शिमला।मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का व्यवस्था परिवर्तन का नारा आंखों में धूल झोंकने के अलावा कुछ नहीं हैं।कम से कम उनके शासन में पब्लिक सर्विस आयोग में सदस्यों की हो रही नियुक्तियों में यही नजर आ रहा हैं। सुक्खू की कांग्रेस सरकार अपने शासन में पब्लिक सर्विस आयोग में दो सदस्यों की नियुक्तियां कर चुकी हैं। दोनों ही नियुक्तियों में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को सरेआम ठेंगा दिखा दिया गया हैं। इनमें आज नव नियुक्त सदस्य देवराज शर्मा ने आज ही शपथ ली। जबकि इससे पहले शिक्षा विभाग से सेवानिवृत अंजू शर्मा को आयोग का सदस्य नियुक्त किया जा चुका हैं।अब आयोग में अध्यक्ष समेत छह सदस्य हो गए हैं।
हाल ही मे आयोग की सदस्य रचना गुप्ता अपना छह साल का कार्याकाल पूरा कर चुकी थी।
याद रहे पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में मीरा आहलुवालिया की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट में याचिाक दायर की गई थी व नियुक्तियों को लेकर सवाल उठाए गए थे। प्रदेश हाईकोर्ट ने तब इस याचिका को तो खारिज कर दिया था लेकिन जयराम सरकार से उम्मीद जताई थी कि वह आगे की नियुतियों सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के मुताबिक करेंगी। लेकि जयराम सरकार ने हाईकोट के इस आदेश को और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को अपनी यादश्त से ही गायब करा दिया और आयोग के अध्यक्षों व सदस्यों की नियुक्तियां पहले की तरह ही होती रही।
जयराम के बाद नादौन से विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कांग्रेस में विरोधी सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री की कुर्सी कब्जाने में कामयाब हो गए। तब सुक्खू ने व्यवस्था परिवर्तन का नारा देकर जनता को कुछ नया शासन देने का भरोसा दिया। लेकिन इस नारे के नीचे वही पुराना जयराम, वीरभद्र और धूमल वाला ही मायाजाल चल रहा हैं।
वह नया कुछ करने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे हैं।
याद रहे जयराम सरकार में सुक्खू के करीबी व कांग्रेस नेता और वकील आइ एन मेहता ने पब्लिक सर्विस आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर बड़ा मसला उठाया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों और प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश का भी हवाला तब दिया था। लेकिन अब सुक्खू सरकार सत्ता में आई और वह आइ एन मेहता हाईकोर्ट में सरकर की ओर से पैरवी करते नजर आ रहे हैं। लेकिन आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की हो रही नियुक्तियों पर सभी मौन हो गए हैं।
नियुक्तियां करने वाला सबसे बड़ा संस्थान है आयोग
हिमाचल पब्लिक सर्विस आयोग में प्रदेश में नियुक्तियां करने का सबसे बड़ा संवैधानिक संस्थान है। ऐसे में आयोग के सदस्यों और अध्यक्ष की नियुक्ति में ही सुप्रीम कोर्ट के दिशा- निर्देशों का उल्लंघन हो रहा हो तो ये बड़ा संकट हैं।
जयराम सरकार में तो हाईकोर्ट आयोग में नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को लागू कराने में नाकाम रहा था। हालांकि प्रदेश हाईकोर्ट तब सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बचा सकता था। लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार पर भरोसा जताया। लेकिन जयराम के बाद अब सुक्खू सरकार भी उस भरोसे की लाज भंग करती साफ नजर आ रही हैं।
इस मामले को लेकर जब सुक्खू सरकार के विशेष सचिव पर्सनल बलवीर कुमार से बात की तो उन्होंने दिलचस्प जवाब दिया । उन्होंने कहा कि वह तो दो –ढाइ साल बाद इस सीट पर आए हैं। इस बावत तो डीलिंग हैंड से पूछना पड़ेगा। सुक्खू सरकार में बस यहीं पर व्यवस्था परिवर्तन हुआ लगता हैं।अभी क्या प्रक्रिया अपनाई तो वह बोले फाइल पर ही आया सब कुछ।
अब लोकसभा चुनाव करीब है। व्यवस्था परिवर्तन तो पता नहीं लेकिन कहीं सुक्खू सरकार के कारनामें राम लला की नाव पर सवार भाजपा के लिए सत्ता परिवर्तन के दरवाजे न खोल दें।
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