शिमला। पावर कारपोरेशन के पूर्व चीफ इंजीनियर विमल नेगी की रहस्यमय मौत की जांच सीबीआई को जाएगी या नहीं इस बावत प्रदेश हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया हैं।प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता अनूप रतन ने अदालत में कहा कि एसआइटी इस मामले की सही तरीके से जांच कर रही है और अगर इस मामले को सीबीआई के सुपुर्द किया जाता है तो इससे प्रदेश पुलिस का ‘मौराल ‘यानी आत्मबल कमजोर होगा। उन्होंंने इस मामले को सीबीआई के सुपुर्द करने का विरोध किया।
याद रहे सुक्खू सरकार व उसके ताकतवर मंत्री जगत सिंह नेगी इस मामले को सीबीआई के सुपुर्द करने का शुरू से ही विरोध कर रहे हैं।
इससे पहले बीते रोज भी महाधिवक्ता ने इस मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा की रपट याचिकाकर्ता के साथ साझा करने का भी विरोध किया था। उन्होंने दलील दी थी कि ये रपट अभी भी सरकार के विचाराधीन हैं। ये रपट अदालत में पेश कर दी गई और इसे अदालत ने देख भी लिया। ।
उधर महाधिवक्ता की ओर से डीजीपी अतुल वर्मा और अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा की ओर से पैरवी नहीं की गई। अदालत में महाधिवक्ता ने कहा कि इनकी रपटें उनसे यानी महाधिवक्ता से वेट या तस्दीक नहीं कराई गई हैं। महाधिवक्ता ने केवल एसपी शिमला व उनकी एसआईटी की ओर से इस मामले में पैरवी की।
इस तरह सरकार में किस स्तर पर क्या चल रहा है वो सब कुछ अदालत में सामने आ गया। सुनवाई के दौरान एसपी शिमला ने भी अदालत में अपना पक्ष रखा व डीजीपी को तमाम रपटें न देने को लेकर अपना पक्ष रखा । उन्होंने कहा कि उन्होंने जो भी कुछ किया वो कानून के मुताबिक किया हैं। इस दौरान अदालत ने एसपी शिमला की क्लास भी लगाई।
उधर, इस मामले में डीजीपी अतुल वर्मा की रपट में जिस पैन ड्राइव को फार्मेट कर सबूत से छेड़छाड़ करने का जिक्र किया था उसे लेकर महाधिवक्ता अनूप रतन ने मीडिया में पलटवार किया कि ये पैन ड्राइव एएसआई पंकज कुमार ने अपने पास रख लिया था व तब इस मामले की जांच डीजीपी की ओर से गठित एसआईटी के देखरेख में हो रही थी। एसपी शिमला संजीव गांधी वाली एसआइटी ने तो इसे बाद में लिया और इसे एसएफएल जुन्गा को भेजा। जिसमें 4 हजार फाइलें मिली और साढ़े 12 हजार दस्तावेज मिले हैं।
याद रहे डीजीपी अतुल वर्मा की ओर से बीते रोज दायर की गई स्टेटस रपट में एसपी शिमला पर लगाए इल्जामों को लेकर महाधिवक्ता ने मीडिया से कहा कि शायद डीजीपी भूल गए होंगे कि पैन ड्राइव उनकी ओर से गठित और उन्हीं की नियंत्रण में रही एसआइटी की देखरेख में बरामद किया था। ये एसआइटी डीजीपी ने 15 मार्च को विमल नेगी के लापता होने पर उन्हें तलाशने के लिए गठित की थी ।
याद रहे डीजीपी अतुल वर्मा ने बीते रोज दायर अपनी रपट में बेहद संगीन इल्जाम एसपी शिमला और विमल नेगी की मौत के पीछे के कारणों की जांच करने के लिए गठित एसआइटी पर लगा दिए थे।
