शिमला। लाडलों की खातिर सरकारों ने प्रशासनिक ताना-बाना ही तबाह करदिया हैं। सुक्खू सरकार के डीजीपी संजय कुंडू मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना और गृह सचिव से भी सीनियर बैच के अधिकारी हैं। लाडलों के लिए सुक्खू सरकार ही नहीं मोदी सरकार समेत विभिन्न प्रदेशों में नेताओं ने जूनियर अधिकारियों को मुख्य सचिव व डीजीपी के पदों पर तैनात कर दिया हैं।
हिमाचल में भी ऐसा ही हुआ हैं। डीजीपी संजय कुंडू पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के चहेते अधिकारी थे। जयराम ही उन्हें दिल्ली डेपुटेशन से हिमाचल लाए थे। लेकिन वह डीजीपी नहीं बन पाए। जयराम ने उन्हें सचिव विजीलेंस बना दिया। जयराम सरकार में जितने भी मुख्य सचिव रहे वह सभी कुंडू से सीनियर बैच के थे। चाहे वह राम सुभग सिंह रहे हो या आरडी धीमान। आर डी धीमान 1988 बैच के अधिकारी थे। जबकि कुंडू 1989 बैच के आइपीएस अधिकारी हैं। वैसे भी आइएएस और आइपीएस अधिकारियों में बैर पुराना हैं। सीनियर कब जुनियर की सुनते हैं।
सुक्खू ने सत्ता में आते ही प्रबोध सक्सेना को मुख्य सचिव बना दिया। वह 1990 बैच के आइएएस अधिकारी हैं। ऐसे में बैच के हिसाब से सक्सेना डीजीपी कुंडू से जूनियर हो गए। गृह सचिव तो जो भी रहा वह कुंडू से कहीं जूनियर ही रहे। ऐसे में मुख्य सचिव से लेकर गृह सचिव तक किसी ने डीजीपी को कोई निर्देश देना भी हो तो उसमें कितनी तल्खी रख पाएगा इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता हैं।
ऐसा नहीं था कि प्रदेश नौकरशाही में डीजीपी कुंडू से सीनियर अधिकारी नहीं थे। निशा सिंह 1987 बैच की आइएएस अधिकारी हैं। उन्हें जयराम अपनी सरकार में ही हाशिए पर धकेल गए थे व सलाहकार बना गए थे। सुक्खू ने भी उनको हाशिए पर ही रखा हैं। उन्होंने पिछले एक साल में क्या काम किया है किसी को कोई पता नहीं हैं। सरकार उनके बारे में कुछ बताती भी नहीं । हालांकि वह वेतन तो पूरा ले ही रही हैं। वह मौजूदा समय में सबसे सीनियर आइएएस अधिकारी हैं।
उनके बाद 1988 बैच के आइएएस अधिकारी संजय गुप्ता हैं। जयराम उन्हें ठिकाने लगा गए थे। लेकिन सुक्खू ने उनको को राम सुभग सिंह को ताजपोशी दी। संजय गुप्ता अभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष हैं। जबकि राम सुभग सिंह को बिजली बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। संजय गुप्ता चूंकि सीनियर अधिकारी है तो वह मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को को रिपोर्ट नहीं करते हैं। वह मुख्यमंत्री सुक्खू को ही रिपोर्ट करते हैं।
सुक्खू निशा सिंह व संजय गुप्ता दोनों को मुख्य सचिव की कुर्सी पर बिठा सकते थे। ऐसे में ये दोनों डीजीपी कुंडू से सीनियर हो जाते और डीजीपी से रपटें ही नहीं जवाब भी तलब कर पाते। लेकिन यहां तो प्रशासनिक तानाबाना ही डोला हुआ हैं।
अब हाईकोर्ट ने डीजीपी कुंडू को हटाने का आदेश दे रखा हैं। लेकिन अभी कोई फैसला नहीं लिया जा सका है जबकि नौकरशाही के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री दिल्ली से ही हामी भर कर कोई भी तैनाती कर सकते थे। लेकिन सुक्खू ऐसा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। या तो वह पहली बार मुख्यमंत्री बने है तो प्रशासनिक ताना –बाना उनकी समझ में नहीं आ रहहा है या उनके मन में कुछ और चल रहा हैं। जो भी हो फजीहत तो कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस आलाकमान और कांग्रेस सरकार की हो ही रही हैं।
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