शिमला। अपनी कूची में रंगों को भरकर कैनवास पर उंढेल देने के बाद जो कृति हिमाचल के युवा चित्रकार बलदेव पंवर के हाथों शक्ल लेती है वो अनायास ही दिल को छू लेने वाली बन जाती हैं। ये गेयटी थियेटर में 21 अप्रैल तक लगी उनकी कृतियों की नुमाइश ये साबित होता भी हैं।
गेयटी थियेटर में उनकी कलाकृतियों की नुमाइश को कलाप्रेमियों ने खूब सराहा ।वो उनकी कृतियों को देखकर एकाएक उनकी ओर खींचे चले आएं ।प्रेमपाश में आबद्ध मोर व मोरनी की ऐक्रेलिक रंगों में बनी कृति बेहद कलात्मक और आकर्षक बनी हैं। यहां पर पक्षियों के राजा मोर और मोरनी की प्रेमातुरता को उन्होंने नए अंदाज़ में पेश किया हैं। जिसमें अश्लीलता नहीं हैं और कामुकता भी सीमा की ओढ़नी लपेटे हुए हैं।
इस कृति में मोरनी का मानवीकरण(नारी) कर इसे अर्ध नारीश्वर का खिताब देने की उनकी मंशा झलकती हैं। पूरी नुमाइश में ये कृति बेहद आकर्षक लगती हैं।
जिला सोलन के अर्की के कुनिहार के गांव डैहल के बलदेव पंवर की नुमाइश में लगी तमाम कलाकृतियां यर्थाथ की झलक देती हैं। वो यथार्थवादी कलाकार उभर कर सामने आए हैं। लेकिन इस नुमाइश में उनका मन अपनी कृतियों को हू-ब-हू उतारने में ज्यादा लगा हैं और वैसे भी उन्हें अपनी कृतियों को कूची और रंगों से कैनवास और कागद पर हू-बू-हू आकार देने में महारत हासिल हैं।
हिमाचल टोपियों को लेकर बनाई उनकी कृति भी अनायास ही अपनी ओर ध्यान खींचती हैं। इस कृति में हरे रंग को जो चमक मिली है आंखों ही नहीं दिल को भी सुकून देती हैं।
जबकि हिमाचली परंपरा को जीवंत करती उनकी ‘धाम’ (शादियों में खाना बनाने की रिवायत)कृति भी बेहद सुंदर बन पड़ी है। इसमें उनके कूची और रंगों के मेल से ‘चर’( यानी खुले में बनी रसोई जिसमें कई बर्तन एक साथ रख भोजन बनाया जाता हैं) का दृष्य बिलकुल जीवंत बन पड़ा हैं।
बर्तन यानी टोकणियों और आग को रचने में उन्होंने जो रंगों का संयोजन किया है वो बेमिसाल बना हैं। ये हू-ब-हू शादियों में बनने वाली ‘चर’ ही लग रही हैं।कलाप्रेमियों की ओर से इस कृति को भी खूब सराहा गया।
सीमेंट व ईट के बनते घरों की वजह से लुप्त होती गौरैया के (चिडि़या) रोष को भी उन्होंने जीवंत करने की कोशिश की है। बलदेव कहते है कि पहले कच्चे घर होते थे और गौरैया के घोंसले आसपास ही होते थे लेकिन अब कंकरीट के जंगल बन गए हैं और गौरैया तो कहीं लुप्त ही हो गई हैं। इस कृति में गड़वी से पानी पीती गौरैया भली लगती है और पुरानी यादों को ताजा कर जाती हैं।
बलदेव तंवर अपने आसपास के परिवेश यानी प्रकृति से अपनी कलाकृतियों के विषयों को चूना है और फिर रंग भरकर उन्हें जीवंत करने में डूब गए हैं।
इस नुमाइश में उन्होंने बर्फानी तेंदुए को कैनवास पर जीवंत कर दिया हैं। कूची के जरिए रंगों से कैनवास पर उतारा गया ये तेंदुआ बिलकुल हू-ब-हू लगता हैं।
इसके अतिरिक्त उनकी कूची और रंगों के मेल से बने फूल, फल , हाथ, चीता, तेंदुएं, मोर और बाज पक्षी के चित्र आकर्षक बन पड़े हैं। मलाणा गांव और शक्तिपीठों की जल रंग में बनी कृतियां भी आकर्षक है।
बलदेव पंवर की कृतियां चाहे वो जल रंग में बनी हो या तैल रंग में या ऐक्रेलिक रंग में वो अपनी कृतियों को उकेरने में डूब जाते हैं।
अपने विषयों को हू-ब-हू कैनवास व कागद पर उतार देने की कला में बलदेव ने महारत हासिल की हैं। पंवर जैसे देश के कई बाकी नामी कलाकार है जो अगर दुनिया खास कर पश्चिम की कलाकृतियों को जेहन में रखे तो अगले पड़ाव को पार करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।पश्चिम वैसे भी पूर्व की ओर निहारने में लगा है कि वहां से कला का कोई झोंका आए और अपनी जगह बनाए।
बलदेव पंवर कहते है कि रंगों और रेखाओं का सबक उन्होंने अपने पिता सुखराम पंवर से ही लिया था। उनका रूझान बचपन से ड्राइंग की ओर था । उनके पिता बैंक में नौकरी करते थे लेकिन नौकरी से पहले वो भी ड्राइंग करते थे। ऐसे में घर में माहौल मिला और वो आगे बढ़ते गए। इसी रूझान की वजह से उन्होंने स्कूल में तमाम तरह के अवार्ड अपने नाम किए।
सोलन के गीता आदर्श विद्यालय से उन्होंने कामर्स में बारवीं की परीक्षा पास की उसके बाद बीए गवर्नमेंट डिग्री कालेज सोलन से बीए किया। चूंकि आर्ट की तरफ रूझान था तो उन्होंने हिमाचल प्रदेश विवि में मिनिएचर आर्ट में दाखिला ले लिया। मिनिएचर आर्ट की बारीकियां यहीं उन्होंने अपने शिक्षक बलविंद्र से सीखी।
लेकिन बीच में उन्होंने सोलन में कला के क्षेत्र में हिमाचल में नामचीन नाम चमन शर्मा से भी कुछ समय तक कला का ज्ञान हासिल किया। चमन शर्मा का कला के प्रति बचपन से ही जुनून था और अपने संघर्ष के दम पर उन्होंने इस विधा में एक मुकाम हासिल किया हैं।उनका नाम हिमाचल में कला के क्षेत्र में आदर से लिया जाता हैं।
बलदेव पंवर कहते है कि उनकी कलाकृतियों की नुमाइशें सोलन, शिमला, रौरिक आर्ट गैलरी कुल्लू के अलावा दिल्ली में गांधी आर्ट गैलरी में भी लग चुकी हैं।
सोलन के बलदवे पंवर और बनारस की विजयलक्ष्मी दीपक मेर दोनों ने गेयटी थियेटर में अपनी कलाकृतियों की नुमाइश लगाई थी जो 21 अप्रैल को तक ही थी। दोनों के काम का खूब सराहना मिली।
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