शिमला। हिमालयी राज्यों और देश के 50 से अधिक अलग–अलग सामाजिक पर्यावरण संगठनों ने मिल कर पीपल फॉर हिमालय अभियान का घोषणा पत्र जारी किया है पिछले साल 2023 की शुरुआत उत्तराखंड के जोशीमठ में भयानक भूमि धंसाव से हुयी और इसके बाद जुलाई अगस्त में हिमाचल में आपदाओं का सिलसिला चला, फिर अक्टूबर में पूर्वी हिमालय में तीस्ता नदी में बाढ़ त्रासदी हुई। 2024 में समय से बर्फ नहीं पड़ी और लगभग पूरा ही हिमालयी क्षेत्र सूखे की चपेट में रहा जिनके प्रभाव गर्मियों में नज़र आएंगे। बड़ी आपदाओं के वक्त मीडिया में हिमालय से खबरें छाई रहती हैं पर फिर ये गौण हो जाती हैं जबकि आपदाओं के प्रभाव और इनसे निपटने से जुड़े सवाल पहाड़ी समाज के सामने लगातार खड़े हैं।
इसी संकट के चलते पिछले हफ्ते 27-28 फरवरी को इन पहाड़ी राज्यों के कुछ संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिमालय डिसास्टर एंड पीपुल -इस विषय पर मिलकर दो दिवसीय चर्चा का जिसमें पीपल फॉर हिमालय अभियान की घोषणा की गई।
दो दिवसीय बैठक में शामिल क्लाईमेट वैज्ञानिकों ने भयावह घटनाओं जैसे हिमनद झीलों का फटना, बाढ़ और भूस्खलन के साथ साथ बढती गति से तापमान में वृद्धि, बारिश की प्रवृत्ति में बदलाव, बर्फबारी में गिरावट और ग्लेशियरों के लगातार पिघलने से धीरे-धीरे हिमालयी पारिस्थितकी और इस पर निर्भर समाज की आजीविकाएं और अस्तित्व पर खतरों के तथ्य सामने रखे।
हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर,अरुणाचल और असम के कई पर्यावरण और सामाजिक शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं के अनुसार पिछले दो दशकों में जो बढती आपदाओं का दौर चला है ये एक ऐसी जटिल चक्रीय प्रक्रिया बन गयी है जिसके लिए पहाड़ों पर आधारित विविध समाजों को मिल के संघर्ष करना होगा। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि कैसे हिमालय का 90फीसद हिस्सा 3 डिग्री ग्लोबल वार्मिंग (बढ़ते तापमान के कारण साल भर सूखे का सामना करता है
घोषणा पात्र के अनुसार,यह जलवायु आपदाओं प्राकृतिक नहीं हैं बल्कि प्रणालीगत व नीति जनित विफलताओं का नतीजा हैं। वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक संसाधनों के शोषण और दोहन के चलते आज हिमालय आपदा ग्रस्त क्षेत्र बन गया है इसलिए यह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था का संकट है। आज विकास के नाम पर पूंजीवादी लालच ने हिमालय में संसाधनों की लूट को और गति दी है।
बड़े बांध और फोरलेन राजमार्ग, रेलवे जैसी अंधाधुंध निर्माण परियोजनाओं,अनियंत्रित शहरीकरण और वाणिज्यिक अनियोजित पर्यटन के कारण भूमि-उपयोग में अभूतपूर्व परिवर्तन से हिमालय की नदियों, जंगलों, घास के मैदानों और भूगर्भीय स्थिति बर्बाद हुई है जिसने आपदाओं को आमंत्रित किया।
सामाज में ऐतिहासिक रूप से शोषित समुदाय सीमान्त किसान, भूमिहीन, दलित-आदिवासी, वन निवासी, महिलाएं, प्रवासी मज़दूर, घुमंतू पशुपालक आदि जो संसाधनों से वंचित हैं जो इन आपदाओं के लिए जिम्मेदार भी नहीं व आज इन आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। जिन्होंने पहाड़ के प्राकृतिक संसाधनों को अपनी मलकीयत मान कर खरीद फरोख्त का सामान बना दिया है ,चाहे वो विश्व, देश और राज्य चलाने वाली सरकारें हो या वर्ल्ड बैंक जैसी वैश्विक संस्थाएं हों, या फिर कोर्पोरेट हो या खुद हमारे अपने स्थानीय नेता और ठेकेदार हों , यह पूरी व्यवस्था इन आपदाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं। 1990 के बाद आर्थिक सुधार की नीतियों ने पहाड़ में रहने वाले समुदायों के पारंपरिक आजीविकाएं, जीवन शैली, पारंपरिक ज्ञान और जोखिम से बचने और इनसे उभरने की क्षमता और मजबूती को भी खत्म किया है।
