शिमला। प्रदेश के बीस महिला संगठनों ने जयराम सरकार की पुलिस की ओर से कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा को कोरोना माहामारी के बीच लाहुल स्पिति में घुसने से रोकने व उन्हें बेरंग लौटा देने के मामले में पुलिस की ओर लगातार महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए जा रहे मामलों का कड़ा संज्ञान लेते हुए इन महिलाओं के संघर्ष को समर्थन देने का एलान किया है।
इन संगठनों ने इल्जाम लगाया है कि अब 190 महिलाओं के नाम एफआइआर में जोड़ दिए है व जो महिलाएं सरकारी नौकरी में है व जिन्होंने इस प्रदर्शन में भाग लिया था, उनके खिलाफ सेवा नियमों के तहत कार्यावाही कर जयराम सरकार जुल्म ढहाने का काम कर रही है। जबकि इन महिलाओं ने जो कुछ भी किया वह लाहुल स्पिति जैसे दुर्गम इलाके के लोगों को कोरोना महामारी से बचाने की मंशा के लिए किया।
इन गैर राजनीतिक महिला संगठनों ने कहा है कि जन जातीय क्षेत्र स्पिति के मुख्यालय काज़ा में महिलाओं ने स्थानीय समुदाय की ओर घोषित पूर्ण बंदी की अवहेलना करते हुए कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा के प्रवेश को लेकर इन महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया था।
इन महिला संगठनों ने कहा कि 9 जून को स्पिति के महिला मंडलों, युवा मंडलों और व्यापार मंडलों के कुछ सदस्य प्रशासन को स्थानीय पूर्णबंदी को पूरी तरह से लागू रखने को ले कर ज्ञापन सौपने गये थे। जब उन्हें पता चला की जनजातीय मंत्री और क्षेत्र के विधायक राम लाल मारकंडा स्पिति में प्रवेश करने वाले हैं तो वहां सैंकड़ो की तादाद में मौजूद लोगों खासकर महिला मंडल के सदस्यों ने उनके प्रवेश का विरोध किया और उन्हें वहां से बेरंग लौटा दिया।विरोध करने वाली इन महिलाओं ने उनसे स्थनीय लोगों की ओर घोषित पूर्णबंदी के नियम को पालन करने की मांग की गई थी।
इन महिला संगठनों ने कहा कि हालांकि जून के पहले हफ्ते से देश और राज्य में सरकार की ओर से पूर्णबंदी में ढील देने का निर्णय लिया गया था परन्तु महामारी के फैलाव के खतरे और स्पिति की अत्यंत नाजुक, दुर्गम और सवेंदनशील भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए हिमाचल के इस सीमांत जन जातीय क्षेत्र में 17 मार्च को क्षेत्र के अलग अलग संगठनों, युवा मंडल, महिला मंडल, स्वयंसेवी संस्थाएं पंचायत प्रतिनिधि, और सामाजिक प्रतिनिधियों ने मिल कर क्षेत्र को कोरोना मुक्त रखने की खातिर पूर्ण बंदी को प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए। पिछले तीन महीने से स्पिति के लोगों ख़ास कर महिलाओं ने इसी सन्दर्भ में सक्रिय भूमिका निभायी है ।
प्रशासन के साथ मिलकर कोविड को लेकर जन जागरूकता के लिए काम हो या फेस मास्क बना कर क्षेत्र में वितरण करना, महिला मंडलों ने हर प्रयास में नेतृत्व के साथ भागीदारी दी। गैर स्थानीय लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना हो या फिर क्षेत्रीय व्यक्ति के बाहर से प्रवेश करने पर 15 दिन की क्वारंटाइन प्रक्रिया को सफल रूप से लागू करने का फैसला हो,महिला मंडलों के माध्यम से इनको कड़े तौर से लागू किया गया था।
पर्यटन के लिए मशहूर होने की वजह से लोगों को यह भय भी था कि पूर्णबंदी खुलते ही कहीं बाहर से लोगों का आना शुरू न हो जाए और इन्ही सब कारणों के चलते महिला मंडलों की ओर से 9 जून को मारकंडा को भी आने से रोका गया।
किन्नौर के महिला संगठनों की प्रतिनिधि रतन मंजरी ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि जब एक छोटे से क्षेत्र के लोग इस तरह के सकारात्मक प्रयास करते हैं तो सरकार और उसके नुमाइंदों का नैतिक फ़र्ज़ है कि इस में स्थानीय जनता का सहयोग करें लेकिन 9 जून के प्रदर्शन के बाद क्षेत्र के महिला मंडलों पर लगातार दबाव बना कर उन का उत्पीड़न किया जा रहा है
