तावेज में खामी रखी जिसमें बोली लगाने वाली कंपनियों के कंसरटोरियम के लीड मेंबर को वितीय स्टैंडिंग को जरूरी नहीं बनाया गया। जब ब्रेकल कारपोरेशन एनवी ने टेंडर में अपने कंसरटोरियम पार्टनर के साथ खुलासा किया था तो सरकार को पता था कि बतौर लीड मेंबर उसकी वितीय स्ट्रेंथ नहीं है। इस पहलु को नजरअंदाज किया गया।
केबिनेट ने यह भी नोट किया कि तब की वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल को लगातार अप फ्रंट मनी जमा कराने में देरी करने की इजाजत जारी रखी। यही नहीं तब कि वीरभद्र सरकार ने इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट को इंटरनेश्नल आर्बिटेशन के तहत लाने का इंतजाम किया।
धूमल सरकार की इस केबिनेट ने ब्रेकल को इस बात के लिए सहमत कराया कि विवाद को इंटनेश्नल आर्बिटेशन से बाहर रखा जाएगा।इसके अलावा अप फ्रंट मनी को देरी से जमा कराने के लिए 173.42 करोड़ पर ब्याज लगा दिया। इस तरह कंपनी को 20 करोड़ 64 लाख का ब्याज लगा दिया।
इस तरह धूमल सरकार की इस केबिनेट ने बड़ा कांड करते हुए फैसला लिया कि इस ठेके के आवंटन को रदद नहीं किया जाएगा।
धूमल सरकार के अजीब फैसले को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लि. ने 10 दिसंबर 2008 को प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दे दी और तमाम इल्जाम लगा दिए । प्रदेश हाईकोट में ये मामला 7 अक्तूबर 2009 तक चला और हाईकोर्ट के जसिटस दीपक गुप्ता (अब त्रिपुरा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस) व जस्टिस वी के आहुजा की खंडपीठ ने इस ठेके को रदद कर दिया व ये सरकार पर छोड़ दिया कि वो इस प्रोजेक्ट के लिए दोबारा टेंडर मंगवाए या पुराने टेंडर के हिसाब से फैसला ले। इसके अलावा ब्रेकल व ब्रेकल किन्नौर पावर पर एक लाख की कॉस्ट भी लगा दी।
प्रदेश हाईकोर्ट ने निकाला सच जो चौंकाने वाला था-:
प्रदेश हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर 2008 से लेकर 7 अक्तूबर 2009 तक हुई विभिन्न सुनवाइयों में जो अदालत ने आब्जर्ब किया कि ये ठीक है कि सरकार के पास टेंडर की शर्तों बदलाव का अधिकार है लेकिन वे बोली दस्तावेज की मूल शर्तों को नहीं बदल सकती। और उन शर्तों को इस तरह नहीं बदला जा सकता कि एक खास पार्टी को अनडयू लाभ मिले और दूसरे के साथ भेदभाव हो। बोलीदाता के पास मजबूत वितीय आधार व हाइड्रो प्रोजेक्ट को विकसित करने की तकनीकी विशेषज्ञता होनी चाहिए थी। अदालत ने कहा कि बोली दस्तावेज में साफ लिखा है कि प्रोजेक्ट के आवंटन के बाद बिना सरकार की मंजूरी के कंसरटोरियम पार्टनरों व उनकी जिम्मेदारियों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।यहां ये बताना लाजिमी है कि ब्रेकल को प्रोजेक्ट आवंटन की तिथि 1दिसंबर 2006 से पहले कभी भी अदानी ब्रेकल का सहयोगी नहीं रहा।
ब्रेकल को तुरंत अपफ्रंट मनी जमा कराना था। वीरभद्र सरकार ने 10 जनवरी 2007 को ब्रेकल को लिखा कि वो 15 जनवरी से पहले अप फ्रंट मनी जमा कराएं।
