शिमला।लोकसभा चुनावों ने दस्तक दे दी और इन चुनावों से ऐन पहले प्रदेश के बेरोजगारों ने नौकरियों को लेकर प्रदेश के कोने-कोने में त्राहिमाम मचा रखा हैं। लेकिन सुक्खू सरकार सवा साल बाद भी भर्ती करने वाली संस्था यानी राज्य कर्मचारी आयोग के मुख्यालय के ताला नहीं खोल पाई हैं। सुक्खू सरकार की ये सवा साल के शासन की सबसे बड़ी विफलता हैं।
नौकरियों को लेकर बेरोजगार युवा व युवतियां राजधानी शिमला की सड़कों पर अपनी आवाज को बुलंद किए हुए हैं लेकिन सुक्खू सरकार के मंत्री सायरन बजाती आलीशान कारों में नजरें दूसरी ओर फेरते हुए काफिलों संग फर्राटा चाल में ओझल हो जाते हैं।
मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक के पास इन बेरोजगारों के सवालों के जवाब नहीं हैं।
अब जब ये बेरोजगार सरकार के दरवाजे पर दनदनाते हुए पहुंचे तो सुक्खू सरकार ने आनन-फानन में अब उनके लिए केबिनेट की सब –कमेटी का झुनझुना देकर सहलाने का फार्मूजा ईजाद किया हैं।
आज यानी शुक्रवार 9 फरवरी को सचिवालय के बाहर के बेरोजगार युवाओं ने अपने रिजल्ट घोषित करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की तो अंदर चल रही सुक्खू केबिनेट की बैठक में भी इसकी गूंज सुनाई दी ।
मंत्रिमण्डल ने तब कहीं जाकर हिमाचल प्रदेश राज्य चयन आयोग के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम बनाने को भी मंजूरी प्रदान की।
यही नहीं लोकसभा चुनावों को करीब आता देख मंत्रिमण्डल ने भंग किए गए हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर के तहत पुलिस जांच के कारण लम्बित विभिन्न परीक्षा परिणामों के कानूनी पहलुओं के परीक्षण के लिए उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की अध्यक्षता एक मंत्रिमण्डलीय उप-समिति गठित करने को भी मंजूरी प्रदान की।
इस समिति में मुख्यमंत्री के लाडले उद्योग मंत्री हषवर्धन चौहान, राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी,हालीलाज कांग्रेस व सुक्खू विरोधी खेमे से लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह और आयुष मंत्री यादविन्द्र गोमा को शामिल किया गया हैं।
दिलचस्प यह है कि ये समिति अपनी रपट कब देगी और उसकी रपट कब लागू होगी इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता हैं।
जबकि कायदे से कर्मचारी चयन आयोग का मसला तीन महीने के भीतर सुलझा कर अब तक तो भर्तियां हो भी जानी चाहिए थी।
कर्मचारी चयन आयोग को लेकर सुक्खू ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के धुर विरोधी व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के तब लाडले अफसर दीपक सानन को जिम्मा सौंप रखा हैं। जाहिर सी बात है कि सानन जो भी करेंगे वो मुफत में तो नहीं करेंगे। जितना खर्चा सुक्खू सरकार सानन कमेटी पर कर रही है उतने में दर्जन से ज्यादा बेरोजगारों को साल का रोजगार मिल जाना था।
लेकिन मुख्यमंत्री सुक्खू को काम करने का अपना ही अंदाज है चाहे उसके लिए जनता के खजाने से कितना ही रुपया क्यों न लुटाना पड़े। सानन की जगह किसी सेवारत अधिकारी से भी ये काम कराया जा सकता था। लेकिन सुक्खू ने ऐसा नहीं किया।
अब देखना है कि सुक्खू सरकार लोकसभा चुनावों से पहले बेरोजगारों से कैसे निपटते हैं और बेरोजगारों के आंदोलन को भाजपा से मिल रही हवा को कैसे रोक पाते हैं।
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