शिमला। सरकार गिराने की भाजपा व कांग्रेस के एक ताकतवर खेमे की मुहिम के तहत बजट सत्र के दौरान विधानसभा की सुरक्षा में भारी चूक के लिए कौन जिम्मेदार है इस पर विधानसभा स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया से लेकर मुख्यमंत्री सुखविंदर तक सब मौन हैं।
सूत्रों के मुताबिक 27 व 28 फरवरी को सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को गिराने का पूरा इंतजाम हो गया था।
विधानसभा परिसर सुरक्षा के लिए जो पुलिस बल मांगा गया था वह 28 फरवरी को दोपहर बाद आइजी के पास पहुंचा ।जबकि 28 फरवरी को दोपहर दो बजे तक विधानसभा परिसर में बहुत कुछ घट चुका था। छह कांग्रेस विधायक हेलीकाप्टर में वापस पंचकूला जा चुके थे।वित विधेयक पर सरकार गिराने का खेल पूरे चरम पर था। विधानसभा परिसर में भी बहुत कुछ हो रहा था। परिसर के गेट व चौक पर सुरक्षा कायम करने के लिए महिला पुलिस भिड़ रही थी जबकि वह पुलिस जवानों की जरूरत थी। लेकिन जवान कम थे।
जानकारी के मुताबिक सुरक्षा के लिए पुलिस जवानों की मांग की गई थी। करीब सौ से डेढ सौ के करीब कम पुलिस जवानों को विधानसभा की सुरक्षा के लिए भेजा गया। मांगे जवान गए थे उनकी जगह पर महिला सुरक्षा कर्मियों को भेजा गया। अब सुरक्षा में चूक को लेकर जिस तरह की परतें खुल रही है वह हैरान करने वाली ही नहीं डराने वाली भी हैं।
बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के क्रास वोट करने वाले विधायकों के लिए सीआरपीएफ और हरियाणा पुलिस किसने मंगवाई। इस बावत न तो सरकार की ओर कुछ कहा जा रहा है और न ही स्पीकर पठानिया कुछ सार्वजनिक कर रहे हैं।
ये पूरा कांड हो जाने के बाद स्पीकर पठानिया ने विधानसभा सुरक्षा के लिए जो बैठक बुलाई में उसमें विधानसभा की सुरक्षा के लिए डीएसपी का पद सृजित करने की बात की गई। इसके अलावा सुरक्षा चाकचौंबद करने के लिए बोर्ड ऑफ आफिसर बनाया गया। डीजीपी कुंडू ने इस बोर्ड में चार अफसरों को शामिल भी कर दिया।
लेकिन 27 व 28 फरवरी को विधानसभा की सुरक्षा व गरिमा को किसने तार-तार किया उसका पर्दाफाश स्पीकर व मुख्यमंत्री दोनों ने ही नहीं किया। सुरक्षा में सेंध लगी ये तो स्पीकर पठानिया ने डीजीपी कुंडू समेत बाकी अफसरों की बैठक लेकर ही साफ कर दिया था। लेकिन जिम्मेदार किसे ठहराया इसका खुलासा नहीं हुआ हैं। अफसरों को इस तरह सुरक्षा से चूक करने की छूट देना प्रदेश के लोगों को मुश्किल में डालने जैसा हैं।
कायदे से अब तक पूरे प्रकरण की जांच होकर जिम्मेदारअफसरों को चिन्हित कर उनको उनके किए की सजा मिल जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।चाहे उसमें अधिकारी शामिल थे या विधायक या मंत्री या फिर अन्य कोई नेता व कर्मचारी। अब तक तो सुरक्षा आडिट हो जाना चाहिए था। कैमरों व बहुत कुछ कैद है। इसके अलावा दस्तावेजों में भी कई कुछ दर्ज हैं।
लेकिन अब तक न ही किसी को जिम्मेदार ठहरा कर उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की गई हैं और न ही किसी को चिन्हित किया गया। ये देशद्रोह तो नहीं लेकिन उससे कुछ कम भी नहीं हैं।इस बावत स्पीकर पठानिया से लेकर मुख्यमंत्री सुक्खू दोनों की जवाबदेही है और ये दोनों जवाबदेही से बच भी नहीं सकते।27 व 28 फरवरी को विधानभा परिसर में जो कुछ भी हुआ उसमें सामान्य लोग शरीक नहीं थे । वो लोग थे जिन पर संविधान की गरिमा किसी भी कीमत पर बचाए रखने की जिम्मेदारी थी।
विधानसभा की अस्मिताऔर सुरक्षा के ताने-बाने पर जिस तरह से हमला हुआ वह हिमाचल के इतिहास में संभवत: पहली बार हैं। 27 और 28 फरवरी को विधानसभा परिसर व सदन में जिस तरह के कांड हुए वह अपने आप में चौंकाने वाले है।
अगर ऐसा किसी अन्य राज्य में होता तो वहां पर अब तक इसके लिए जिम्मेदारअधिकारी बर्खास्त हो जाते और उनके खिलाफ एफआइआर तक हो जाती। जबकि विधानसभा की सुरक्षा से खेलने व संविधान के खिलाफ जाकर कृत्य करने के लिए संबधित विधायकों पर अब तक गाज गिर जाती।अधिकारियों व विधायकों पर संविधान व कानून की रक्षा करने की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है ।
विधानसभा सेशन के दौरान विधानसभा परिसर पूरी तरह से विधानसभा स्पीकर के अधीन आ जाता है। समूचा सुरक्षा तंत्र उनके अधीन आ जाता हैं। सरकार का अधिकारी अगर कोई कोताही करता है तो उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन से लेकर बाकी तमाम तरह के कार्रवाई करने के अधिकार स्पीकर व सरकार के पास हैं।
इसके अलावा मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग भी होता है तो ये उनकी जिम्मेदारी है कि विधानसभा की अस्मिता पर किसी भी तरह की आंच न आ पाए। बेशक सरकार गिरने का खतरा था लेकिन विधानसभा परिसर व सदन के भीतर की गरिमा पर चोट किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए थी।
लेकिन अभी तक न तो स्पीकर पठानिया की ओर से और न ही मुख्यमंत्री की ओर से विधानसभा की सुरक्षा में चूक के लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार है उनके नामों का पर्दाफाश आज दस बीत जाने के बाद भी नहीं किया गया हैं। ये अपने आप में संगीन हैं।
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