शिमला।ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री अनिल शर्मा ने पूर्व मंत्री जयराम ठाकुर व प्रदेश भाजपा पर पंचायत चुनावों को लेकर पलटवार किया है व साथ केंद्र की मोदी सरकार की भी पोल खोल कर रख दी।ली है। भाजपा विधायक जयराम ठाकुर ने कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार और पंचायती राज मंत्री अनिल शर्मा पर कई आरोप लगाए थे। अनिल शर्मा ने अपने जवाब में भाजपा से उल्टे सवाल किया है कि जब वो सता में थी तो उसने कितनी नई पंचायतें बनाई थी।
मंत्री ने आरोप लगाया कि भाजपा नेता नई पंचायतों के सृजन का मुद्दा राजनीतिक कारणों से उछाल रहे है। यदि उन्हें नई पंचायतों के गठन की आवश्यकता महसूस हो रही थी तो भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान नई पंचायतों का गठन क्यों नहीं किया गया। कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2005-06 में 206 नई पंचायतों का गठन किया गया था जबकि वर्ष 2010 में भाजपा की सरकार जिसमें जयराम ठाकुर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री थे, ने एक भी नई पंचायत सृजित नहीं की जिससे भाजपा के दोहरे चेहरे का पता चलता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जनसंख्या में बढ़ौतरी के दृष्टिगत ग्राम पंचायतों में वार्डों की संख्या में बढ़ौतरी की गई है।
मोदी सरकार की पोल खाेलते हुए अनिल शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार ने 14वें वित्तायोग से प्राप्त पहली किश्त की राशि को 19 सितम्बर, 2015 को जारी किया जबकि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा 14वें वित्तायोग से सम्बन्धित दिशा-निर्देश 8 अक्तूबर, 2015 को जारी किये गये। अतः जिस समय राशि जारी की गई थी उस वक्त तक विभाग में भारत सरकार से दिशा-निर्देश प्राप्त नहीं हुए थे। इस प्रकार इस मामले में स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और किसी प्रकार की कोई दुविधा नहीं है।
मंत्री ने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार द्वारा 14वें वित्तायोग के तहत मिलने वाली राशि में से जिला परिषदों और पचंायत समितियों के हिस्से को बिल्कुल समाप्त कर दिया है जबकि इससे पूर्व 13वें वित्तायोग के अन्तर्गत जिला परिषदों को 50 प्रतिशत तथा पंचायत समितियों को 30 प्रतिशत की धनराशि प्रदान की जा रही थी। कि उस बयान का खण्डन किया है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार सही स्थिति में नहीं है और ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री की विभाग में रुचि नहीं है।
उन्होंने कहा कि पंचायती राज चुनावों से सम्बन्धित आरक्षण रोस्टर को 10 साल तक यथावत् लागू करने का प्रदेश सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया गया है, हालांकि ऐसी प्रस्तावना भारत सरकार की विचाराधीन है जिसके पक्ष में प्रदेश सरकार ने भी अपनी टिप्पणियाॅं केंद्र को भेजी है। आरक्षण रोस्टर के मामले में उन्होंने स्पष्ट किया कि आरक्षण की प्रक्रिया साॅफ्टवेयर के माध्यम से पूर्ण की जाए या इसे मेनुअली जारी किया जाए, आरक्षित स्थानों का अन्तिम परिणाम एक समान रहेगा। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की मनमानी की कोई गुंजाइश नहीं है। केन्द्र सरकार द्वारा राजीव गांधी पंचायत सशक्तिकरण अभियान योजना समाप्त करने के पश्चात् विभाग द्वारा विकास खण्ड स्तर तथा जिला स्तर पर नियुक्त कम्पयूटर प्रोग्रामर तथा कम्पयूटर आॅपरेटरों की सेवाएं समाप्त करनी पड़ी जिस कारण साॅफ्टवेयर के संचालन में कठिनाईयां आ रही थीं। इसलिए सरकार ने आरक्षण की प्रक्रिया को पूर्व की भांति मैनुअली करने का निर्णय लिया। साॅफ्टवेयर को लागू न करने के लिए विभाग पर किसी भी प्रकार का दबाब नहीं था।
अनिल शर्मा ने कहा कि आरक्षण की प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश पचंायती राज अधिनियम, 1994 तथा इसके अधीन जारी किये गए नियमों तथा दिशा-निर्देशों के अनुरुप समपन्न की जाएगी। इसमें किसी प्रकार की धांधलियों को बर्दाशत नहीं किया जाएगा जिसके लिए विभाग द्वारा समस्त जिलाधीशों तथा जिला पंचायत अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किये जा चुके है। इसलिए आरक्षण रोस्टर जारी होने से पूर्व ही धांधलियों के आरोप लगाना बेबुनियाद तथा तर्कहीन है।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री ने कहा कि उक्त साॅफ्टवेयर को तैयार करने में विभाग ने कोई भी धनराशि खर्च नहीं की जैसा कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता आरोप लगा रहे हैं। इस साॅफ्टवेयर को विभाग और एन.आई.सी. ने संयुक्त रुप से तैयार किया जिसके लिए एन.आई.सी. को कोई राशि प्रदान नहीं की गई है।
प्रदेश में नई पंचायतों के गठन के सवाल पर अनिल शर्मा ने कहा कि कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वर्तमान में प्रदेश में पहले ही बहुत छोटे आकार की पंचायतें है। पंचायतों की औसतन जनसंख्या 1905 है, इससे छोटी पंचायतें स्वशासन की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के मध्यनजर सरकार ने प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के पश्चात् 1208 पंचायतों का सृजन किया।
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