16 जनवरी 2007को ब्रेकल ने प्रधान सचिव पावर को लिखा कि उसे उसे स्पेशल परपज व्हीकल के गठन की जरूरत हो व जिसका कार्यालय हिमाचल में हो।अप फ्रंट मनी जमा कराने को लेकर ब्रेकल ने आग्रह किया कि ब्रेकल व इसकी सहयोगी कंपनियों को फंडिंग को विदेशो से एसपीवी में लाने की जरूरत है व इसके लिए आरबीआई की अनुमति की जरूरत है।ब्रेकल ने समय सीमा को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर नहीं की। सरकार की ओर से उसे भेजी पीआईए पर दस्तख्त करने पर भी रिजर्वेशन रखी। अब तक सरकार नई पावर पालिसी ला चुकी थी तो ब्रेकल ने कहा कि पीआईए (प्री इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट) में बदलाव की जरूरत है व नई पॉलिसी पर भी विचार करना है। इसलिए अप फ्रंट मनी जमा करने मे देरी हो रही है।
8फरवरी 2007 को ब्रेकल ने सरकार को दोनों पावर प्रोजेक्टों को एक करने का प्रस्ताव भेजा। वीरभद्र सरकार की केबिनेट ने 18 फरवरी 2007 को ब्रेकल को अप फ्रंट मनी जमा कराने की तिथि की समय सीमा आगे बढ़ाने व दोनों प्रोजेक्टों को एक करने का फैसला लिया व 20फरवरी को दोनों प्रोजेक्टों को एक करने की इजाजत की जानकारी ब्रेकल को दे दी गई।सरकार ने साथ ही ये भी फैसला लिया कि प्रदेश सरकार की इन प्रोजेक्टों में कोई इक्विटी नहीं होगी। पहले हिमाचल सरकार की 49 प्रतिशत इक्विटी रखने का विचार व प्रावधान था।सरकार ने मेहरबानी दिखाते हुए 15 मार्च तक अप फ्रंट मनी जमा कराने और पीआईए पर दस्तख्त करने की इजाजत दे दी। सरकार ने ब्रेकल को एक ओर चिटठी लिखी कि पीआईए पर 27 मार्च तक दस्तख्त हो जाने चाहिए।
ब्रेकल किन्नौर पावर लि. जो एसपीवी था ,का गठन 9 मार्च2007 को किया गया। 15 मार्च2007 को ब्रेकल ने सरकार को चिटठी लिखी कि वो अप फ्रंट मनी का इंतजाम कर रहा है।इसमे साफ लिखा था कि स्टैंडर्ड बैंक पीएलसी की ओर से फाइनेंस मुहैया कराने को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं है। ब्रेकल ने ये भी प्रतिबद्ता जाहिर नहीं की कि वो ये मनी कब जमा कराएगा।
ब्रेकल ने 16 अप्रैल 2007 को एक और चिटठी सरकार को लिखी कि सरकार ने उसकी 16 जनवरी की लिखी चिटठी का जवाब देरी से दिया,इसलिए पीआईए पर दस्तख्त करने व अप फ्रंट मनी जमा कराने के लिए 23 अप्रैल से आठ हफ्तों का समय दिया जाए। 27 जुलाई 2007 को सरकार ने ब्रेकल को लिखा कि वो अप फ्रंट मनी जमा करा दे व पीआईए पर दस्तख्त कर दे।1 अगस्त 2007 को ब्रेकल ने सरकार को जवाब दिया कि पीआईएके कई कलॅाजिज में बदलाव की जरूरत है और अप फ्रंट मनी जमा नहीं कराया।
इस समय तक प्रदेश में चुनाव का बिगुल बच चुका था। वीरभद्र सिंह व धूमल दोनों चुनावी दंगल मे कूद चुके थे।
