नई दिल्ली : बदलाव के इस दौर में आने वाले दिनों में आपके रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी प्रौद्योगिकी में और कई बदलाव होने जा रहे हैं। नई तकनीक जहां आपको गंतव्य तक पहुंचाने के रास्ते खोजने को और आसान बनाएगी, वहीं बैंकों के साथ आपके लेन-देन को भी सुरक्षित करेगी।
हाल में दुनिया की सबसे बड़ी सर्च इंजन कंपनी गूगल ने अपनी ‘गूगल मैप्स’ सेवा को ‘विजुअल पोजिशनिंग सिस्टम’ (वीपीएस) तकनीक से उन्नत बनाने की घोषणा की है जो बहुत जल्द उसके एंड्रायड के नए अपडेट के साथ लोगों को उपलब्ध हो जाएगी।
यह तकनीक ठीक हमारे मस्तिष्क की उस क्षमता की तरह काम करती है जिसमें हम रास्ते याद करने के लिए दुकानों के नाम या इमारतों को लैंडमार्क की तरह अपने दिमाग में दर्ज करते जाते हैं।
वीपीएस आपके मोबाइल कैमरा को गूगल मैप्स के साथ जोड़कर जहां आप खड़े होते हैं उसके आसपास के रास्तों की वास्तविक समय में जानकारी, वीडियो और दिशाएं दिखाने में सक्षम बनाती है। गूगल ने इसमें पिछले कई सालों में गूगल सर्च, स्ट्रीटव्यू और मैप्स के डाटा का आकलन कर उन्हें आपस में जोड़ा है जिससे इस सेवा में सटीक रास्ता पता करने में मदद मिलती है।
इसी तरह कुछ साल पहले देश में कई बैंकों के लाखों क्रेडिट-डेबिट कार्ड का डाटा चोरी हुआ था, क्योंकि पुरानी तकनीक में डाटा हैक होने की समस्या थी। ब्लॉकचेन इसी से पार पाने की एक नयी तकनीक है।
इसमें लेनदेन की जानकारी ब्लॉकों यानी खांचो में दर्ज होती है। हर खांचे का अपना एक विशिष्ट गोपनीय कोड होता है जिसे हैश कहते हैं। यह खांचे आपस में जुड़कर एक श्रृंखला बनाते हैं। हर खांचे में उससे पिछले वाले खांचे का हैश भी होता है।
किसी नये ब्लॉक को जोड़ने के लिए प्रणाली से जुडे लगभग 50% कंप्यूटरों से सत्यापन कराना होता है और एक बार दर्ज किया गया डाटा हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है, क्योंकि डाटा को बदलते ही खांचे का हैश बदल जाता है और आगे जुडे सारे खांचे खराब हो जाते हैं।
इसलिए यह तकनीक किसी हैकर के लिए अभेद किला बन जाती है। बिटकॉइन जैसी डिजिटल मुद्रा इसी तकनीक पर आधारित है।
भविष्य में यह तकनीक ना सिर्फ बैंकिंग क्षेत्र को बदलेगी बल्कि सौदों इत्यादि के लिए किए जाने वाले नोटरी के काम का भी डिजिटलीकरण करेगी।
गूगल की एक और सेवा ‘गूगल डुप्लेक्स’ आपके फोन पर बातचीत के काम को कम करने में सक्षम है। इसमें आप बस अपने फोन को आवाज से निर्देश देकर उसे किसी काम के लिए कॉल करने के लिए कह सकते हैं और आपका फोन आपकी ही तरह किसी से भी बातचीत करने में सक्षम होगा। यह तकनीक इंसानों के बातचीत के तरीके और सामने वाले की बात को समझकर फोन को उत्तर देने में माहिर बनाती है।
गूगल की ये दोनों सेवाएं बिगडाटा और मशीन लर्निंग तकनीक पर आधारित हैं।
इस पर डेल – ईएमसी स्क्वायर में बिगडाटा सॉफ्टवेयर इंजीनियर गौरव फगरे ने ‘भाषा’ को बताया, ‘बिग डाटा असल में डाटा प्रबंधन से जुड़ी तकनीक है जो डाटा एनालिटिक्स, स्टोरेज जैसी कई तकनीकों का संयोजन है।’’
उन्होंने कहा कि उदाहरण स्वरूप एक विमान के उडा़न भरने से पहले कई गीगाबाइट का डाटा तैयार होता है। इसमें विमान की जांच, उड़ान, यात्रियों और सामान की तमाम जानकारियां होती हैं। बिगडाटा में इसी डाटा का प्रबंधन और आकलन होता है।
इस आकलन के आंकडों के आधार पर मशीन लर्निंग का काम करती है। इसमें मशीन भविष्य में आपकी जरूरत के हिसाब से काम करने के लिए तैयार होती जाती है। मशीन को पता होता है कि आप किस तरह की सेवाओं का उपयोग करते हैं और क्या आपकी जरूरत है।
साभार एजेन्सी
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