शिमला। प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के अध्यक्ष पद पर बीस दिनों के बाद भी ताजपोशी न होना भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेश से राज्यसभा सांसद जगत प्रकाश नडडा की पार्टी पर कमजोर पकड़ की ओर से ईशारा कर रही है। जुगत भिडाने में माहिर में जगत प्रकाश नडडा ने भाजपा में ऐसी छवि बना रखी है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बाद तीसरे सबसे ज्यादा ताकतवर नेता हे।
लेकिन जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी से इस्तीफा देकर अचानक भाजपा अध्यक्ष बने राजीव बिंदल को विवाद के बाद इस पद से हटाया गया है, उससे भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं में साफ संदेश गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमान अभी भी मोदी व शाह की जोड़ी के हाथों में ही है। नडडा के अपने हाथ में ज्यादा कुछ नहीं है। यह भी कहा जाने लगा है कि वह रबर स्टैंप से ज्यादा कुछ नहीं है।
अगर ऐसा नहीं होता तो वह अपने राज्य में पार्टी के अध्यक्ष पद जिसे चाहते उसे बिठा देते व जितने विवाद भी उठते उसे किसी भी कीमत पर हटने नहीं देते। लेकिन बिंदल को वह बचा नहीं पाए। पार्टी नेताओं का कहना है कि बिंदल को अमित शाह के निर्देशों पर इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया गया व उन्होंने नैतिकता की आड़ लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि जिस पीपीइ खरीद रिश्वत मामले की वजह से उन्हें हटना पड़ा है, उसमें उनका कहीं भी जिक्र नहीं है। कभी उनके करीबी रहे पृथ्वी सिंह की लेन-देन की रिकार्डिंग वायरल हुई तो उन पर दबाव बना दिया गया।
नडडा उन्हें बचा नहीं पाए।बिंदल को भाजपा अध्यक्ष बने हुए अभी छह महीने भी नहीं बने थे।
बिंदल के हटने के बाद आज बीस दिन से ज्यादा का समय हो चुका है। बिंदल ने 27 मई को अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था।लेकिन अभी न तो भाजपा का कोई कार्यकारी अध्यक्ष बना है और न ही नियमित अध्यक्ष ।कमान पूरी तरह संगठन मंत्री पवन राणा के हाथों में चली गई और पवन राणा के खिलाफ भाजपा के ही कुछ विधयकों ने विद्रोह का झंडा उठाया हुआ है। नडडा चाहते तो बिंदल के हटने के तुरंत बाद उनकी जगह किसी और को पार्टी का अध्यक्ष बना देते या फिर बिंदल का इस्तीफा ही मंजूर नहीं करते। जब तक नया अध्यक्ष नहीं बन जाता तब तक बिंदल को अध्यक्ष का कार्यभार संभालने देते।लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इसे साफ हो रहा है कि नडडा के हाथों में बहुत कुछ नहीं है,असली कमान कहीं और है।
इससे पहले भी राज्यसभा के लिए इंदु गोस्वामी का नाम बाहर आया तो सभी चौंक गए।वहां भी नडडा की नहीं चली व इंदु गोस्वामी राज्यसभा के लिए चुन ली गई। इस मामले में नडडा ही नहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लेकर तब भाजपा के अध्यक्ष राजीब बिंदल तक देखते ही रहे गए। अब भाजपा अध्यक्ष को लेकर भी कुछ उसी तरह का फैसला हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। अब सवाल यह है कि नडडा की राष्ट्रीय भाजपा पर अभी क्या कुछ पकड़ बनी है इसे लेकर संदेह जताए जाने लगा है, अन्यथा नडडा के लिए अपने ही राज्य की भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त करना बाएं हाथ का काम है। लेकिन कहा जा रहा है कि मोदी व शाह की जोड़ी ने संगठन पर से अभी अपनी पकड़ ढीली नहीं की है ।
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