इस बीच 7 अगस्त को वीरभद्र सरकार के अफसर व ब्रेकल के प्रतिनिधियों के बीच एक बैठक हुई और पीआईए ड्राफ्ट को अंतिम रूप देकर केबिनेट में मंजूरी के लिए रखा।इस बीच अप फ्रंट मनी जमा कराने की अवधि 31 अगस्त तक बढ़ा दी व साथ ही कह दिया गया कि ये मनी जमा न कराने की स्थिति में आवंटन रदद कर दिया जाएगा। ब्रेकल ने आर्बिटेशन क्लॉज को लेकर आपति जताई। इस बीच आरबीआई ने ब्रेकल को 38 मिलियन यूएस डॉलर विदेशी इक्विटी होलडरों से जुटाने की इजाजत दे दी।दी।ताकि 5 सितंबर 2007 को मनी जमा कराया जा सके।ब्रेकल की आपतियों के बाद दूसरी पीआईए ड्राफट की गई और ब्रेकल को इसे 11 अक्तूबर को भेजा गया।ब्रेकल को अप फ्रंट मनी जमा करने के निर्देश फिर दिए गए। 15 अक्तूबर को ब्रेकल ने सरकार को जवाब दिया कि वो पीआईए पर दस्तख्त करने को तैयार है व अप फ्रंट मनी को जमा कराने के लिए बोर्ड की मीटिंग कर रही है।सरकार ने 12 नवंबर को ब्रेकल को फिर लिखा कि वो अप फ्रंटमनी जो कि 173 करोड़ 42 लाख 40 हजार है को 1जनवरी से जमा कराने की तिथि तक बयाज समेत जमा कराए।इस चिटठी में सरकारने साफ किया कि अप फ्रंट मनी का पीआईए से दस्तख्त करने से कोई लेना देना नहीं है। ब्रेकल ने 15 नवंबर2007 को सरकार को जवाब भेजा कि वो अपफ्रंट मनी को पीआईए को दस्तख्त करने के साथ ही जमा का कराएंगी। और उसे ऐसा करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए ।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि इसी तरह की स्थिति कुठेहर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को लेकर भी थी उसे भी उसी दिन अवार्ड किया गयाथा जिस दिन ब्रेकल को ये दोनों प्रोजेक्ट अवार्ड हुए थे। कुठेहर प्रोजेक्ट के आवंटन को सरकार ने अप फ्रंट जमा न कराने पर 26 जुलाई 2007 को रदद कर दिया था।
सरकार ने कुठेहर पोजेक्ट को अप फ्रंट जमा कराने की समयावधि नहीं बढ़ाई थी व उसने अदालत में कहा भी था कि ब्रेकल को मनी जमा कराने के लिए कई बार एक्सटेंशन दी जा चुकी है।16 अक्तूबर 2007 को एडिशनल चीफ सेक्रेटरी पावर ने ब्रेकल को चिटठी लिखी कि इस याचिका का संदर्भ देते हुए कहा कि अदालत ने ब्रेकल का रिकार्ड तलब किया है। सरकार ने कहा कि ब्रेकल को विदेशों से फंड का इंतजाम करना है इसलिए उसकी कुठेहरा जिसे मैसर्स डीएससी हिमाल हाइड्रो ज्वाइंट पावर के नाम से भी जाना जाता है,से तुलना नहीं की जा सकती व ब्रेकल को आरबीआई की इजाजत की जरूरत है।हाईकोर्ट ने 24 फरवरी 2009को कुठेहरा प्रोजेकट की याचिका खारिज कर दी व फैसला दिया कि सरकार का ठेका रदद करने का फैसला सही है।
प्रदेश हाईकोर्ट ने पकड़ा ब्रेकल का झूठ-:
हाईकोर्ट ने अपनी जजमेंट में ये उल्लेख किया है कि ब्रेकल ने 23 फरवरी 2007 को सरकार के 20 फरवरी के लिखे पत्र के जवाब में कहा था कि ये पीआईए पर दस्तख्त करने और अप फ्रंट मनी जमा कराने की दिशा में आगे बढ़ रही है।उस समय कोई अन्य बहाना नहीं बनाया गया। 2मार्च 2007 को ब्रेकल ने सरकार को बताया कि ब्रिटिश हाई कमिशनर और डच अबेंस्डर पीआईए पर दस्तख्त करने के समय शिमला में मौजूद रहेंगे और अप फ्रंट मनी जमा करा दिया जाएगा। पूरा आश्वासन था पर इसे जमा नहीं कराया गया। 5 सितंबर को आरबीआई की इजाजत भी मिल गई।