। उन्होंने इल्जाम लगाया कि महिलाओं को मंत्री से माफ़ी मांगने के लिए प्रशासन व पार्टी के प्रतिनिधियों ने लगातार दबाव डाला बल्कि सरकारी विभागों के माध्यम से जिन स्थानीय महिला कर्मियों ने प्रदर्शन में भाग लिया उनको कारण बताओ नोटिस जारी किये गए और 21 जून को कई महिलाओं को काज़ा पुलिस थाने में पेश होने के लिए सम्मन दिया गया। इनके खिलाफ धारा 341, 143, 188 का मुकदमा दर्ज किया गया है।
इन संगठनों ने कहा कि पुलिस की यह कार्यवाही जन जातीय समाज की महिलाओं को दबाने का प्रयास है बल्कि सत्ता के अहंकार और दोगले व्यव्हार का सबूत भी है । जहां एक तरफ प्रदेश में पूर्णबंदी का उल्लंघन करने वाले लोगों पर स्थानीय प्रशासन की ओर से कड़ी धाराएँ लगायी गयी हैं वहीँ दूसरी ओर जब स्पिति की महिलाओं ने पूर्णबंदी के उल्लंघन का विरोध किया तो उलटा उन्हीं पर क़ानूनी कार्यवाही की जा रही है। हिमधरा समूह से हिमशी सिंह ने कहा कि प्रशासन और पुलिस की ओर से यह कार्यवाही सरासर गलत है और सरकार और सत्ता में बैठे प्रतिनिधियों की पुरुषवादी और गैर-बराबरी की मानसिकता को दर्शाती है । महिलाओं को चुन-चुन कर उन पर मामले दर्ज कर के प्रशासन ने यह साबित कर दिया है कि यह कार्यवाही महिलाओं और जन जातीय समाज में भय पैदा करने और उनकी स्थानीय मुहीम को कमज़ोर करने के लिए की गयी है।
पर्वतीय महिला अधिकार मंच की विमला विश्व प्रेमी ने कहा कि प्रदेश के विभिन्न महिला संगठनों ने कि काज़ा पुलिस की ओर से इन मुकदमों को तुरंत वापस लेने व स्थानीय महिलाओं को डराने धमकाने व प्रताड़ित करने को बंद करने की मांग की है।
इन महिला संगठनों ने देश में जन जातीय क्षेत्रों और समुदायों को एक ख़ास संवैधानिक दर्जा दिया गया है। स्पिति जन जातीय क्षेत्र की महिलाओं ने अपने समाज और क्षेत्र की सुरक्षा में बखूबी भागीदारी निभायी है। इस पूरे जन स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए पूरे राज्य और देश में महिला मंडलों, आशा वर्कर और अन्य महिला स्वास्थ्य कर्मियों ने मुश्किल परिस्थितियों में भी सक्रिय भूमिका निभायी हैं। गौर करने बात है की सामाज की सुरक्षा का सबसे बड़ा बोझ महिलाओं के कन्धों पर ही होता है क्योंकि गाँव -परिवार में भरण-पोषण और देखभाल के काम का ज़िम्मा आसामान रूप से महिलाओं के हिस्से में आता है। स्पिति की महिलाओं के खिलाफ प्रशासन की ओर से उठाया गया कदम हमारे समाज की सभी महिलाओं के आत्मसम्मान पर सीधा वार है।
इन महिला संगठनों ने बुलंद की पक्ष में आवाज़-:
रतन मंजरी, अध्यक्षा, महिला कल्याण परिषद् किन्नौर
निर्मल, एकल नारी शक्ति संगठन
विमला विश्व प्रेमी, पर्वतीय महिला अधिकार मंच हिमाचल
लता देवी, पर्वतीय महिला अधिकार मंच, सराज
सकीना एवं नानकी भारद्वाज, पर्वतीय महिला अधिकार मंच बैजनाथ
आभा भैया, जागोरी ग्रामीण, कांगड़ा
मांशी आशा हिमशी सिंह, अदिति वाजपेयी, हिमधरा पर्यावरण समूह
रितिका ठाकुर,रंजोत कौर हिमालयन स्टूडेंट्स एन्सेम्बल
सर्व शक्ति संगम, नालागढ़, सोलन
सर्व शक्ति संगम, धरमपुर, सोलन
एकल नारी कृषि सहकारी सभा, उना
एकल नारी शक्ति संगठन, कांगड़ा
एकल नारी शक्ति संगठन, बिलासपुर
एकल नारी शक्ति संगठन, मंड
महिला मंडल पल्युर, चंबा
महिला मंडल टिपरा, चंबा
केसांग ठाकुर, स्वायत शोधकर्ता लाहौल
आत्रेयी, सामाजिक कार्यकर्ता
आयुषी नेगी, सहायक प्रोफेसर
अदिति पिंटो, सामाजिक कार्यकर्ता,शोधकर्ता
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