शिमला।बंदरों के आंतक पर विधानसभा में उठे सवाल पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि अगर बंदर खेतों में आ जाए तो उन्हें मारने पर कोई पाबंदी नहीं है।प्रदेश हाईकोर्ट ने बंदरों को मारने के लिए डीएफओ की ओर से दी जाने वाली इजाजत पर स्टे लगा रखा है। केंद्रीय एक्ट पर कोई पाबंदी नहीं है।वीरभद्र सिंह प्रश्नकाल के दौरान हिलोपा विधायक महेश्वर सिंह के सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि बंदरों को हनुमान से जोड़ा जाता है इसलिए लोग धार्मिक कारणों से इन्हें नहीं मार रहे है।
नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने पूरक सवाल पूछा कि हाईकोर्ट ने स्टे लगा रखा है,उसे हटवाने के लिए सरकार क्या कर रही है।बंदरों के निर्यात का मामला केंद्र से कब -कब उठाया गया और क्या कलिंग को लेकर सरकार क्या कर रही है। वीरभ्ज्ञद्र ने कहा कि बंदरों की एनाटामी इंसानों से मिल ती है। लेकिन अमेरिका समेत कई मुलकों ने इनके क्लीनिकल टेस्ट पर पाबंदी लगा दी है।लेकिन कुछ मुलकों को ये निर्यात हो सकते है। इस बावत मामले को केंद्र से लगातार उठाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में बंदरों की ओर से किए जाने वाले नुकसान का सारा ब्योरा दिया गया है और हाईकोर्ट से इन्हें मारने पर लगाए स्टे को हटाने की अर्जी दी गई है। इसके अलावा इन्हें निर्यात करने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांग रहे है।उन्होंने कहा कि कलिंग प्रभावी तरीका नहीं है।
इस बीच भाजपा विधायक सुरेश भारदवाज ने कहा कि इंसानों ने बंदरों के आश्रयस्थलों पर कब्जा किया है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि बंदरों के खाने पीने की सामाग्री खत्म हो गई है। बंदर में भी जीवन है और इनके जीवन को बचाना भी सरकार की जिम्मेदारी है।ये धरती केवल इंसानों के लिए ही नहीं है ये सब पशु पक्षियों के लिए है ।वीरभद्र ने कहा कि नसबंदी के बाद बंदरों को वहीं छोड़ा जाना चाहिए जहां से उन्हें उठाया जाता है।इन्हें छोड़ा जाने का काम भी ठेकेदारों को दिया जाता है। लेकिन ठेकेदार इन्हें आधे रास्ते में ही छोड देते हे। उन्होंने सदन में कहा कि ऐसे ठेकेदारों के काम में कोताही पाई गई तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इससे पहले हिलोपा विधायक महेश्वर सिंह के सवाल के जवाब में वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने कहा कि बंदरों के लिए जंगलों में खादय सामाग्री मिले उसके लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा हे।
महेश्वर सिंह ने ये भी पूछा था कि ये बंदर महिलाओं को ही क्यों काटते है क्या विभाग इस बारे में कोई स्टडी करेगा।भरमौरी ने कहा कि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है।उन्होंने कहा कि एक बंदर को पकड़ने के पांच सौ रुपए दिए जा रहे है। लेकिन अब जिन बंदरों की नसबंदी हो चुकी है अगर उन्हें भी पकड़ लिया जाता है तो उसकी एवज में तीन सौ रुपए दिए जाएंगे। पहले ऐसे बंदरों को पकड़ने का कुछ नहीं मिलता था। भरमौरी ने कहा कि इसमें पकड़ने वाले कि कोई गलती नहीं है।उसे कैसे पता होगा कि जिस बंदर को वो पकड़ रहा है उसकी नसबंदी हुई है या नहीं। महेश्वर सिंह ने सवाल उठाया था कि जिन लोगों को बंदर पकड़ने के लिए पैसे दिए गए है और जितने बंदर पकड़े गए है, इस राशि में एक करोउ़ 46 लाख् का अंतर है। भरमौरी इसका जवाब दे रहे थे।
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