हाईकोर्ट की पीठ ने आब्जर्व किया कि ब्रेकल के सारे बहाने झूठे थे। पहले आरबीआई की इजाजत का बहाना बनाया गया व कहा गया कि सारा पैसा विदेशों से आएगा।लेकिन जब बाद में 20 जनवरी 2008 को ये 173 करोड़ 42 लाख जमा कराया गया तो इसे अदानी ग्रुप ऑफ कंपनी से कर्ज लेकर जमा कराया गया।एक भी पैसा विदेश से नहीं आया। इस वक्त प्रदेश में धूमल की सरकार थी। ब्रेकल ने अदानी से कर्ज लिया था, ये इस जजमेंट में दो जजों की पीठ ने माना है। जजों ने माना की ब्रेकल झूठे बहाने बना रहा था।
इस बीच रिलायंस ने 17 नवंबर 2007 को सी डब्ल्यू पी नबंर 2074/2007 दाखिल की व ब्रेकल की ओर से अप फ्रंट मनी जमा न कराने पर इन प्रोजेक्टों को रदद करने व ठेके रिलायंस को देने का आग्रह किया। 13 दिसंबर 2007 को हाईकोर्ट ने सभी पार्टीज को नोटिस जारी कर दिए । अब तक प्रदेश में धूमल सरकार सता सीन हो चुकी थी । सता मे आने के बाद धूमल सरकार ने 7 जनवरी 2008 को ब्रेकल को नोटिस जारी किया उसका ठेका रदद क्यों न किया जाए। तब जाकर कहीं ब्रेकल ने 29 जनवरी2008 को अप फ्रंट मनी जमा कराया। हाईकोर्ट ने अपनी जजमेंट में लिखा है कि अगर ये याचिका दाखिल नहीं होती तो अप फ्रंट मनी जनवरी 2008 में भी जमा नहीं होता।
ब्रेकल ने बोली दस्तावेज के साथ ब्रेकल कारपोरेशन एनवी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा कराया था। इस सर्टिफिकेट के मुताबिक ब्रेकल कारपोरेशन बतौर कंपनी Cueacao में 13 फरवरी2005 को रजिस्टर हुई थी और पेडअप मनी 1डॉलर था। लेकिन धूमल सरकार की ओर से कराई जांच में पता चला कि ये कंपनी असल में 13 फरवरी 2006 को रजिस्टर हुई थी जबकि बोली दस्तावेज इससे कहीं पहले 13 दिसंबर 2005 को खरीद लिया गया था। अगर कंपनी 2005 में बनी ही नहीं थी तो उसने बोली दस्तावेज कैसे खरीद लिया। इस सवाल पर फंसी ब्रेकल ने सफाई दी कि उसने गलती से दूसरी कंपनी का सर्टिफिकेट जमा करा दिया था। बाद में उसने ब्रेकल कारपोरेशन आईएनवी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा कराया । ये कंपनी 14 मई 1986को Carcao में रजिसटर दर्शाई गई व इसका पेड अप मनी यूएस डॉलर 6000 दिखाया गया। अदालत ने माना कि ये झूठ था। रिकार्ड देखने पर पता चला कि ब्रकल कारपोरेशन आइ्रएनवी का आई मिटाया गया था और 2005 की जगह 2006 किया गया था । जबकि कंपनी 2006 में बोली दस्तावेज खरीदने के बाद रजिस्टर की गई थी। हाईकोर्ट ने माना कि ये सरकार के साथ फ्राड किया गया था।हाईकोर्ट ने कहा कि 16 मार्च2007 को ब्रेकल कारपोरेशन ने प्रधान सचिव पावर को मेमोरेंडम ऑफ आर्टिकलऑफ एसोसिएशन भेजा लेकिन मेमोरेंडम ऑफ आर्टिकल ब्रेकलआइएनवी का भेजा ब्रेकल एन वी को नहीं। इस तरह ब्रेकल ने फ्राड के साथ काम किया व सारा ठेका ही फ्रॉड पर आधारित है ऐसे में इसे रदद किया जाना चाहिए।ब्रेकल कारपोरशन ने अप फ्रंट मनी जमा कराने से पहले अदानी पावर कारपोरेशन से कर्ज लिया और एक चिटठी में लिखा कि इस कर्ज को इक्विटी पार्टिसिपेशन में बदल दिया जाएगा। इससे साफ है कि इक्विटी पार्टिसिपेशन को बिना सरकार की अनुमति के बदला जा रहा था। जबकि ऐसा किया ही नहीं जा सकता था ।अन्यथा कोई भी बिना वितीय आधार की कंपनी बड़े बैंकों और तकनीकी कंसलेटेंटों का साथ होने का दावा कर ,जैसेइस मामले में हुआ है,बड़े प्रोजेक्टों के लिए बोली लगा सकता है। प्रोजेक्ट अवार्ड होने के बाद वो ओपन मार्किट में जाकर फार्चून हंटिंग कर सकता है।
