शिमला। मुख्य संसदीय सचिव व अर्की से कांग्रेस विधायक संजय अवस्थी के इलाके के किसानों ने प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार से जेपी कंपनी के सीमेंट कारखाने के लिए जबरन अधिग्रहित की गई काश्त योग्य जमीन को जमीन के मालिकों को लौटाने की सुक्खू सरकार से मांग की हैं। इन जमीन मालिकों ने कहा कि अगर सरकार ऐसा करती है तो उन्हें जो मुआवजा सरकार ने अदा किया था वो उसे लौटाने को भी तैयार हैं। इस जमीन को जबरन अधिग्रहण करने की प्रक्रिया 2008 में तत्कालीन भाजपा की प्रेम कुमार धूमल सरकार में शुरू हुई थी।
गांव भलग वासी और बाघल विकास परिषद और मांगल विकास परिषद के कानूनी सलाहकार एडवोकेट नंदलाल चौहान, भलग गांव के बृजलाल चौहान,प्रेम लाल चौहान व अन्यों ने इस बावत मुख्यलमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू् को चिटठी लिख कर दावा किया है कि इससे सरकार के करोड़ों रुपयों की बचत भी होगी और मसला भी सुलझ जाएगा।
याद रहे पूर्व की धूमल,वीरभद्र सिंह व जयराम सरकार में गांव भलग की करीब सवा 56 बीघा जमीन जिसमें क्यार व सिचिंत रकबा था का अधिग्रहण सरकार ने जबरन जेपी कंपनी की माइनिंग सेफटी जोन के लिए किया था। इस अधिग्रहण को लेकर अवार्ड घोषित करने से पहले 2017 में तत्कालीन जेपी कंपनी की ओर से सरकार को कहा गया कि उसे इस जमीन की जरूरत नहीं है जबकि जमीन मालिक तो पहले से ही जमीन देने से इंकार कर रहे थे। लेकिन इस दौरान भाजपा व कांग्रेस सरकार से जुड़े नेताओं और चंद नौकरशाहों ने जबरन ये अधिग्रहण करा दिया।
अब जेपी कंपनी ने ये कारखाना बिरला समूह की कंपनी अल्ट्राेटेक को बेचा हुआ है समझौते के मुताबिक तमाम पिछली देनदारियां जेपी कंपनी को ही अदा करनी हैं।उधर, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही के एक फैसले में कहा कि ये देनदारी अल्ट्रााटेक कंपनी की नहीं हैं। इस देनदारी को जेपी कंपनी से वसूला जाना चाहिए । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चूंकि सरकार ने जबरन अधिग्रहण किया था तो जमीन मालिकों को प्रदेश सरकार मुआवजा अदा करे और वो बाद में जेपी कंपनी से इस रकम को वसूलती रहे।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अभी सुक्खू सरकार आगे नहीं सरकी है लेकिन भलग के जमीन मालिकों ने अपनी ओर से सरकार को इस मसले का समाधान सुलझाया हैं।
नंद लाल चौहान व अन्यों ने चिटठी में लिखा है कि इस 56 बीघा जमीन में से 26 बीघा जमीन ही तब जेपी कंपनी की ओर से नीचे की ओर गैर कानूनी व अवैज्ञानिक तरीके से फेंके मलबे में दबी है बाकी तीस बीघा जमीन अभी काश्त योग्य है। इस पर जमीन के मालिक काश्त भी कर रहे हैं।
चौहान ने अपनी चिटठी में तत्कालीन जेपी कंपनी की 26 अक्तूबर 2017 की एक चिटठी का हवाला देकर कहा है कि कंपनी ने इस समय इस जमीन को छोड़ने का आग्रह तत्कालीन सरकार से किया हुआ है। इसका हवाला इस जमीन के अधिग्रहण को लेकर आठ जून 2018 को हुए अवार्ड में भी दर्ज है।
अब नई उभरी परिस्थितियों के मददेनजर इन जमीन मालिकों ने कहा है कि सरकार इस जमीन को उन्हें लौटा दे व अपना मुआवजा वापस ले लें। इसके अलावा जेपी कंपनी के अवैज्ञानिक तरीके से फेंके मलबे के नीचे जो मकान उस दौरान दब गए थे उन मकानों के मुआवजे की एवज में इस रकम को समायोजित यानी एडजेस्ट किया जा सकता हैं।
उन्होंने लिखा कि इस बावत सरकार,जेपी कंपनी और जमीन मालिकों के बीच समझौता किया जा सकता है। इससे सरकार का वो पैसा भी बचेगा जो उसे दबे मकानों व जमीन की एवज में जमीन मालिकों को अदा करना पड़ेगा। याद रहे ये मामले अदालतों में लंबित है। चौहान ने कहा कि मुआवजे की ये रकम 50 से 100 करोड़ के बीच हो सकती है। अगर कोई समझौता होता है और जमीन जमीन मालिकों को लौटा दी जाती है तो ये रकम बच जाएगी। अब गेंद सुक्खू सरकार के पाले में हैं।
(529)