शिमला।नसों के फूलने यानी वेरीकॉज वेनस बीमारी के मामले में बाबा रामदेव जैसों के झांसे में न आकर मरीजों को डाक्टरों से इलाज कराना चाहिए। इसके अलावा फूली नसों को गर्म तार व चिमटे से दागने जैसे टोटके इलाज तो नहीं लेकिन अपराध जरूर हैं। इससे ये बीमारियां कतई ठीक नहीं होती लेकिन मरीज को संक्रमण का शिकार जरूर कर देती हैं।
वेस्कुलर सोसायटी फार लिंब सैलवैज के अध्यक्ष व फोर्टिस अस्पताल मोहाली में कार्यरत वेस्कूलर सर्जन डा. रावुल जिंदल ने यह दावा राजधानी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में किया। उन्होंने कहा कि उनकी सोसायटी ने नसों के फूलने की बीमारी को अगले बीस सालों तक काबू करने के बाद खत्म करने का अभियान चलाया हैं। अभी तक 14 फीसद से ज्यादा मरीज इस बीमारी से ग्रस्त है और लोग इसे नजरअंदाज करते जा रहे है। जब ये अल्सर बन फट जाती है तो वह डाक्टरों के पास जाते हैं।
जिंदल ने कहा कि इन नसों के फटने पर एक से दो लीटर तक खून एक मिनट के भीतर बह सकता है जो जानलेवा हो सकता हैं। अगर रप्चर हो जाए यानी नस फट जाए तो खून रोकने के लिए लेट जाए व टांग को ऊपर की ओर करके उस पर पटटी बांध दें। घंटें भर में खून बहना रूक जाएगा।
उन्होंने दावा किया कि जो लोग इस बीमारी का तेल, क्रीम व सूई चुभों कर ईलाज करने का दावा करते है वह पूरी तरह से फ्राड हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक और होम्योपेथिक चिकित्सा पद्धति में भी इसके इलाज को लेकर को अध्यययान मौजूद नहीं हैं। बाबा रामदेव जैसे लोगों के इस बावत दावे पूरी तरह से झूठे हैं। उनको लेकर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट पहले ही बहुत कुछ कह चुका हैं।
उन्होंने दावा किया कि इस बीमारी से जूझ रहे दर्जनों आयुर्वेदिक और होम्योपेथिक डाक्टरों के वह खुद आपरेशन कर चुके हैं।
जिंदल ने कहा कि वह आने वाले दिनों में तेल, क्रीम व अन्य तरीकों से इसके इलाज को लेकर इंटरनेट पर चल रहे विज्ञापनों को हटाने के लिए जनहित याचिका दायर करने जा रहे है ताकि लोग गुमराह होने से बचें।
उन्होंने कहा कि जांघों व पिंडलियो में नीले,लाल व बेंगनी रंग की नसों का उभरना,भारीपन व अकडऩ जैसे लक्ष्ण दिखें तो इसे नजरअंदाज न करें यह नसों के फूलने की बीमारी है।
उन्होंने कहा कि आइजीएमसी व प्रदेश के बाकी कई अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज लेजर तकनीक से उपलब्ध हैं व वहां ज्यादा मंहगा भी नहीं हैं।
जिंदल ने कहा कि इस बीमारी का प्रमुख कारण लंबे समय तक खड़े रहना माना जाता है। पहले बुजुर्गों व महिलाओं में ऐसी बीमारी के ज्यादा लक्ष्ण देखने को मिलते थे परंतु अब खराब जीवनशैली के कारण युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं में इस बीमारी के फैलने का कारण शारीरिक व्यायाम न करना व एक ही जगह पर घंटों बैठे रहना है।
यह अनुवांशिक बीमारी है और अगर किसी के माता पिता को नसों के फूलने यानी वेरीकॉज वेनसकी बीमारी है तो उनके बच्चों में इसके होने के तीस फीसद तक चांस हैं।
उन्होंने बताया कि ऐसी बीमारी का इलाज मात्र सर्जरी है । हाल ही में शिमला की एक 37 वर्षीय महिला को बाइलैटरल वैरिकाज़ नसों (सूजी हुई और टेढ़ी-मेढ़ी नसों) के साथ-साथ अत्यधिक भारीपन, सूजन और पैर दर्द के कारण पैरों में तेज दर्द का अनुभव हो रहा था और चलते समय उसे असुविधा का सामना करना पड़ा। उसकी टखनों के आसपास की त्वचा भी काली पड़ गई थी। मरीज के पैर का अल्ट्रासाउंड यानी डॉपलर स्कैन किया गया जिसमें अक्षम वाल्व दिखाई दिए। इसके बाद उन्होंने लेज़र एब्लेशन और वैरिकोसिटीज़ की फोम स्क्लेरोथेरेपी के साथ रोगग्रस्त नस का सफल लेज़र उपचार किया।
वैरिकाज़ नसों के उपचार में नवीनतम तकनीक को लेकर डॉ जिंदल ने कहा कि आधुनिक एडवांस्ड ट्रीटमेंट विकल्प कम दर्दनाक हैं और जल्दी ठीक होने को सुनिश्चित करते हैं। प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट लगते हैं और रोगी प्रक्रिया के एक घंटे के भीतर घर जा सकता है।
डा.रावुल जिंदल व उनकी टीम आगामी 6 अप्रैल को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक हरितारा अस्पताल एंड पेडिट्रिक सेंटर संजौली शिमला में एक चिकित्सा शिविर आयोजित करेगी।जिसमें डाक्टरेां को इस बीमारी के इलाज की तकनीक से रूबरू कराया जाएगा।
जिंदल ने बेहद गरीब मरीजों को पेशकश की कि अगर कोई बेहद ही गरीब है तो वह उनके चैंबर में आ जाए वह उसका फ्री में इलाज कर देंगे। उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पताल में इस बीमारी का खर्च बीस हजार के करीब आता हैं।
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