अदाणी यूं आया मैदान में-:
हाईकोर्ट की ओर से नोटिस जारी करने पर सरकार ने आयकर विभाग से सोर्स ऑफ फंड की जांच कराई कि ब्रेकल किन्नौर ने अप फ्रंट मनी कहां से जमा कराया।इस कंपनी के प्रमोटर अनिल वाहल और मनीष वाहल है। जांच में पाया गया कि ब्रेकल किन्नौर के खाते में 29 जनवरी 2008 को 60 करोड़ SBTRF08029300033R,59 करोड़ 43 लाख गगन रियलिटी और 55 करोड़ मीडिया डाटा प्रो से हसतातंरित हुआ व 175 करोउ़ 42 लाख 40 हजार का ड्राफट के लिए हसतातंरित हुआ।पता चला कि ये सब कंपनियां अदानी समूह की है। लेकिन इस ग्रुप को कभी भी कंसरटोरियम बनाने की इजाजत नहीं दी गई व शुरू में कभी भी इसे कंसोरटोरियम का सदस्य नहीं बताया गया।ये कब व कैसे कंसोरटीयम का मेंबर बना इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।
तब की धूमल सरकार के टॉप अफसरों की कारगुजारी के बारे में हाईकोर्ट की टिप्पणियां -:
धूमल सरकार ने तब के स्पेशल सेक्रेटरी पावर अजय मितल के ड्राफट आर्डर जिसमें उन्होंने ब्रेकल के कारनामों का हवाला देकर प्रोजेक्ट को रदद करने का प्रस्ताव दिया था उस पर धूमल केबिनेट की ओर बनी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने क्या किया इसकी एक झलक हाईकोर्ट ने फैसले में हैं।हाईकोर्ट ने कहा है कि इन अफसरों को ड्राफ्ट आर्डर में बताए बिंदुओं पर गौर करना चाहिए था। जजों ने कहा कि हमारे विचार में कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने बेहद लापरवाही से इस मसले को निपटाया। इसे अगर ड्राफ्ट आर्डर नहीं मानना था तो कम से कम इसे वरिष्ठ अफसर की नोटिंग का दर्जा तो दिया जा सकता था।हैरानी की बात है कि कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज की रिपोर्ट में ड्राफ्ट आर्डर का कोई जिक्र ही नहीं है।इसमें ब्रेकल की ओर से दिए झूठे तथ्यों व तथ्यों को छिपाने का हवाला तक नहीं दिया गया।ब्रेकल के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों पर कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने गौर नहीं फरमाया।ड्राफट आर्डर में स्पेशल सेक्रेटरी ने नोट किया था कि ब्रेकल ने जाली व Doctored दस्तावेज जमा कराए।कमेटी ने इसका संदर्भ तक नहीं उठाया ।
यही नही आश्चर्यजनक तौर पर इस कमेटी ने ब्रेकल ही नहीं बल्कि अदानी पॉवर कारपोरेशन के प्रतिनिधियों को भी अपने सामने पेश होने की इजाजत दी।दोनों जजों ने कहा कि हम ये समझने में विफल है कि अदानी ग्रुप के प्रतिनिधियों को कमेटी के समक्ष हािजर होने की इजाजत कैसे दी गई। धूमल के शासन काल में हुआ।यही नहीं ये कमेटी इआईओएल,एसएनएस लावालीन और इको सिक्योरिटीज के बारे में भी पूरीतरह से खामोश रही ।