शिमला। अपनी सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू एक बार फिर अपने ही गृह जिला हमीरपुर में पिट गए। अपने घर में सुक्खू कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं जिता पाए। ये उनकी नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा गया हैं। इससे पहले के उपचुनाव में सुक्खू बड़सर की सीट कांग्रेस पार्टी की झोली में डालने में नाकाम रहे थे। उस समय सुजानपुर सीट कांग्रेस इसलिए जीत गई थी क्योंकि यहां पर भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र राणा को धूमल परिवार का साथ नहीं मिला था। अन्यथा यहां कि दोनों सीटें भाजपा के खाते में चली जाती।
कांग्रेस आलाकमान को सुक्खू के नेतृत्व व उनके तौर तरीकों को लेकर पुनर्विचार करने की जरूरत हैं।
बहरहाल, इन तीन उपचुनावों में भाजपा के भीतर की बगावत ने बड़ी भूमिका अदा की हैं।
सैणी व मुकेश की वजह से जीती नालागढ़ सीट
नालागढ़ में हरिनारायण सैणी के परिवार ने अपने अपमान का बदला ले लिया हैं। इस परिवार को पहले धूमल व बाद में भाजपा ने अपमानजनक स्थिति में पहुंचा दिया था। लेकिन इन चुनावों में 13 हजार से ज्यादा मत लेकर भाजपा के बागी हरप्रीत सिंह सैणी ने भाजपा व उसके आकाओं को उनकी औकात दिखा दी।भाजपा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि सैणी इतने मत ले जाएंगे।इसके अलावा लखविंदर सिंह राणा का भी योगदान रहा।
नालागढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी हरदीप सिंह बावा की जीत में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कोई योगदान नहीं हैं। इसके अलावा हालीलॉज कांग्रेस का भी ज्यादा योगदान नहीं रहा हैं। मंडी लोकसभा हार जान के बाद हालीलाज कांग्रेस औपचारिकता भर के लिए इन चुनावों में सक्रिय रही। संभवत: अब हालीलाज कांग्रेस नैपथ्य में न चली जाए।बाकी बगावत का रास्ता तो खुला है ही।
यहां पर भाजपा के बागी सैणी के अलावा अगर किसी ने जोर लगाया तो वह हैं उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री। बावा को जिताने के लिए अग्निहोत्री ने बहुत जोर लगाया है। कहा जाता है कि बावा का टिकट भी उनके कहने पर ही फाइनल हुआ था। सदन में अब अग्निहोत्री का एक कटटर विधायक समर्थक हो गया हैं।
प्रदेश की राजनीति में अग्निहोत्री के पास विधायक ही नहीं हैं। वह हालीलाज के वफादार रहे थे लेकिन हालीलाज से उनका या उनका हालीलाज से मोहभंग हो चुका हैं।
देहरा में भी भाजपा की बगावत का जलवा
देहरा में पत्नी कमलेश की जीत का सेहरा बेशक सुक्खू अपने सिर बांध ले लेकिन असल में ये जीत भाजपा की अंदरुनी बगावत का नतीजा रही हैं। जयराम सरकार में यहां से विधायक रमेश ध्वाला को कदम-कदम पर सताया गया था। भाजपा के संगठन मंत्री पवन राणा यहीं से हुआ करते थे। उन्होंने जयराम मंडली से मिलकर ध्वाला को तबाह करने का कोई मौका नहीं छोड़ा था। इस मंडली ने यहां से आजाद प्रत्याशी होशियार सिंह को अपनी हथियार बनाया। होशियार सिंह के पास पैसों की कमी नहीं थी ।
लेकिन इन चुनावों में ध्वाला को अपना हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया। इसके अलावा धूमल व अनुराग को भी होशियार सिंह से हिसाब चुकता करना था। पूरा जोर वहां से भी लगा। चूंकि पत्नी चुनाव में उतारी गई थो तो सुक्खू ने पूरी ताकत यहीं पर झोंक दी।होशियार सिंह को सबने मिलकर चित कर दिया और सुक्खू गदगद हो गए।
हमीरपुर में सुक्खू ने नहीं लगाया जोर,मित्रमंडली ने भी किया घात
हमीरपुर सीट पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपने चहेते सुनील बिटटू को टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन पार्टी के अंदरुनी सूत्र बताते है कि उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने इसका विरोध किया और पुष्पिंदर वर्मा को टिकट दिलवा दिया। इससे सुक्खू की मित्रमंडली के कुछ सदस्य खफा हो गए। चूंकि सुक्खू की पत्नी देहरा से चुनाव मैदान में थी तो सुक्खू पत्नी के लिए समर्थन जुटाने में ही लगे रहे। वह हमीरपुर में ज्यादा समय रहे भी नहीं। उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने जरूर कमान संभाली लेकिन वह भी वर्मा को जीत की दहलीज पार नहीं करा पाए।
बताया जाता है कि प्रचार के दौरान कारबारियों की बैठक हमीरपुर में रखी गई थी उसमें सुक्खू को आना था। लेकिन मित्रमंडली ने देहरा में पहले से तय पांच बैठकों के अलावा एक और बैठक करा दी व सूक्खू इस बैठक में पहुंच ही नहीं पाए। देर रात तक लोग इंतजार करते रहे। इस तरह का कई कुछ हुआ और भाजपा के आशीष सीट निकाल ले गए।
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