शिमला।आठ दिसंबर से लेकर अब तक 22 दिनों तक सुक्खू व मुकेश अग्निहोत्री की सरकार पूर्व मुख्ययमंत्री जयराम ठाकुर की ओर से महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त नौकरशाही के सहारे अपना काम काज चला रही हैं। यह अपने आप में दिलचस्प हैं।विधायकों व मंत्रियों के सहारे कुछ नहीं हैं। विधायकों को शपथ नहीं दी गई है और मंत्रिमंडल का गठन किया नहीं हैं।
जिन अधिकारियों ने पिछले पांच सालों में सब कुछ किया सुक्खू उन्हीं से विभागों के कामकाज की समीक्षा करा रहे हैं। अब अपने की काम को कोई अधिकारी कैसे कहेगा कि उसने कुछ गलत किया हैं। सुक्खू सरकार ने सत्ता में आते ही विभिन्न संस्थानों को डिनोटिफाई किया व दलील दी कि यह संस्थान बिना बजट प्रावधान के खोले गए थे। जाहिर है अधिकारियों ने ही इन संस्थानों को नोटिफाई किया होगा। ऐसे में क्या सुक्खू ने किसी अधिकारी से जवाब तलब किया होगा कि उनकी भूमिका क्या रही है। राजनीतिक नेतृत्व को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
मजेदार यह है कि प्रशासनिक स्तर पर जिन अधिकारियों मुख्य सचिव व अतिरिक्त मुख्य सचिव की सरपरस्ती में यह सब हुआ वह ही आज सुक्खू के इर्द गिर्द घूम रहे हैं। ऐसे में वह अपने ही कृत्यों को कैसे गलत ठहराएंगे। अगर राजनीतिक स्तर पर यह सब हुआ तो सुक्खू ने नजदीकियां निभाते हुए तमाम नए विधायकों को शपथ् दिलाने से व मंत्रिमंडल का गठन करने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता दे दी।विधानसभा सत्र बुलाने तक का इंतजार नहीं किया गया। व्यक्तिगत दोस्तियां निभाई जा रही हैं। सामने कुछ है और पर्दे के पीछे कुछ और हो रहा हैं। यह तो अभी 22 दिनों की ही तस्वीर हैं।
कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर के कामकाज को पेपर लीक होने के बाद निलंबित कर दिया गया। आयोग के प्रशासिनक मुखिया अतिरिक्त मुख्य सचिव कार्मिक प्रबोध सक्सेना है। क्या सुक्खू ने उनसे हिसाब -किताब मांगा होगा। आखिर वहां सब कुछ इतने दिनों तक क्यों चलता रहा होगा।
सुक्खू ने कह दिया कि इन धांधलियों के लिए राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। लेकिन जब यह पूछा गया कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री, कोई मंत्री या कोई नेता इन धांधलियों के पीछे रहा है , क्या सरकार के पास ऐसी कोई कुछ जानकारी हैं । सुक्खू का जवाब था अभी जांच चल रही हैं। यानी सरकार के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। इसके बावजूद राजनीतिक संरक्षण का दावा सुक्खू करते आ रहे हैं।
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