कमेटी ने खामियों को लेकर कहा कि ये खामियां बिजली बोर्ड के सदस्यों ने मूल्याकंन के समय रखे थे इसलिए सरकर को पिछली सरकार के फैसले का पालन करना चाहिए। हाईकोर्ट ने इन अफसरों की इस कमेटी की इस राय को गलत व गैरकानूनी करार दिया । अब बड़ा सवाल ये है कि इस कमेटी ने ये सब क्यों किया होगा।क्या धूमल का इशारा था या कोई और खेल हुआ था या आईएएस अफसरों के धड़ों का टकराव था। अदानी को लेकर अफसरों व सरकार की मेहरबानी कई सवाल खड़े करती है। कमेटी ने ये भी कहा कि ब्रेकल की ओर से तथ्यों को छिपाया गया ये स्थापित करना मुश्किल है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि कमेटी ऑफ सेक्रेटररीज की रिपोर्ट का ये भाग पूरी तरह से आधारहीन है।ब्रेकल के खिलाफ खिलाफ बेहद गंभीर आरोप थे लेकिन कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज ने इन पर पर्दा डाला व कोई फाइडिंग नहीं दी।हाईकोर्ट ने कहा हमने विभिन्न आरोपों पर गौर फरमाया और पाया कि ब्रेकल को महत्पपूर्ण तथ्यों को छिपाने व गलत तथ्य पेश करने का दोषी पाया।कमेटी का ये सारा कारनामा कानून के खिलाफ था।
हाईकोर्ट ने धूमल के इन अफसरों व केबिनेट के उस नोट को भी दरकिनार कर दिया कि पिछली वीरभद्र सिंह सरकार ने खामियां रखी। हाईकोर्ट ने कहा कि ये सब पुलिस जांच व आयकर विभागकी जांच से पता चला ।जब सब कुछ बाद में सामने आया तो ये कहना कि पिछली सरकार ने खामियां रखी, गलत है। ऐसे में सब कुछ जाने के बाद सरकार की ओर से ब्रेकल को ही आवंटन
करना पूरी तरह से गैरकानूनी है।
7 अक्तूबर2009 को जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस वी के आहुजा ने सीडब्ल्यू पी 2748/2008 का निपटारा करते हुए धूमल सरकार के 25 नवंबर 2008 ब्रेकल को प्रोजेक्ट आवंटित करने के फैसले को गैरकानूनी,एकत रफा और अतार्किक बताते हुए निरस्त कर दिया।ब्रेकल को किए आवंटन को गैरकानूनी करार देकर रदद कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में ब्रेकल व रिलायंस-:
ब्रेकल इसके बाद रिलायंस के साथ ही सुप्रीम कोर्ट चला गया और लेकिन हैरानी की बात है कि न धूमल सरकार और न ही वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल के खिलाफ अक्तूबर 2009 से लेकर अब तक कोई आपराधिक कार्रवाई की।
2009 में प्रोजेक्ट रद्द करने के बाद ब्रेकल की ओर से जमा कराए अप फ्रंट मनी को जबत करने व प्रोजेक्ट न चलाने की एवज में हुए नुकसान के बदले 2713 करोड़ रुपएडेमेज लेने कर फैसला लिया।
इस बीच ब्रेकल ने SLP NO.88/2010 सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर हाईकोर् के फैसले को चुनौती दे दी।जबकि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने भी SLP[civil] No.CC 1480/2010 जो बाद में SLP NO.29135/2014 में बदल दी गई। रिलायंस ने प्रोजेक्ट खुद को आवंटित करने का आग्रह किया।
यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टैंड लिया कि वो रिलायंस को प्रोजेक्ट नहीं देगी व दोबारा टेंडर मंगाएंगी।
