शिमला। हाईकोर्ट के आदेशों पर अर्की के बागा में जेपी के सीमेंट प्लांट से मची तबाही का जायजा लेने के लिए गठित की गई वीपी मोहन कमेटी ने प्रदेश में सीमेंट व क्लींकर प्लांटस लगाने पर बैन लगाने की सिफारिश कर दी है। दो वॉल्यूम में बनी इस रिपोर्ट में कमेटी ने प्वाइंट आउट किया है कि एसीसी बरमाणा,अंबुजा सीमेंट प्लांट दाड़लाघाट और बागा में जेपी का प्लांट ,ये तीनों प्लांट साथ -साथ है और तीनों सतलुज बेसिन में ड्रेन करते है। इस तरह सलापड़ से दाड़ला की सतलुज नदी के रिपेरियन एरिया मे 10 किमी की दूरी पर इतने सीमेंट प्लांटस लग चुके है। इसके अलावा दर्जनों हाइडल प्रोजेक्टस सजलुज के पानी पर निर्भर है।
एसीसी बरमाणा का सलापड़ सीमेंट प्लाट सतलुज नदी से एक किलोमीटर से भी कम की दूरी पर है।बागा सीमेंट प्लांट के त्रेडा नाले की ओर से साढे नौ किमी तो भलग नाले की ओर से डेढ किमी दूर है।अंबुजा सीमेंट प्लांट कशलोग अली खडड होता हुआ सीधे गोबिंद सागर में ड्रेन करता है।इसी तरह प्रस्तावित लफार्ज प्लांट अलसिंडी नाला भलग नाले से ऊ पर की ओर साढ़े सात किमी की दूरी पर है। ये प्लांट साइट सतलुज नदी दाएं किनारे को छुती है और कौल डेम जो चाबा और ततापानी तक फैलेगा, से सौ मीटर की दूरी पर है।
वीपी मोहन कमेटी ने वॉल्यूम एक के पेज नबंर 37 पर साफ लिखा है कि रेड केटेगरी इंडस्ट्री सीमेंट और क्लींकर के प्लांटस पर ब्लैंकेट बैन लगाया जाना चाहिए।ये बैन नए सीमेंट प्लांटस के अलावा प्रस्तावित प्लांटस पर भी लागू हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वो ये उल्लेखखास तौर पर करना चाहते है कि सीमेंट प्लांट लगाते हुए प्रमोटर ये कतई भनक नहीं लगने देते कि वो इसका विस्तार करेंगे ओर दूसरा प्लांट लगाएंगे।ये सब खेल ओपन कंपीटीटिव बिड से बचने और लीगल प्रोसीजर से बचने के लिए किया जाता है। कशलोग माइनिंग को लेकर कमेटी ने कहा शिमला-बिलासपुर रोड से देखने पर पहाडि़यों पर ये मानिंग जख्मों की तरह लगती है।
कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि मजाठल वाइल्ड सेंक्चुरी पहले ही खतरे के कगार पर है। ये एक तरफ से अंबुजा सीमेंट प्लांट की कशलोग माइनिंग से घिरी है जो यहां दो किमी दूर है और एरियल डिस्टेंस पांच सौ मीटर है।इसके अलावा बागा में जेपी कंपनी ने तबाही मचा रखी है और वो और प्लांटस लगाने की जुगत में है।उसके प्लांट पाइपलाइन में है।इसके अलावा प्रस्तावित लफार्ज सीमेंट प्लांट भी इस सेंक्चुरी के दस किलोमीटर के दायरे में है।हाईकोर्ट में सबमिट इस रिपोर्ट को अदालत ने प्रदेश सरकार के अधिकारियों के अलावा सभी संबधित अधिकारियों को भेजा है ताकि वो भविष्य में प प्रोजेक्ट बनाते समय इसे ध्यान में रखे।
सिंगल विंडो पर सवाल
वीपी मोहन कमेटी ने सिंगल विंडो सिस्टम के जरिए अप्रुल देने के तरीके पर भी सवाल उठाए है। कमेटी ने कहा है कि रेड केटेगरी प्रोजेक्टस ,सीमेंट,माइनिंगऔर बड़े हाइडल प्रोजेक्टस की अर्जी तब तक मंजूर नहीं की जानी चाहिए जब उस अर्जी के साथ आइएसओ प्रमाणित कंपनी से टेक्नो इकनोमिक फिजिबिलिटी स्टडी साथ न हो ।
इसके अलावा बहु विभागीय अधिकारियों की टीम जिसमें राजस्व,वन,माइनिंग,और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी साइट का पर्यावरण के संदर्भ में निरीक्षण करे और दस किमी के दायरे में कोई और इसी तरह का प्रोजेक्ट तो नहीं है उसका भी ख्याल रखे।
मार्च 2012 में हाईकोर्ट में दाखिल इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब प्लांट स्थापित करने के लिए सिंगल विंडो से अप्रूवल ली जाती है तो इस प्रस्ताव में दूसरा प्लांटस लगाने या विस्तार करने का कोई जिक्र नहीं होता।ये सब कानूनी प्रक्रिया से बचने का तरीका है।
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