शिमला/धर्मशाला। सोशल मीडिया पर अलग तरह की पत्रकारिता के बैंडबाजे की धमक के बीच आज देश भर में प्रेस दिवस के मौके पर पत्रकारों के सामने खड़े संकट पर मंथन हुआ। इस बार का विषय ‘संघर्ष क्षेत्र से रिपोर्टिंग, मीडिया के लिए चुनौती’था जो दुनिया भर फैैले आतंंकवाद व विभिन्न मुल्कों की सेनाओं की ओर से छेड़े जा रहे युद्धों केे बीच रिपोर्टिंग करनेे की चुनौतियों से जुड़ा था।
देश भर में की तरह हिमाचल में प्रेस दिवस पर राज्य स्तरीय समारोह धर्मशाला में हुआ। इस मौके पर पत्रकार से नेता बने मंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने पत्रकारों को कलम की धार की याद दिलाई तो हिमाचल में विकासात्मक रिपोर्टिंग की दयनीय स्थिति से पत्रकारों को रूबरू कराया।
उन्होंने नसीहत दी कि पत्रकारों को विकासात्मक रिपोर्टिंग पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि सरकार द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों को समाचार पत्रों में उचित स्थान प्राप्त हो सके और लोगों को सरकार द्वारा उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके। पत्रकारों को हिमाचल के सरोकारों से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता से उठाते हुए प्रदेश जनहित को प्रमुखता देनी चाहिए। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि प्रदेश के इतिहास, मंदिरों एवं शहीदों को कलमबद्ध किया जाना चाहिए।उन्हााेंेंनेे पत्रकारााेेंं के कल्याण्ा के लिए सरकाार की अाेेर सेे चलाई गई याेेजनाआेेंं काेे भ्ाी गिनाया।
अग्निहोत्री ने आगाह किया कि पत्रकार ने अच्छा पाठक बनने के स्थान पर अपने आपको केवल लिखने तक सीमित कर लिया है। उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की कि विज्ञापन से वेतन का संबंध स्वतंत्र पत्रकारिता में बाधक है।
अग्निहोत्री ने कहा कि एक पत्रकार को केवल संघर्षरत् क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि हर समय तथा हर विषय की रिपोर्टिंग में संवेदनशीलताए धैर्य एवं उत्तरदायी होने का प्रमाण पेश करना चाहिए।
इस सम्मेलन में दिव्य हिमाचल के प्रधान संपादक अनिल सोनीए आपका फैसला के संपादक अशोक ठाकुर तथा हिमाचल दस्तक के संपादक हेमंत कुमार ने बतौर वक्ता अपने अनुभव साझा किए। सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के निदेशक आरएस नेगी ने मुख्यातिथि तथा अन्य प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए अपने विचार रखे।
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मुख्य वक्ता ने रूप में दिव्य हिमाचल प्रकाशन समूह के प्रधान संपादक अनिल सोनी ने कहा कि रिपोर्टिंग चाहे शांत क्षेत्रों से हो या बारूद की गंध के मध्य हमेशा चुनौतीपूर्ण रहती है। सरोकार एक जैसे ही रहते हैं और रिपोर्टिंग के अपने उत्प्रेरक है। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कम होती संवेदना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्र भावना एवं राष्ट्रवाद दोनों में अंतर है।
आपका फैसला के संपादक अशोक ठाकुर ने कहा कि संघर्षरत् क्षेत्रों में रिपोर्टिंग को जानलेवा साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि रिपोर्टिंग का इतिहास आरंभ से ही संघर्षों से भरा रहा है और समाज की बेहतरी के लिए सौद्देश्य रिपोर्टिंग पर बल दिया जाना चाहिए।
