शिमला। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के मौन के दांव के आगे भाजपा के चाणक्य कहे जानेवाले व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सखा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्यगिरी को चकनाचूर हो गई हैं। यही नहीं देश में मोदी व शाह की जोड़ी को जलवा भी बुझ गया हैं, ये भी हिमाचल में धूमल को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित किए जाने से साबित हो गया हैं।
मोदी-शाह की जोड़ी हिमाचल के चुनाव अपने जलवे के दम पर जीत कर अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती थी। भाजपा के प्रदेश के बड़े नेताओं को कहींनामो निशान नहीं था। विज्ञापनों में मोदी का नाम उभार पर था। यही नहीं दृष्टिपत्र के जारी करने के मौके पर जो मीडिया को वीडियो दिखाया गया उसमें प्रदेश के किसी भी नेता का नाम या झलक तक नहीं थी। मोदी –शाह की छवि के आगे हिमाचल भाजपा के वरिष्ठ नेता जैसे शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल, सतपाल सती और जगत प्रकाश नडडा बौने नजर आ रहे थे।
लेकिन धूमल ने दांव चला व प्रदेश में अपने समर्थकों को साइलेंट मोड़ पर ला दिया। इसका पहले ज्यादा असर नहीं दिखा लेकिन जब भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं की रैलियां होने लगी तो उनमें अचानक भीड़ कम हो गई ।अमित शाह की बनीखेत की रैली की खाली कुर्सियों की तस्वीरें भाजपा की ओर से गलती से या जानबूझ कर मीडिया को जारी हो गई।
कांग्रेस जो दो महीने कहीं भी मुकाबले में नहीं थी वो मुकाबले में आ गई व मिशन रिपीट का डंका पीट दिया। हालांकि कांग्रेस के के राष्ट्रीय नेताओं की कोई बडी रैलियां प्रदेश में नहीं हुई। बावजूद इसके अकेले वीरभद्र सिंह के दम पर कांग्रेस ने ये जलवा दिखा दिया।
मोदी व शाह की जोड़ी ने प्रदेश में आरएसएस लेकर ,साइबर आर्मी तक सब मैदान में उतार दिए लेकिन कोई असर नजर नहीं आया। मोदी -शाह के लाडले जगत प्रकाश नडडा भी हाथ पांव मारते रहे लेकिन रिपोर्ट नेगेटिव ही रही। ऐसे में मोदी -शाह की जोड़ी एहसास हो गया कि उनका जलवा खतम हो गया हैं व भाजपा की आक्रमकता का प्रदेश की जनता पर ज्यादा असर नहीं हें।
ऐसे में मजबूरी में अचानक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राजगढ़ की रैली में धूमल का नाम सीएम के लिए घोषित कर दिया।
इस घोषणा का असर ये हुआ है कि धूमल ने अपने समर्थकों को बलुडोज होने का इशारा कर दिया। नतीजतन अमित शाह की रैली के बाद आज प्रधनमंत्री की सिरमौर में हुई रैली में इतनी भीड़ जुटी की मोदी गदगद हो गए। ऐसे में धूमल का कद तो बए़ गया लेकिन मोदी व शाह का कद कुछ बौपना हो गया।क्योंकि ये भीड़ उनके जलवे की वजह से नहीं धूमल के दांव से बढ़ीर थी।
बहरहाल, चुनावी राजनीति में धूमल मोदी व शाह से वरिष्ठ हैं। अमित शाह तो उनके व हिमाचल के कई भाजपा नेताओं के आगे कहीं ठहरते भी नहीं । बेशक धूमल को आगे कर भाजपा प्रदेश में आराम से सरकार बना लेंगी लेकिन मोदी –शाह की जोड़ी हिमाचल भाजपा को धूमल परिवार के चंगुल से छुड़ाने में नाकाम रहीं हैं।जो पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों में बंधुआ होने से मुक्त हो गई थी वो 2017के आखिर में फिर एक बार धूमल परिवार की बंधुआ हो गई हैं।
अब देखना ये हैं कि अगर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती हैं तो मोदी -शाह की जोड़ी क्या गुल खिलाती हैं।क्या वो पार्टी को परिवारवाद से मुक्त कर आरएसएस की दहलीज का नाक रगड़ने के को मजबूर कर पाती हैं या धूमल के दांव के आगे वो आगे भी धराशाही होती रहेगी।
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