हिमाचल में दो दिवसीय संवाद के दौरान हिमालयी राज्यों का साझा अनुभव यह था कि आपदाओं के बाद केंद्र से सहायता अपर्याप्त रही या फिर राहत तक ही सीमित रह गयी जबकि आपदा प्रभावितों के लिए पुनर्वास के लिए समर्थन नहीं दिया गया और आपदा से बचाव के लिए नीतिगत बदलाव की तरफ कोई ध्यान नहीं है। राज्यों के बार बार मांगने पर भी न हिमाचल और न सिक्किम में राष्ट्रीय आपदा घोषित की गयी।
भूमि सुधार और आवंटन,आवास नियमितीकरण, वन अधिकार कानून, आपदा और परियोजना प्रभावितों के पुनर्वास तथा श्रमिकों के अधिकार जैसे प्रगतिशील कानूनों जिनको मज़बूत करना चाहिए उनको सरकारों ने या तो लागू नहीं किया या फिर खत्म कर दिया है। आने वाले दिनों में पीपुल फॉर हिमालय अभियान की तरफ़ से इन मुद्दों पर एक विस्तृत डिमांड चार्टर मांग पत्र जारी किया जाएगा।
पालमपुर में हुए मंथन के दौरान इस अभियान में देश के इन संगठनों ने किए दस्तख्त-:
- Affected Citizens of Teesta, Sikkim
- AIPWA, Uttarakhand
- Appiko-Chipko Movement, Karnataka
- Bhumi Heen Bhumi Adhikar Manch, Himachal
- Chamba Van Adhikar Manch, Himachal
- Climate Front India
- Climate Front Jammu
- Council for Civic Democratic Engagement, Sikkim
- Dibang Resistance, Arunachal Pradesh
- Disom Foundation, Nagaland
- Ecotourism and Conservation Society of Sikkim
- Gene Campaign, Uttarakhand
- Green Circle, Sikkim
- Himal Prakriti – A Trust for Nature, Uttarakhand
- Harela, Uttarakhand
- Himalaya Niti Abhiyan, Himachal Pradesh
- Him Pragati Foundation, Himachal Pradesh
- Himdhara Collective, Himachal Pradesh
- Indigenous Perspectives, Manipur
- Indian Community Activists Network, India
- Interweave, Sikkim
- Jagori Rural Charitable Trust, Himachal Pradesh
- Jammu Kashmir RTI Movement
- Jaladhara Abhiyan, Rajasthan
- JnK Chopan Association
- JnK Forest Rights Coalition
- Jol Jongol Jomi (জল জঙ্গল জমি), West Bengal
- Joshimath Bachao Sangarsh Samiti, Uttarakhand
- Kashmir Hikes and Treks
- Kalimpong Krishak Kalyan Sanghathan, West Bengal
- Katho Students Union, Manipur
- Khoj, Himachal Pradesh
- Koshish, Jammu and Kashmir
- Kosi Nav Nirman Manch, Birhar
- Kyang, Himachal Pradesh
- Local Futures, Ladakh
- MAUSAM, Delhi
- MKSS, Uttar Pradesh
- North East Dialogue Forum, Assam
- National Alliance for People’s Movements, India
- Parvatiya Mahila Adhikar Manch, Himachal Pradesh
- Parvatiya Tikau Kheti Abhiyan, Himachal Pradesh
- People for Himalayan Development, Himachal Pradesh
- People’s Campaign for Social and Economic Equity in the Himalaya, Himachal Pradesh
- Save Lahaul Spiti, Himachal Pradesh
- Sambhaavnaa Institute of Public Policy and Politics
- Save The Hills, West Bengal
- Simla Collective, Himachal Pradesh
- Sirmaur Van Adhikar Manch, Himachal Pradesh
- Spiti Civil Society, Himachal Pradesh
- South Asia Network on Dams, Rivers and People
- South Asian Solidarity Collective, Delhi
- Tandi Sangarsh Samiti, Himachal Pradesh
- The Rainbow Comrades, Himachal Pradesh
- Van Gujjar Tribal Yuva Sangathan, Uttarakhand
- Un Paso Mas (UPM), Delhi
- Wullar Bachao Front, Jammu & Kashmir
- Youth For Himalaya
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