शिमला। पूर्व की जय राम सरकार के कायर्काल में मंडी के युद्ध चंद बैंस को कांगड़ा सहकारी बैंक की ओर से कर्ज की बड़ी रकम एक मुश्त वितरित कर दी गई थी। यही नहीं युद्ध चंद बैंस ने केसीसी बैंक से दो कर्ज लिए थे इनमें से 20 करोड़ के करीब था व दूसरा 17 करोड़ के करीब था।
केसीसी बैंक से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इतनी बड़ी रकम में से बैंस ने अधिकांश रकम बैंक को लौटाई ही नहीं जबकि ये कर्ज 2019 में मंजूर हो गए थे। ये लौटाई क्यों नहीं इस बावत तमाम तरह के क्यास लगाए जा रहे है।
बैंक के भीतरी सूत्रों के मुताबिक बैंक के नियमों के मुताबिक किसी को एकमुश्त कर्ज नहीं दिया जा सकता । इसे तीन-चार चरणों में दिया जाता है। जिस प्रोजेक्ट की एवज में कर्ज लिया जाता है उसका एक भाग पूरा होने के बाद दूसरी किश्त दी जाती है फिर और काम हो जाने के बाद अगली किश्त दी जाती है। अगली किश्त लेने से पहले पिछली किश्त के खर्च का ब्योरा कर्जदार को बैंक को देना होता है। बाकायदा बैंक के अधिकारी मौका का मुआयना करते है।
बैंक से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। जब बैंक के बोर्ड आफ डायरेक्टर ने बैंस के कर्ज को मंजूर किया था तो अधिकारियों ने कर्ज की रकम एकमुश्त दे दी। जो दी ही नहीं जा सकती थी।
अब बड़ा सवाल ये ही है कि ये किश्त एकमुश्त किसके ईशारे पर दी गई।सूत्रों के मुताबिक इस बावत बैंक ने जांच भी कि और कुछ अधिकारियों पर गाज भी गिराई। इनमें से कुछ लोग सचिव सहकारिता के पास अपील में चले गए। पता चला है कि सचिव ने जांच में तत्कालीन एमडी को साफ निकाल दिया है। बाकियों ने भी अपने खिलाफ जांच के बाद हुई कार्रवाई पर स्टे लिया हुआ है।
याद रहे बैंस को ये कर्ज तब दिया गया था जब कांगड़ा से मौजूदा भाजपा सांसद व आरएसएस से जुड़े रहे राजीव भारदवाज केसीसी बैंक के अध्यक्ष हुआ करते थे।ये बैंक एनपीए की चपेट में बुरी तरह से फंसा हुआ है।
बैंक के सूत्रों के मुताबिक बैंस ने मंडी व जिला कुल्लू के मनाली में दो जगहों में अपने प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए ये36- 37 करोड़ के करीब के दो कर्ज लिए थे। लेकिन जमीनी स्तर पर कहीं भी बहुत ज्यादा कुछ नहीं हुआ है। इस बावत बैंक ने बैंक के अपने अधिनियम के सेक्शन 69 के तहत जांच भी की थी। उसमें बहुत कुछ सामने आया हुआ है। जाहिर सी बात है कि वो जांच रपट विजीलेंस को भी सौंपी ही गई होगी। इसमें जांच रपट में कहा गया है जिन अधिकारियों ने इसे वितरति किया उनसे इस कर्ज को वसूला जाए। लेकिन सबने कहीं न कहीं से स्टे लिया हुआ है। वसूली कहीं से नहीं हुई है।
यही नहीं जब बैंस ने कर्ज नहीं लौटाया तो बैंक की ओर से बैंस ने जो जमीन कर्ज के बदले गिरवी रखी थी उस पर कब्जा भी किया गया था लेकिन बैंस ने डीआरटी यानी डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल(कर्ज वसूली पंचाट) चंडीगढ़ का दरवाजा खटखटा दिया । जहां से इस जमीन को लेकर बैंक की कार्यवाही पर स्टे मिला हुआ है।
बैंक से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बैंक ने आरबीआइ से ऐसे कर्जों यानी एनपीए या जो कर्ज नहीं ह्रटाए जारहे है उनकी सेटलमेंट के लिए वन टाइम सेटलमेंट की नीति भी मंजूर करवाई। इस नीति के तहत कर्जदार को ब्याज नहीं देना होता है केवल मूलधन ही लौटाना होता है। लेकिन बैंस ने ओटीएस का भी लाभ नहीं उठाया।
बैंक सूत्रों के मुताबिक बैंक के पास जो जानकारी मुहैया है उसके मुताबिक मंडी में तो बैंस ने तीन लेंटर डाले हुए है लेकिन जिला कुल्लू के मनाली में जिस प्रोजेक्ट के लिए कर्ज लिया गया था वहां जमीन स्तर पर कुछ भी नहीं किया गया है।
हवाओं में अब अफवाहें फैल रही है कि कर्ज की ये रकम भाजपा से जुड़े किसी नेता के प्रोजेक्ट में लगाई गई थी। लेकिन इसकी कहीं से किसी भी तरह की पुष्टि नहीं हो रही है। शायद विजीलेंस जांच में कुछ सामने आ पाए। क्योंकि इतनी बड़ी रकम कहीं तो गई हैं।
उधर बैंस को दो दिनों से बार-बार कॉल किया जा रहा है ताकि इस मसले पर उनका पक्ष भी जाना जा सके लेकिन उनका मोबाइन नेटवर्क क्षेत्र से लगातार बाहर आ रहा है। इसके अलावा वाटसएप संदेश भी भेजा गया लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया है। उनका पक्ष आने पर उसे भी साझा किया जाएगा।
उधर विजीलेंस ने दर्ज एफआइआर में केवल 20 करोड़ के ही कर्ज का ही जिक्र किया है। बहरहाल एफआइआर के अलावा इस मामले में विजीलेंस कुछ भी कहने को राजी नहीं है।ये भी नहीं बता रही है कि बैंक के ततकालीन अध्यक्ष व मौजूदा भाजपा सांसद राजीव भारदवाज का नाम भी एफआइआर में है या नहीं । जाहिर सी बात है कि मुख्यमंत्री सुक्खूविंदर सिंह सुक्खू के निर्देशों के बिना तो वो खामोश नहीं हो सकती। क्योंकि पुलिस अगर 50 ग्राम चिटटा भी पकड़ ले तो पूरे प्रदेश में हल्ला मचा देती है यहां तो 36-37 करोड़ के कर्ज का मसला है और बीजेपी सरकार के समय का मामला है। अंदरखाते कुछ तो पक रहा है।
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