शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने फेसबुक पर प्रदेश हाईकोर्ट के जज व जिला जज व न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी के खिलाफ फेसबुक पर अवमाननापूर्ण व अभद्र टिप्णियां करने के मामले में अदालत का अपमान करने, न्यायिक काम में बाधा डालने व अदालत की गरिमा गिराने का दोषी ठहराते हुए एक वकील को एक महीने की जेल की सजा और दस हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।अदालत ने उक्त वकील को अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत दोषी ठहराते हुए यह सजा दी है। इसके अलावा उक्त वकील को अवमानना के दोष से मुक्त होने के लिए इन टिप्पणियों को हटाने के निर्देश भी दिए है।
यह सजा प्रदेश हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति चंद्र भूषण बारोवालिया ने सुनाई है। अदालत ने रजिस्टरी को आदेश दिए कि वह दोषी वकील के फेसबुक खाते को हटाने के लिए संबधित एजेंसियों से मामला उठाएं।
जिला अदालत में पैरवी करने वाले वकील विकास सनोरिया ने एक मामले में उसके मुवक्किल की गाड़ी को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट क्लास-1 की ओर से रिलीज न करने पर अपनी फेसबुक दीवार पर टिप्पणियांं लिख दी। इस पर अदालत ने अपने स्तर पर सनोरिया के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी ।
अदालत की ओर इस तरह सू मोटो कार्यवाही शुरू करने पर सनोरिया ने अपनी फेसबुक पर पोस्ट लिखा ‘‘कोर्ट आन इटस मोशन ( लूज मोशन)….सिंस डॉटर आफ सिटिग जस्टिस साहिब, तो देखते जनाब जी…हाहा’’
खंडपीठ ने कहा कि इस पोस्ट के बाद अदालत ने इस वकील के खिलाफ अवमानना की कार्यवाहीशुरू कर दी। इसके बाद 2 अगस्त 2018 को उक्त वकील ने इस तरह की अपमानजनक और घृणास्पद टिप्पणियां न करने वादा किया। इस वादे के वाद अदालत ने इस मामले की कार्यवाही 16 अगस्त तक टाल दी ताकि वकील के आचरण पर निगरानी की जा सके।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत की ओर से दिखाई गई सहानुभूति को गलत तरीके से लिया गया और उक्त वकील ने हाईकोर्टव इसके न्यायाधीशों के खिलाफ अनर्गल टिप्पणियां करनी शुरू कर दी है जिनमें से कई तो गाली गलौच की भाषा में भी। इस पर अदालत ने इस मामले की सुनवाई 9 अगस्त को रख दी लेकिन इसे दस अगस्त तक को स्थगित कर दिया गया । 10 अगस्त को उक्त वकील अदालत में पेश हुआ और अदालत ने उसे चार्जशीट थमा दी।
वकील ने लिखित में अपना पक्ष रखा व कहा कि फेसबुक पर यह टिप्पणियां गुस्से में की गई थी। क्योंकि ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उनके मुवक्किल की गाड़ी को रिलीज करने के लिए डाली अर्जी को सात दिन निपटाया गया था व इस वाहन को रिलीज करने में 29 दिन लग गए। वाहन को रिलीज करने में हुई देरी के कारण उन्हें अपनी फीस गंवानी पड़ी। यही नहीं वाहन को रिलीज करवाने के लिए दी जाने वाली जमानत का इंतजाम भी उन्हें ही करना पड़ा। इस दौरान वाहन के मालिक की ओर से उन्हें धमकिंया दी जाती रही और वह व उनका परिवार खतरे की जद में रहा। वकील ने कहा कि इन विपरीत परिस्थितियों में उनकी दिमागी संतुलन बिगड़ा गया । फेसबुक पर की गई ये टिप्पणियां इन्हीं विपरीत परिस्थितियोंं का नतीजा था। फेसबुक पर मेरी ओर से की गई इन टिप्पणियों की वजह से हाईकोर्ट के जज, जिला जज और निचली अदालत के न्यायिक अधिकारियों ने अपमान सहा होगा, इस बावत वह खेद व्यक्त करते हैं। वह माफी मांगते हैं और भविष्य में ऐसा नहीं होगा इस बावत भरोसा देते हैं।
सनोरिया ने अपने जवाब में यह भी लिखा की निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिए जाए कि वह मामलों को संवेदनशीलता से निपटाएं।
खंडपीठ ने कहा कि सनोरिया ने जानबूझ कर न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की मंशा से ये टिप्पणियां की।
खंडपीठ ने कहा कि आलोचना के नाम पर जजों को इस तरह कोसना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अगर इस तरह के मामलों में तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो जजों को कोसना आम हो जाएगा । ऐसे में न्यायपालिका के संस्थान का संरक्षण करना मुश्किल हो जाएगा। खंडपीठ ने कहा कि अगर निचली अदालत का फैसला गलत भी था तो अपील हो सकती थी। इस तरह अभद्रता नहीं की जा सकती। कम से कम वकीलों की ओर से ऐसी आशा नहीं की जा सकती। खंडपीठ ने कहा कि वकीलों से भद्र पुरूष की तरह शालीनता की उम्मीद की जाती है। न्याया के फव्बारे को इस तरह वकीलों व मुकदमेंबाजों की ओर से प्रदूषित करने नहीं दिया जा सकता।
अपने पक्ष में फैसला लेने के लिए इस तरह से जजों को नहीं डराया जा सकता । खंडपीठ ने कहा कि उक्त वकील ने जनता को यह बताने की कोशिश की कि न्याय का प्रशासन कमजोर व अक्षम हाथों में हैं और न्याय का फव्बारा दागी है। उक्त वकील ने अदालत को अपमानित करने का प्रयास किया है।
अदालत ने कहा कि जहां तक उक्त वकील की क्षमा याचना का मामला है,उक्त वकील को आज भी कोई पश्चाताप नहीं है,क्योंकि उसने कई टिप्पणियों को अभी तक नहीं हटाया हैं। ऐसे में इस मौके पर क्षमायाचना को मंजूर नहीं किया जा सकता।
(1)