शिमला। ब्रिटिश हुकूमत के इंपीरियल सिविल सचिवालय की गवाह रही व नेशनल हेरिटेज बिलिंडग का दर्जा पाई राजधानी शिमला की ऐतिहासिक व भव्यों इमारतों में शुमार गार्टन कैसल बिलिंडग में आग लगने से दो मंजिलें जल कर राख हो गई है। इस भवय इमारत में स्थित हिमाचल एकाउंटेट जनरल कार्यालय की टॉप की दोनों मंजिलों में रखा सारा महत्वपूर्ण रिकार्ड जलकर राख हो गया है। प्रधान एकाउंटेट जनरल सतीश लूंबा ने कहा कि कितना रिकार्ड जला है इसका आकलन करना संभव नहीं है। कर्मचारियों के पैंशन, जीपीएफ,इंस्पेक्शन समेत बहुत सा महत्वपूर्ण रिकार्ड आग से बचाया नहीं जा सका है।
आगजनी की इस घटना में कोई भी हताहत नहीं हुआ है। फायर विभाग को टैक्सी वालों ने जानकारी दी तो पूरा शिमला जाग उठा।
सुबह तीन बजे के करीब भीतर से लकड़ी की बनी गोथिक व राजस्थानी वास्तुकला शैली की इस भव्य इमारत से आग की लपटें आसमान छूने लगी। शहर में सुबह कम से कम 10 घंटे की कड़ी मशक्त के बाद आग पर काबू पाया जा सका लेकिन तब तक इस इमारत की ऊपर की दो मंजिले स्वाह हो चुकी थी।
फायर विभाग के अलावा आर्टट्रैक में तैनात सेना के जवान व अफसर तुरंत मौके पर पहुंचे। प्रदेश सरकार ने 2003 में इस बिल्डिंग को नेशनल हेरिटेज बिलिंडग का दर्जा दिया था।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक फायर विभाग की राजधानी स्थित सभी फायर टेंडर को आग बूझाने के काम में लगा दिया है। लेकिन पानी की कमी के कारण और जगह की तंगी की वजह से आग पर काबू नहीं पाया जा रहा है। इसके अलावा एजी आफिस के बाहर दर्जनों गाडि़या पार्क थी। उन्हें सेना के जवानों ने बाहर निकाला।
अफसरों व कर्मचारियों ने जान लगाई दांव पर
आग की भनक लगते ही शिमला में रहने वाला एजी ऑफिस का सारा स्टाफ मौके पर पहुंच गया । एजी के अफसर व कर्मचारी जान को दांव पर लगाकर आग से वेपरवाह अंदर घुसे और तीन सर्वर उठा कर बाहर ले आए। इन तान सर्वरों में एजी आफिस का बेहद महत्वपूर्ण डाटा स्टोर था। इसके अलावा उन्होंने सेना के जवानों के साथ बहुत सा रिकार्ड जलने से बचाया। लेकिन हवा का रुख प्रतिकूल होने की वजह से आग की लपटों के आगे उन्हें बेबस होकर वापस लौटना पड़ा।
आरट्रैक से दौड़े आए अफसर व कर्मचारी
आग की जानकारी मिलने पर आरट्रैक के संतरी ने अलार्म बजाया और सवा चार बजे फायर टेंडर व 200 जवानों की टुकड़ी लेकर ब्रिगेडियर एस सी सरन, ब्रिगेडियर एस एस सिद्धु, कर्नल के राम मोहन की कमान में मौके पर पहुंची।सेना के जवानों ने आफिस के बाहर खड़े वाहनों को हाथों से उठाकर बाहर निकाला और रास्ता साफ किया। इस दौरान जेसीओ सुबेदार बलवन सिंह को चोटें भी आई।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दो बार किया मौके का दौरा, जांच के आदेश दिए