कभी नहीं वसूला 2713 करोड़ रुपए और जब्त नहीं किया 280 करोड़-:
उधर, ब्रेकल की याचिका में अदानी पावर ग्रुप ने अर्जी दी कि इस मामले में उसे भी पार्टी बनाया जाए। लेकिन ब्रेकल की याचिका को 1 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी के साथ अदानी की पार्टी बनने की अर्जी भी खत्म हो गई। उधर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसने ब्रेकल को 2713 करोड़ रुपए का डैमेज का नोटिस भेजा है व अप फ्रंट मनी को जब्त करने का फैसला लिया है।
लेकिन ये 2713 करोड़ रुपए कभी भी वसूले नहीं गए और इन्हें वसूलने के लिए कोई भी कार्यवाही कभी भी नहीं की गई।
वीरभद्र सरकार का अदानी को 280 करोड़ रुपए लौटाने का विवादास्पद फैसला-:
उल्टे वीरभद्र सिंह ने इस महीने हुई केबिनेट की बैठक में फैसला लिया कि वो अदानी पावर को अप फ्रंट मनी वापस लौटा रही है।अदानी 1 अप्रेल 2014 से लेकर अब तक लगातार वीरभद्र सिंह सरकार को चिटिठयां लिख रहा है कि उसका अप फ्रंट जो ब्रेकल ने जमा कराया था उसे वापस लौटाया जाए।जबकि सरकार ने ब्रेकल से कभी ये अप फ्रंट मनी लिया ही नहीं था। ये पैसा ब्रेकल ने अदानी से कर्ज लिया था। ऐसे में सवाल है कि ब्रेकल जिसने सरकार के साथ जमकर फ्राड किया उसका लिया पैसा सरकार अदानी को क्यों वापस कर रही है। जबकि ये सारा पैसा सरकार के खजाने में जबत् होकर जमा होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ ये गौर करने वाली बात है। सब जानते है कि अदानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे लाडले कारोबारी है और वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारंभिक जांच दर्ज कर रखी है। क्या इन सबमें कोई कनैक्शन है,ये बड़ा सवाल है।
रिलायंस की सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस लेने के लिए अनोखी शर्त -:
अब वीरभद्र सिंह सरकार ने बड़ा कांड कर दिया अदानी को तो अफ्रंट मनी जो बयाज के साथ 500 करोड़ के करीब बनेगा को लौटाने का फैसला तो ले ही लिया साथ ही 960 मेगावाट के जंगी थोपन व पोवारी पावर प्रोजेक् को अंबानी को दे दिया व लेटर ऑफ इंटेट दे दिया।
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को 10 अगस्त 2015 को निदेशक एनर्जी अजय शर्मा ने लेटर ऑफ इंटेंट को लिखा ।तीन पेज की इस चिटठी में लिखा कि सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को देने का फैसला लिया है।
सरकार ने यहां अबांनी की इस कंपनी के साथ सौदा किया कि उसे सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका को वापस लेना होगा।साथ ही 346 करोड़84 लाख 80 हजार रुपया अप फ्रंट मनी जमा कराना होगा। अजय शर्मा ने रिलायंस से प्रार्थना कि इस लेटर ऑफ इंटेट को 15 दिनों के भीतर स्वीकार करे।
इसके लेटर के जवाब में जो रिलायंस ने शर्त रखी है वो कई संदेहों व सवालों को खड़ा कर रही है। रिलायंस ने 24 अगस्त 2015 को एक तीन पेज की चिटठी निदेशक एनर्जी को लिखी। उसमें कहा गया जिन शर्तों पर ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट आवंटित हुआ था ,उन्हीं पर इसे रिलायंस को देने पर आभार। सिंद्धातिक तौर पर रिलायंस सरकार की इस आफर को मंजूर करता है।