डीजीपी अतुल वर्मा ने अपनी स्टेटस रपट में कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्होंने तीन मई और छह मई को एसपी शिमला को चिटठी लिख कर जांच अधिकारी के साथ तमाम संबधित फाइलों डीजीपी को भेजने को लिखा था।लेकिन एसपी शिमला ने 7 मई तक कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नवदीप सिंह को केस फाइल के साथ आठ मई को हाजिर होने का निर्देश दिया।
इसी तरह एसआइटी के सदस्य डीएसपी शक्ति सिंह और इंस्पेक्टर मनोज कुमार को भी डीजीपी के समक्ष हाजिर होने को कहा गया। एसपी की ओर से कोई जवाब न मिलने पर सात मई को एसएफएल जुन्गा की निदेशक को तमाम रपटों को नौ मई को डीजीपी को मुहैया कराने का आग्रह किया गया ताकि हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन किया जा सके।
इस बीच 7 मई को डीआइजी दक्षिणी रेंज अंजुम आरा की ओर से एक चिटठी मिली जिसमें कहा गया कि गुम हुए पैन ड्राइव को लेकर एसपी की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया हैं। इसके बाद आठ मई को एसपी शिमला की ओर ये एक चिटठी भेजी गई जिसमें एसपी ने जांच अधिकारी को दस्तावेजों के साथ डीजीपी के समक्ष हाजिर होने की इजाजत देने में असमर्थता जताई हैं।एसपी ने साथ ही ये भी लिखा कि मामले की जांच में प्रगति रपट पहले ही डीआइजी के मार्फत भेज दी गई हैं। डीजीपी ने अपनी स्टेटस रपट में लिखा कि केस फाइलों, केस डायरियों और संबधित दस्तावेजों की पड़ताल किए बगैर स्वतंत्र रपट तैयार नहीं की जा सकती थी।
इसके बाद एसपी शिमला ने आठ मई को एसएफएल जुन्गा की निदेशक को ये लिखा की जांच अधिकारी के सिवाय किसी और को रपटों को न दिया जाए। डीजीपी अतुल वर्मा ने हाईकोर्ट को बताया की एसपी शिमला ने हर कोशिश की कि उन तक रपटें न पहुंचे।लेकिन दस मई को निदेशक एसएफएल की ओर उन्हें रपटें भेज दी गई।
इन रपटों में एक रपट पैन ड्राइव के डेटा की थी। जिसमें कहा गया था कि ये पूरी तरह से ब्लेंक थी लेकिन बाकी तकनीकों का इस्तेमाल कर जो डेटा निकाला गया उससे पता चला कि इस पैन ड्राइव को 21 मार्च को ही फार्मेट कर दिया गया था। डीजीपी ने अपनी रपट में कहा कि एसआइटी के स्तर पर ये भारी कदाचार है।मृतक के शव के साथ ये पैन ड्राइव मिला था जो कि एक महत्वूपर्ण सबूत था लेकिन इसके साथ छेड़छाड़ कर दी गई और इसे जब्त करने के बाद सबूतों को नष्ट कर दिया गया।
इसी को लेकर आज महाधिवक्ता अनूप रतन ने साफ किया कि डीजीपी ने 10 मार्च को लापता हुए विमल नेगी की तलाश के लिए जो 15 मार्च को एसआइटी गठित की थी, ये पैन ड्राइव उसी के पास होना चाहिए था। जिस एएसआइ ने इसे अपने पास रख लिया था और फार्मेंट कर लिया तक तक सब कुछ डीजीपी और उनकी ओर से गठित एसआइटी के नियंत्रण में थी और उन्हीं को रिपोर्ट भी कर रही थी।
18 मार्च को विमल नेगी की लाश मिलने के बाद दूसरी एसआइटी गठित की गई उसने ये पैन ड्राइव हासिल की और उसे एफएसएल जुन्गा को भेजा।
अब इस मामले को सीबीआई को भेजा जाना है या नहीं इस पर अदालत के फैसले का इंतजार हैं।
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