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एजी आफिस जाकर मौके का जायजा लिया।उन्होंने कहा कि ये प्राचीन भव्य इमारतों में से एक है व इसके जलने से उन्हें बेहद दुख हुआ है। उन्होंने कहा कि आग कैसे लगी है इसकी सक्षम अथारिटी से जांच कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस भव्य इमारत का पुनर्निर्माण उसी शैली से हो जो आग लगने से पहले थी। प्रधान एजी सतीश लूंबा से कहा कि जितनी भी लकड़ी की जरूरत पड़ेगी वह प्रदेश सरकार मुहैया कराएगी। लूंबा ने मुख्यमंत्री को आग से हुए नुकसान का ब्यौरा दिया।इस मौके पर उनके साथ विधान सभा स्पीकर बृज बिहारी बुटेल ने भी मौके का जायजा लिया।
इस मौके पर प्रधान एजी सतीश लूंबा ने कहा कि अढाई तीन बजे के करीब इमारत के ग्राउंड फ्लोर हीटिंग सिस्टम प्लांट में डीजल डाला गया। तब तक किसी भी आग लगने की भनक नहीं थी। उन्होंने अपने स्टाफ का बचाव करते हुए कहा कि जो उनके दायरे में था वह उन्होंने किया। चूंकि आग कहीं अंदर लगी उसका पता तब चला जब लपटें आसमान छूने लगेी। उन्होंने कहा कि अब जांच के बाद ही पता चलेगा कि चूक हुई है या कोई षडयंत्र है।
चीफ फायर आफिसर रहे मौके पर
प्रदेश के चीफ फायर आफिसर भूपाल सिंह चौहान आग की सूचना मिलने पर खुद मौके पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि फायर कर्मियों ने तीन कोनों से आग पर काबू पाया। इमारत की दोनों ओर से रास्ते नहीं थे। इसलिए बीच में से जाकर अंदर जाना पड़ा। हवा के रुख ने बहुत बाधा पहुंचाई। फायर टेंडर सोलन व कडाघाट से भी बुलाए गए।
एजी का इतिहास
एजी आफिस ऐतिहासिक बिल्डिंग गार्टन कैसल में स्थित था। यह बिल्डिंग 19 सदी में बनाई गई थी और 1840 इसके मालिक आईसीएस अफसर गार्टन के नाम पर इस बिल्ंिडग का नाम गार्टन कैसल रखा गया उनकी मौत के बाद ये इमारत कई हाथों में गई व आखिर में इसे जेम्स वाकर ने खरीदा।वह यहां पर अस्पताल बनाना चाहते थे लेकिन साइट ठीक न होने की वजह से उन्हें अपना मन बदलना पड़ा। इसके बाद भारत सरकार ने 1900 में एक लाख 20 हजार रुपए में इस इमारत को खरीद लिया।मौजूदा समय में खड़ी इस बिल्डिंग को मेजर एच एफ चेजनी रेजीडेंट इंजीनियर ने 1901से 1904के बीच तैयार किया और यहां पर ब्रिटिश सरकार का इंपीरियल सिविल सेक्रेट्रीएट स्थापित किया गया।
गोथिक शैली व राजस्थानी वास्तु शैली के संगम से पत्थरों बनी ये भव्य इमारत वास्तु कला का एक बेहतरीन नमूना था। इसमें राजस्थानी वास्तु शैली बालकनी,छज्जा, जाली व सेंड स्टोन का संगम किया गया था। आजादी के बाद पंजाब एजी आफसि जो लाहौर में स्थित था उसे 1950 में यहां के लिए शिफ्ट किया गया।
1नवंबर1996 को इसे पर पंजाब,हरियाणा,चंडीगढ़ व हिमाचल का एजी आफिस का नाम दिया गया। गया।लेकिन 1 अप्रैल 1969 को यहं पर हिमाचल का एजी आफिस अलग से स्थापित हो गया।
2001 में सीएजी ने इस बिल्डिंग का पुराना वैभव वापस लौटाने के लिए इसके कायाकल्प का काम सीपीडब्ल्यूडी के सुपुर्द किया1 ये काम 2003 में पूरा कर दिया गया।
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