शिमला। 2001 एक से लेकर 2008 तक तत्कालीन भाजपा व कांग्रेस सरकारेां की ओर से विभिन्न स्कीमों के तहत नियुक्त किए विदया उपासक, पैट,पैरा और पीटीए अध्यापकों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।इन नियुक्तियों के मामले में वीरभद्र सरकार के बाद मौजूदा जयराम सरकार ने इन शिक्षकों का पक्ष लेकर इन्हें संजीवनी देने का काम किया । अगर धूमल मुख्ख्यमंत्री बनते तो संभवत: सरकार का रुख कुछ और हो सकता था।
सुप्रीम कोर्ट ने बीते रोज इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया । पिछली सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मासले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मोहन एम शांतनागौडर और न्यायाधीश आर सुभाष रेडडी की खंडपीठ ने इन नियुक्तियों को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया व प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को बरकारार रखा है। ये नियुक्तियां वीरभद्र सरकार के समय में हुई थी ।
अदालत ने कहा कि जिस तरह की परिस्थ्तियों के बीच इन नियुक्तियों को किया गया था उसके हिसाब से इन नियुक्तियों को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है। अदालत ने याचिकाकार्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की ओर से इन नियुक्तियों को पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियों की दलीलों को खारिज कर दिया व कहा कि वह ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाए है।
याद रहे पूर्व की धूमल सरकार में 2001 में धूमल सरकार ने हिमाचल ग्राम विदया उपासक योजना के तहत हजारों विदया उपासकों की प्राथमिक सकूलों में नियुक्तियां की थी। इन्हें 2003 में आई वीरभद्र सिंह की कांग्रेस सरकार ने हटाया नहीं।
2003 के सितंबर महीने में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने हिमाचल प्रदेश प्राथमिक सहायक अध्यापक,स्कूल काडर में प्रवकता के लिए हिमाचल प्रदेश पैरा टीचर,पैरा अध्यापक टीजीटी और सी एंड वी नीति 2003 के तहत हजारों अध्यापकों को अस्थाई तौर पर नियुक्त किया। तब विपक्ष में पार्टी ने इन नियुक्तियों में धांधलियां व भाई भतीजावाद होने का इल्जाम लगाया। 2008 में सता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इन नियुक्तियों की जांच भी कराई व कई नियुक्तियों को अवैध ठहराया गया।लेकिन उनकी सरकार ने इन नियुक्तियों को रदद नहीं किया।
पीटीए अध्यापक संघ ने तब धूमल सरकार के खिलाफ आंदोलन भी किया। लेकिन उस दौरान कोई भी इन नियुक्तियों के खिलाफ अदालत में नहीं गया।
2013 में वीरभद्र सिंह सरकार दोबारा से सता में आई तो पीटीए अध्यापकों के दिन फिर गए व उन्हें अनुबंध पर लेने का फैसला लिया गया । इसके बाद इनके मानदेय में भी बढ़ोतरी की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा गया है कि बेशक ये नीतियां 2001 और 2003 में बना दी गई लेकिन चंद्र मोहन नेगी,राजीव चौहान और राकेश कुमार ने 2012 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इन लोगों ने अपनी याचिका में कहा कि शिक्षा विभाग में उपलब्ध जीबीटी के पदों को भर्ती व पदोन्नति नियमों के हिसाब से भरा जाए।इसके अलावा सरकार को अादेश दिए जाए कि प्राथमिक सहायक अध्यापकों को नियमित न किया जाए क्योंकि वह गैर कानूनी तरीके से लगे है।
प्रदेश हाईकोर्ट ने 18 अक्तूबर 2012 को अपने फैसले में कहा कि इन नियुक्तियों को प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए किया गया है बेशक ये न्यूनतम योगयताएं भी पूरी नहीं करते ।सरकार ने दलील दी थी कि अध्यापक दुर्गम व जनजातीय इलाकों में नहीं जाना चाहते है इसलिए इन अध्यापकों की नियुक्तियां की जा रही है। अदालत ने कहा कि सरकार अदालत में रिकार्ड में ऐसा कुछ भी सामने नहीं ला पाई जो साबित कर पाए कि जिनके पास जेबीटी डिग्रियां हैंउन्होंने जनजातीय इलाकों में डयूटियां देने से देने से सरकार ने इंकार किया हो। अदालत की एकल पीठ ने सरकार को आदेश दिए कि वह चरणबद्ध तरीके से भर्ती व पदोन्नति नियमोंके तहत जेबीटी शिक्षकों की भर्ती करे। अदालत ने इन्हें नियमित न करने के भी आदेश दिए थे।
