शिमला। कई बार देश की सरकारों के आंसू निकाल देने वाले प्याज की अब हिमाचल में भी साल में दो-दो फसलें ली जा सकेगी। अभी तक महाराष्टÑ जैसे राज्यों में ही साल में प्याज की तीन फसलें उगाई जाती हैं । लेकिन डाक्टर यशंवत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के हमीरपुर के नेरी में स्थित बागवानी व वानिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हिमाचल के मैदानी इलाकों में साल में प्याज की दो बार खेती करने की तरकीब ईजाद की है।
चंबा के कई गांवों में तो किसानों ने खरीफ प्याज या बरसाती प्याज की खेती करना भी शुरू कर दिया है। अब हमीरपुर में काम शुरू हआ है। इसके अलावा बिलासपुर,कांगड़ा,ऊना, मंडी के मैदानी इलाकों में भी इस खेती को किया जा सकता है। अभी हिमाचल में प्याज की एक ही फसल ली जाती हैं। किसान नवंबर महीने में प्याज के बीज की पनीरी देते है और उसे दिसंबर में खेतों में रोप देते है। इसके बाद अप्रैल और मई तक प्याज की फसल आ जाती है। किसान यही एक ही फसल उगा पाते है।
लेकिन नई तरकीब के जरिए अब किसान मार्च में प्याज के बीज की पनीरी देकर नवंबर के आखिर और दिसंबर में पहले सप्ताह में प्याज की फसल हासिल कर सकते है। इससे न केवल किसानों की आय होगी बल्कि वह बाहरी राज्यों से महंगा प्याज की खरीद से भी बच सकेगा।
नौणी विवि के नेरी स्त्तिथ बागवानी व वानिकी महाविद्यालय में कार्यरत वैज्ञानिक दीपा शर्मा को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय से बरसाती प्याज की खेती करने व इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए 20 लाख 43 हजार रुपए की एक परियोजना मंजूर हुई। इस परियोजना के तहत दीपा शर्मा व उनके दो अन्य सहयोगी वैज्ञानिकों राजीव रैना और संजीव बन्याल ने काम शुरू किया और गांव चुवाड़ी, थलेल, परछोग,सुकरेनी और साच जैसे दर्जनों गावों में ढाई सौ के करीब किसानों को बरसाती प्याज लगाने की तरकीब सिखाई। खास कर महिलाओं ने इस तरकीब को बाखूबी अपनाया और बरसाती प्याज की खेती शुरू कर दी।
दीपा शर्मा ने कहा कि इस तरकीब के तहत उन्होंने किसानों को कहा कि वह प्याज के बीज की मार्च महीने में पनीरी दे दे व इसके बाद इसे जून तक ऐसे ही रहने दे। तब इसमें नीचे गांठे विकसित हो जाएंगी। जून में इन गांठों को निकाल लें और घर में कहीं भी भंडारण कर लें। इसके बाद अगस्त महीने के पहले सप्ताह में इन्हें दोबारा खेत में रोप दें।
उन्होंने कहा कि अक्तूबर महीने तक हरा प्याज निकाल कर इसे बेच सकते है। यह बाजार पर निर्भर करता है कि कि अगर हरे प्याज की कीमत ज्यादा है तो किसान हरा प्याज बेच देता है और अगर हरे प्याज की कीमत कम है तो एक महीने बाद नवंबर के आखिर व दिसंबर के पहले सप्ताह तक प्याज की फसल आ जाती है। अमूमन इस दौरान प्याज बहुत महंगा हो जाता है।
विज्ञानियों की माने तो एक किलो प्याज के बीज की पनीरी से एक क्विंटल तक गटिठयां तैयार हो जाती है। जब इन गटिठयों को खेतों में रोपते है तो इससे छह क्विंटल तक प्याज की पैदावार हो जाती है। यही नहीं अगस्त महीने में गटिठयों की भी बहुत मांग है व ये सौ रुपए से लेकर डेढ सौ रुपयों तक प्रति किलो बिक जाती है।
चंबा के डुल्ला गांव की अंजना ने पिछल्ले साल एक किलो प्याज का बीज खरीदा था और उसने बरसाती प्याज उगा कर 35 हजार रुपए कमा लिए जबकि गांव कुपहाड़ा के रमेश ने कहा कि उन्होंने तो हरा प्याज ही सात आठ हजार रुपए का बेच दिया। अब उन्होंने प्रशिक्षण लिया है और वह चार- पांच बीघा में लगाएंगे। नौणी विवि के कुलपति परविंदर कौशल ने कहा कि किसानों को इसे बतौर व्यावसायिक तौर पर अपनाना चाहिए व इसके लिए विवि के वैज्ञानिक भी काम कर रहे है।
(46)