शिमला। जयराम सरकार ,उसके नौकरशाह व राज्य चुनाव आयोग शिमला नगर निगम के चुनाव समय पर करवाने में नाकाम हो गया है व अब निगम 18 जून के बाद नगर निगम का शासन चुने हुए महापौर, उप महापौर और पार्षद नहीं बल्कि सरकार की ओर से बिठाया जाने वाला प्रशासक चलाएगा। चूंकि 18 जून तक किसी भी स्थिति में शिमला नगर निगम के चुनाव होना संभव नहीं है ऐसे में प्रशासक का बिठाया जाना तय हैं।
यह संभवत: शिमला नगर निगम में पहली बार हो रहा हैं कि समय पर चुनाव करवाने में नाकाम रहने पर किसी सरकार को निगम पर प्रशासक बिठाना पडेगा। कांग्रेस व वामपंथी इसे जयराम सरकार की नाकामी करार दे रहे है।संभवत: जयराम ठाकुर ऐसे पहले मुख्य मंत्री बन गए है जो शिमला नगर निगम के चुनाव समय पर नहीं करवा पाए । इसके पीछे हार की शंका वजह रही हो या कुछ और कारण रहा हो।
प्रदेश उच्च न्यायालय ने बीते रोज निगम के कुछ वार्डों की सीमांकन को लेकर दायर याचिका का निपटारा करते हुए इन वार्डों के सीमांकन को रदद कर दिया। वार्डों का सही सीमांकन करवाना जयराम सरकार व राज्या चुनाव आयोग की जिम्मे दारी थी व इस काम में ऐसे अधिकारी लगाए जाने चाहिए थे जो ऐसे काम करवाने में सक्षम हो । लेकिन जयराम सरकार इस मामले में नाकाम रही। अब यहां भी भाजपा सरकार पर दिल्ली् की तरह निगम के चुनावों को टालने का ठीकरा फूट गया है। खासकर शहरी विकास मंत्री और शिमला के विधायक सुरेश भारदवाज सबके निशाने पर है। उधर राज्य चुनाव आयोग भी कटघरे में है कि वह क्यों समय रहते शिमला नगर निगम के चुनाव नहीं करा पाया जबकि उचततम न्याभयालय समेत विभिन्ना अदालतों के फैसलें बिलकुल साफ है। अगर यह सब राज्य चुनाव आयुक्तय व पूर्व मुख्य् सचिव अनिल खाची के रहते हो गया व जो सक्षम व कानून के मुताबिक काम करने वाले अधिकारी माने जाते है। यह दीगर है कि उन्हें जयराम सरकार ने समय से पहले ही मुख्या सचिव के पद से हटा दिया था।
बहरहाल,जयराम सरकार व भाजपा समय पर चुनाव न होने से फोरी तौर पर खुश है। शिमला नगर निगम के चुनावों को लेकर भाजपा में पहले ही संशय था कि उप चुनावों की तरह यहां भी उसे हार का मुंह न देखना पडे। ऐसे में इन चुनावों को किस तरह से टाला जाए इस बावत तरकीबें ढूंढी जा रही थी। वार्डों का पुनर्सीमांकन इस तरह से किया गया जिससे कुछ पार्षदों को अदालत में जाना पडा व यह मामला वहां लटक गया। अगर सीमांकन सही किया जाता तो संभवत: यह नौबत नहीं आती।
राज्य चुनाव आयोग के सचिव सुरजीत सिंह राठौर ने कहा कि आसोग चाहता है कि जल्दीा से जल्दी पुनर्सीमाकंन की प्रक्रिया पूर की जाए। यह पूछे जाने पर कि कोई समय सीमा बांधी है, उन्होंने कहा कि ऐसी कोई समय सीमा नहीं बांधी है। उन्होंनने कहा कि 18 जून को नगर निगम शिमला का कार्यकाल समाप्तर हो जाएगा । ऐसे में सरकार को वहां पर प्रशासक बिठाना होगा।
सुरजीत राठौर की माने तो इसके अलावा कोई विकल्पं नहीं है। यह पूछे जाने पर कि निकाय चुनावों को समय पर करवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश है। राठौर ने कहा कि सुनवाई के दौरान इस बावत अदालत को अवगत कराया था। इस तरह से वह अप्रत्यक्ष ठीकरा अदालत पर फोडने की कोशिश भी कर रहे है। इस तरह से नेताओं व नौकरशाहों का गठजोड लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही तबाह करने पर आ गए हैं। इससे पहले पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में धर्मशला को स्माेर्ट सिटी की सूची में लाने के लिए भी नेताओं और नौकरशाहों ने तमाम तरह के गुल खिलाएं थे।आंकडों में हेराफेरी तक कर दी गई थी। यहां पर सीमांकन के दौरान ही नौकरशाहों ने जलवा दिखाया हैं।
उधर पूर्व महापौर संजय चौहान का कहना है कि भाजपा व जयराम सरकार चाहती ही यह है कि प्रशासक बिठाया जाए। उनका कहना है कि पांच लाख रुपए से ऊपर के जितने भी काम है वह मंजूरी के लिए निगम के सदन में आते है व सदन के पारित करने के बाद ही उन कामों को किया जा सकता है। 18 जून के बाद अब सदन नहीं होगा तो सरकार प्रशासक के जरिए स्माहर्ट सिटी के नाम पर करोडों रुपए के काम मनमर्जी से करवाएगी। समय पर चुनाव न कराने के पीछे असली वजह यही है। इससे करोडों की लूट मचेगी। दूसरे भाजपा को हार का डर तो था ही ।
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