शिमला।भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की केंद्रीय कमेटी सदस्य व पूर्व राज्यसभा सदस्य बृंदा कारत ने मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू को पत्र लिखकर वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) को लेकर प्रदेश के अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन की ओर से जारी किए गए दिशा निर्देश पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
वामपंथी नेत्री बृंदा करात ने सुक्खू से इस पत्र के माध्यम से आग्रह किया गया है कि इस वन अधिकारी की ओर से जारी किए गए इन आपत्तिजनक दिशानिर्देशों को तुरन्त प्रभाव से वापस लेने के आदेश दे। क्योंकि यह दिशानिर्देश वन अधिकार अधिनियम, 2006 के बिलकुल भी अनुरूप नहीं हैं और यह प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) को लागू करने को लेकर जो पिछले कुछ समय से संजीदा प्रयास व कार्यवाही की जा रही है उसकी भी अवेहलना है।
उन्होंने पत्र में कहा कि पिछले कुछ समय में प्रदेश के राजस्व, कानून , बागवानी व जनजातीय विभाग के मंत्री जगत सिंह नेगी के द्वारा राजस्व, वन व अन्य विभागों के अधिकारियों, किसान संगठनों, गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य लोगों के साथ प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर बैठकों को आयोजित कर वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) को प्रभावी ढंग से लागू करने को लेकर आदेश जारी किए हैं। परन्तु अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन द्वारा उसके बाद 11 अप्रैल , 2025 को जिलाधीशों व वन अधिकारियों को जारी दिशानिर्देश सरकार की इस कार्यवाही पर भी सवालिया निशान लगाते हैं।
बृंदा कारत, जोकि वन अधिकार अधिनियम को लेकर बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति की सदस्य भी रही है, ने पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन द्वारा जारी दिशानिर्देश में जो उच्चतम न्यायालय का हवाला देकर वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) को लेकर जो संशय पैदा किए गए हैं वह बिल्कुल निराधार है। क्योंकि इस अधिनियम में जनजातीय व अन्य पारंपरिक वनवासी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है और अभी तक उच्चतम न्यायालय ने वन अधिकार अधिनियम को लागू करने की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। उच्चतम न्यायालय में कुछ सेवानिवृत वन विभाग के अधिकारियों द्वारा इस अधिनियम को चुनौती दी है जिस पर अभी तक कोई भी अंतिम निर्णय नहीं आया है।
इसके साथ ही अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन द्वारा जारी दिशानिर्देश के पैरा 2 में जो दावे करने वालों में केवल भूमिहीन, आर्थिक रूप से अक्षम, ऐतिहासिक रूप से वनों पर निर्भर जनजातीय आदि का ही जो जिक्र किया गया है वह सरासर गलत है क्योंकि अधिनियम में इस तरह का कोई भी उल्लेख नहीं किया गया है। इसके साथ ही वन अधिकार अधिनियम के तहत किए जाने वाले दावों के सत्यापन करने वाले बुजुर्गों के ’आधार कार्ड’ को जोड़ने की बात की गई है वह सरासर गलता व गैर कानूनी है। क्योंकि वन अधिकार अधिनियम में इसका कोई भी जिक्र नहीं किया गया है। इस प्रकार के दोषपूर्ण दिशानिर्देश जारी कर अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक वन नए रूप में अधिनियम बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो कि पूर्ण रूप से गैर कानूनी है।
उधर माकपा के प्रदेश सचिव संजय चौहान ने कहा कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) तथा अन्य वामपंथी दलों ने वन अधिकार अधिनियम, 2006 को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वामपंथी दलों के द्वारा जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(UPA) की सरकार को समर्थन दिया गया था तो मनरेगा, सूचना का अधिकार(RTI) तथा वन अधिकार अधिनियम(FRA) को न्यूनतम सांझा कार्यक्रम में वामपंथी दलों ने ही शामिल करवाया था। पार्टी देश व प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) लागू करने के लिए निरन्तर संघर्ष कर रही है तथा विभिन्न संगठनों के द्वारा चलाए जा रहे उन सभी आंदोलनों का समर्थन करती है जो आदिवासी, जनजातीय, गरीब किसानों, दलित व अन्य गरीब लोगों को ज़मीन से बेदखली रोकने तथा उनको ज़मीन व अन्य वन अधिकार दिलाने के लिए चलाए जा रहे हैं।
पार्टी सरकार से मांग करती है कि उच्च न्यायालय के आदेशों की आड़ में वन व अन्य विभागों के द्वारा प्रदेश में किसानों, दलित व अन्य गरीब लोगों की ज़मीन से बेदखली और घरों की तालाबंदी पर रोक के लिए प्रभावी कदम उठाए। वन अधिकार अधिनियम, 2006(FRA) को प्रभावी ढंग से लागू कर जनजातीय व अन्य पारंपरिक वनवासी को उनके जमीन व अन्य वन अधिकार प्रदान करे।
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