fशमला।हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद प्रदेश की विभिन्न पार्टियों के नेताओं के लाडले कारपोरेट घराने जेपी सीमेंट इंडस्ट्री ने अर्की के बागा में गैर कानूनी तरीके से फेंके मलवे को नहीं उठाया । अब अगर भारी बारिश होती है तो नालों में पड़ा ये मलवा सतलुज में पहुंच जाएगा। ऐसा एक्सीन पीडब्ल्यूडी अर्की का अंदेशा है। उन्होंने कि अगर भारी बारिश हुई तो नालों में पड़ा ये मलवा सतलुज में पहुंचेगा। मजे की बात है कि ये मलवा ठिकाने कहां लगाना है इसके लिए अभी तक डंपिंग साइट ही चिन्हित नहीं हुई है।
जेपी कंपनी की ओर से हाईकोर्र्ट के आदेशों के बावजूद पूरी तरह से न हटाने के बाद हाईकोर्ट ने अब सरकार को दखल देने के आदेश दिए है।अर्की तहसील के बागा में जेपी कंपनी की ओर से फेंके लाखों टन मलवे को उठवाने को हाईकोर्ट के आदेश एक साल से ज्यादा का समय से दिए जा रहे है। आदेशों की पूरी तरह से पालना नहीं हुई है।
15 मई हाईकोर्ट ने सरकार को दखल देने के आदेश दिए है कि वो इस मलवे को ठिकाने लगाए व इसकी सारा खर्चा जेपी कंपनी से वसूल करे। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस मलवे को मानसून से पहले उठवाने के आदेश दिए है।
लेकिन मानसून करीब महीना दूर है और पीडब्ल्यूडी विभाग को अभी डंपिंग साइटस ढूंढनी है।पीडब्ल्यूडी विभाग का कहना है कि बरसात से पहले इस लाखों टन मलवे को उठवाना संभव नहीं है। अगर बारिश ज्यादा आई तो बाढ़ से ये मलवा सतलुज में पहुंच सकता है।पीडब्ल्यूडी विभाग के अर्की के एक्सीन बीबी भारदवाज ने कहा कि विभाग ने दस करोड़ से ज्यादा का आकलन हाईकोर्ट को भेजा है। ये अंटेंटिव अमांउट है। उन्होंने रिपोर्टर्ज आइ डॉट कॉम से कहा कि इतना मलवा उठाना आसान काम नहीं है।मानसून तो आने ही वाली है। आठ लाख क्यूबिक मलवा है।
जेपी कंपनी की ओर सो गैरकानूनी रूप से फेंके गए इस मलवे ने यहां भयंकर तबाही मचाई और ये आज भी लोगों के खेतों और नालों में जमा पड़ा है।
हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस आर बी मिश्रा की बैंच ने अपने आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट के आदेशों पर बनी विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों को मंजूर कर लिया जाता है।कमेटी की ओर से सुझाए गए सुरक्षा कदमों को युद्ध स्तर पर लागू किया जाए। हाईकोर्ट ने सरकार को बाकी के काम पर होने वाले खर्च का आकलन देने,डंपिंग साइट मुहैया कराने के आदेश दिए है।
अब तक हाईकोर्ट की ओर से ही सारे आदेश आ रहे है सरकार अपनी ओर से जेपी के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में नहीं ला पाई है। जबकि एमओयू में साफ है कि अगर कंपनी कानूनों का उल्लंघन करती है तो सरकार मुफ्त में मशीनरी समेत पूरा प्रोजेक्ट टेकओवर कर सकती है। जेपी कंपनी ने यहां कानूनों का किस स्तर पर उल्लंघन किया है ये खुलासा वीपी मोहन कमेटी की रिपोर्ट में हो चुका है और ये रिपोर्ट सरकार के पास मौजूद है।बावजूद इसके कहीं कुछ नहीं हुआ है।
सरकार के अफसर पहले जेपी के पक्ष में ग्राउंड रियलिटी से हट कर झूठी रिपोर्ट हार्ठकोर्ट तक में देते आए है। ये खुलासा वीपी मोहन की कमेटी में हो चुका है। विभिन्न विभाग के अधिकारियों की कारगुजारियां हाईकोर्ट की इस ऑब्जर्वेशन साफ हो जाती है जिसमें वीपी मोहन कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी एजेंसियां जेपी कंपनी से कानून का पालन कराने में बुरी तरह से नाकाम रही है। सरकार की ओर से ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
वीपी मोहन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया है कि सतलुज नदी को सीमेंट प्लांटस से खतरा हो गया है। सोलन और बिलासपुर में चार पांच सीमेंट प्लांटस ऐसे लग गए है जिनका सारा मलवा सतलुज के कैचमेंट एरिया में पहुंच गया है।इसके अलावा छह सीमेंट प्लांटस और पाइपलाइन में है। कमेटी ने प्रदेश में सीमेंट प्लांटस लगाने पर ब्लेंकैट बैन लगाने की सिफारिश की है।लेकिनद सरकार इन सिफारिशों पर गौर करने से कतरा रही है।
आलम ये रहा है कि एक अरसे से पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल और सीएम वीरभद्र सिंह के लाडले अफसर इस कारपोरेट घराने से विधानसभा और संसद में बने कानूनों को लागू करवाने में नाकाम रहे है।
जिस तरह छतीसागढ़ में नेता कारपोरेट घरानों की गोद में बैठ कर आदिवासियों पर जुल्म ढाते रहे है उसी तरह की संस्कृति प्रदेश में भी पनप जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसा स्थानीय लोगों का मानना है।नेताओं के अलावा अफसर भी पीछे नहीं है।सरकार से रिटायर हुए कई अफसर तो जेपी में नौकरी में लग गए है। इन अफसरों ने क्या कारगुजारियां अंजाम दी है उसका खुलासा भी वीपी मोहन कमेटी ने अपनी दो वॉल्यूम की रिपोर्ट में हुआ है। स्थानीय व राज्य स्तर के नेताओं की कारगुजारियों स्थानीय लोगों की जुबान पर तो है लेकिन इन कारगुजारियों को सामने लाने के लिए कोई कमेटी नहीं बनी हैं।
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