हिमाचल दस्तक के संपादक हेमंत कुमार ने कहा कि संघर्ष बहुअर्थी हो गया है और समय तथा स्थान के हिसाब से इसके मायने बदल जाते हैं। उन्होंने विभिन्न घटनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि संघर्ष की रिपोर्टिंग करते वक्त रिपोर्टर का काम आग में घी डालने का नहीं बल्कि उसे शांत करने का होना चाहिए। ज्ञात एवं अज्ञात शत्रुओं से चल रहे युद्ध एवं संघर्ष में सुरक्षा बलों की तरह पत्रकार भी पेचीदगी तथा असुरक्षा से घिरे रहते हैं।
सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के निदेशक आरएस नेगी ने कहा कि संघर्षरत् क्षेत्रों में पत्रकार अपनी जान जोखिम में डाल कर अपने कर्तव्य को अंजाम देता है। एक पत्रकार को सतही तौर पर नहीं बल्कि मामलों के गहन छानबीन के बाद ही रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
उधर, राजधानी शिमला में आकाशवाणी के निदेशक दविंदर सिंह जोहल ने प्रेस क्लब में आयोजित सम्मेलन में कहा कि पत्रकार को डर रखना चाहिए या नहीं। उन्होंने लघु कथा के जरिए निडर होकर पत्रकारिता करने पर जोर दिया।पंजाब में आतंकवाद के काले दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादी जब गाडि़यों को रोकते थे तो वो कैसे बच जाते थे इसका उनको पता नहीं है।
जोहल ने कहा कि पंजाब में ब्लू स्टार के दौरान व 90 के दशक तक लोगों के साथ क्या -क्या हुआ उसमें से बहुत कुछ उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।उन्होंने कहा कि आतंकवादियों ने बहुत से लोगों व पत्रकारों को उन नीतियों की सजा दी जिनको बनाने में उनका कोई हाथ नहीं था। लेकिन फिर भी पत्रकारों ने अपने काम को अंजाम दिया।
।वामपंथ विचारधारा की ओर रूझान वाले जोहल ने कहा कि रशिया में 1964-65 अगर प्रेस की आजाादी पर हमला नहीं होता तो बहुत सा कत्लेआम नहीं होता व रशिया के टुकड़े-टुकड़े भी नहीं होते।उन्होंने कहा कि वो अब भी सरकार की नीतियों को प्रसारित करने से पहले येजष्र जानना चाहते है कि ये इसका जनता तक पहुंचना किस तरह लाभदायक है।पत्रकारों को शहद नहीं सत्य को हासिल कर जनता तक पहुंचाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लिखना उसी को कहते है जो कहा न जाए। अपने संपादन के अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने उसे ही रोका जो दंगा करवा सकने लायक था।केवल वही एडिट करना पड़ा।उन्होंने कहा कि ऐसा कौन पत्रकार हैं जोगूंगा रहना चाहता है।
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार बलदेव शर्मा व गणेश दत ने भी अपने विचार साझा किए।पत्रकारों केअलावा इस मौके पर लोक जनसंपर्क विभाग संयुक्त निदेशक आरती गुप्ता व बाकी अधिकारी भी मौजूद रहे।
मौजूदा दौर में सोशल मीडिया की धमक व मीडिया घरानों पर उद्योगपतियों और राजनेताओं के कब्जे के बीच पत्रकारिता उनके हितों के आगे दंडवत होतीनजर आरही है। संघर्ष के क्षेत्रों में खतरा आतंकवादियोंं,नक्सलियों से तो हैं ही लेकिन सरकारों से भी खतरें कम नहीं है। बस्तर जैसे इलाकों से पुलिस सरकार की शह पर पत्रकारों को जबरन खदेड़ने में जुटी हुई हैं।तो कहीं अपने हितों पर खतरा देख पत्रकारों की हत्याएं हो रहीहै। जबकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जंग वाले इलाकों में पत्रकारों के सर तक कलम कर दिए गए।
उधर देश में सरकार पत्रकारों को पिच्छलग्गू बनाने पर आमदा है। ऐसे में नए संघर्ष क्षेत्र उभर आए हैं। इसीलिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारों पर कानून बनाने के लिए जोर डाला जा रहा है।
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