रिलायंस ने कहा कि ब्रेकल ने 1 अप्रैल 2015 को अपनी याचिका वापस ले ली थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी इजाजत दे दी थी1 पिछली15 अक्तूबर2014 की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए थे कि फ्रैश टेंडर पर जो बोलियां आई हैं उन पर आगे की कार्यवाही तो की जा सकती है लेकिन अदालत का आदेश आने तक प960 मेगावाट के इस प्रोजेकट का किसी को आवंटन नहीं होगा।
रिलायंस ने कहा कि याचिका को वापस लेने के लिए ज्वाइंट अर्जी देनी होगी ज्वाइंट ड्राफट तैयार होने से पहले वो प्रदेश सरकार से कुछ कहना चाहते है।इस तरह रिलायंस ने अब प्रोजेक्ट से जुड़े पर्यावरण संबधी पहलुओं को उठा दिया है।रिलायंस ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में 15 किमी हैडरेस टनल बनेगी जो 28 किमी तक नदी को प्रभावित करेगी।
रिलायंस ने अपने एक दूसरे 300 मेगावाट के हाइड्रो पावर पुर्थी का हवाला देकर कहा कि इसे अप्रैल 2011 में उसे आवंटित कर दिया था। लेकिन the expert appraisal committee of Ministery of Environment,Forest and Climate Change is yet to grant theTerms of references and the pre construction Activity clearance as Purthi project was proposed as extension of Reoli Dugli HEP,utilizing itsTail water discharge and affecting 23 km countinous length of river.इसके अलावा नदी के बहाव का मसला भी उठाया है।
संशोधन रिलायंस ने कहा कि पर्यावरण से जुड़े इन पहलुओं और मौजूदा प्रैक्टिस को देखते हम इसमें समझदारी समझते है कि State should obtain in-principle clearance of MoEF& CC on the development of projects as an integrated scheme.
In view of above,you would kindly agree that disposal of SLP in Hon’ble SC requires certain compliances to be made.MoEF&CC’s in –principle clearance on the integrated development of the project will also take some time.Therefore,we request DOE,GOHP to kindly extend the validity of LOI by atleast 8 weeks or till the disposal of SLP by SC and grant of in-principle approval by MoEF&CC,whichever is later.
ये चिटठी ग्रुप प्रेसिडेंट एएन सेतुरमन ने लिखी है। अब वीरभद्र सरकार इस बात फंसी है कि वो इन शर्तों का क्या करे।इसे रिलायंस की दबंगई कहे या कुछ और कि वो पर्यावरण क्लिीयरेंस भी सरकार से दिलाने की मांग कर रहा है। हालांकि प्रदेश में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है। हालांकि प्रदेश सरकार ने 4 मार्च2014 को पहले ही अपनी पॉलिसी में तीस से ज्यादा शर्तों में ढील दे कर उदयोगपतियों के आगे घुटने टेक दिए है। ये केंद्र में मोदी सरकार के सता में आने से भी पहले कर दिया है।
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