इस फैसले आहत शिक्षकों ने प्रदेश हाईकोर्ट में खंडपीठ में अपील कर दी। इनमें अलग-अलग याचिकाकर्ताओं ने धूमल सरकार में लगाए गए विदया उपासकों और वीरभद्र सरकार में लगाए पैट, पैरा व टीटीए शिक्षकों की जिन नीतियों के तहत भर्ती हुई थी उन नीतियों को चुनौती दे दी।
खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब ये नीतियां बनी थी तक याचिकाकर्ताओं के पास तो शिक्षक बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता तक नहीं थी। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इस दावे को खारिज करने के लिए कि जब ये नियुक्तियां की गई थी तो सरकार के पास योग्यता रखने वाले शिक्षक नहीं थे। ऐसे में इन नियुक्तियों को अवैध नहींठहराया जा सकताहै। ये नियुक्तियां विभिन्न योजनाओं के तहत की गई है।
है।खंडपीठ ने कहा कि सरकार के पास इन नियुक्तियों को नियमित करने का रास्ता खुला है।खंडपीठ ने कहा कि अभी भी इन श्रेणियों में हजारों की संख्या में पद खाली है।खंडपीठ ने ये भी कहा कि याचिकर्ताओं ने जिनकी नियुक्तियां हुई उन्हें पार्टी तक नहीं बनाया वरिज्वाइंडर तक नहीं दिया।
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।गई।सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चंद्र मोहन व राकेश जेबीटी शिक्षक लग गया व उन्होंन अपनी याचिका को वापए ले लिया। तीसरा याचिकाकर्ता राजीवचौहान भी शिक्षक लगने के लिए पात्र है व पद भी खाली है।
नियुक्त अध्यापकों की ओर से अदालत में कहा गया कि इन्हें केवल दो हजार रुपए पर रखा गया था। जुलाई2013 में इनके मानदेय को 8900 कर दिया गया। 3294 शिक्षकों के पास आज जरूरी शैक्षणिक योग्यताएं है।इसी तरह पैरा शिक्षक भी लगे थे।थे।13 जुलाई 2013 को जिन शिक्षकों को आठ साल का कार्याकाल पूरा हो गया है उन्हें अनुबंध पर लेने के लिए मंत्रिमंडल ने फैसला ले ले लिया है।6799 शिक्षकों में से 5017 को अनुबंध पर लिया जा चुका है और 1782 प्रवक्ताओं का मामला सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश की वजह से लटका पड़ा है।इन सबके पास जरूरी योग्यताएं है व ये नियुक्तियां 2008 तक ही हुई उसके बाद नियमित नियुक्तियां हुई है।
इन शिक्षकों की ओर से अदालत में कहा कि इन्हें सेवाएंदेतेहुए 15-15 साल हो गए है।जब ये नीतियां बनी थी तो उस समय किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया।ये नियुक्तियां 2001व2003 में की गई व इन्हें चुनौती 2012व13 में दी जा रही है।
आखिर में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मोहन एम शांतनागौडर और न्यायाधीश आर सुभाष रेडडी की खंडपीठ ने इन नियुक्तियों को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया व प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को बरकारार रखा है।
जयराम, राठौर और मुकेश ने किया स्वागत
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने पीटीए, पैट और पैरा अध्यापकों के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान प्रदेश सरकार ने इन अध्यापकों का हमेशा से ध्यान रखा है और पिछले वर्ष से उन्हें नियमित अध्यापकों की तर्ज पर वेतनमान दिया गया, लेकिन इनका मामला सर्वोच्च न्यायालय के पास लंबित होने के कारण इन्हें नियमित नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार अब इस निर्णय के आने के बाद इन अध्यापकों के मामले पर आगामी कार्यवाही करेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से प्रदेश के 12,472 अध्यापक लाभान्वित होंगे, जिनमें विभिन्न श्रेणियों के 2172 पैरा अध्यापक, 6799 पीटीए शिक्षक और 3501 पैट अध्यापक शामिल हैं।
जय राम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश सरकार अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और वित्तीय बाधाओं के बावजूद उन्हें समय-समय पर करोड़ों रुपये के वित्तीय लाभ प्रदान किए गए हैं।
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
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