शिमला। हमीरपुर में धूमल परिवार कांग्रेस से भाजपा में आए राजेंद्र राणा व इंद्र दत लखनपाल की नैया न डुबो दे इसलिए संघ व नडडा-जयराम बीजेपी ने अपनी फौज भी हमीरपुर में उतार रखी हैं। इसके अलावा उधर भाजपाइयों का दर्द ये है कि पिछले दस सालों से ज्यादा वो राणा व इंद्र दत लखनपाल के खिलाफ मोर्चा खोले रखे अब उनके पक्ष में कैसे काम करे।
याद रहे पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की राजनीतिक नैया राजेंद राणा ने ही हालीलाज कांग्रेस के साथ मिलकर डुबो दी थी। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने राणा को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया और 2017 में धूमल जो तब मुख्यमंत्री के चेहरे थे उन्हें हरवा दिया था। इसके बाद राणा का राजनीतिक ऊफान पर आ गया।
लेकिन अब भाजपा आलाकमान यानी धूमल के राजनीतिक दुश्मन नडडा व उनकी जुंडली ने प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के दौरान उसी हालीलाज के वफादार हर्ष महाजन के लिए राणा, सुधीर, इंद्र समेत छह कांग्रेस के विधायकों को तोड़ दिया व बहुमत होते हुए हर्ष महाजन को राज्यसभा पहुंचा दिया।यहां भी बाकियों संग राणा नडडा के काम आएं हैं। हमीरपुर के धूमल खेमे के भाजपाइयों का मानना है कि नडडा का मंसूबा सबको मालूम हैं।
उधर, जयराम व उनके साथी इस खेल में इसलिए शामिल हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि जयराम मुख्यमंत्री बन जाएंगे व बाकी मंत्री । लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया।सरकार नहीं टूटी। इस खेल में तीन आजाद भी भाजपा ने शामिल ने कर लिए। बहरहाल अभी बाजी उल्टी हुई हैं।चार जून के बाद क्या होता है किसी को पता नहीं हैं। नतीजे कई कुछ बयां करेंगे।
ये दीगर है कि अब भाजपा के ही नेता अंदरखाते कह रहे है कि अगर कांग्रेस के विधायकों को तोड़ना ही था तो फिर किसी भाजपाइ को राज्यसभा भेजा जाता। किसी कांग्रेसी नेता को राज्यसभा भेजना समझ से परे है।बहरहाल शिमला के भाजपाइइयों में ये उबाल उबला हुआ है। ये उबाल इन चुनावों में जरूर कुछ गुल खिलाएगा।
इसी तरह कांग्रेस से भाजपा में आए सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्र दत लखनपाल ,चैतन्य शर्मा,रवि ठाकुर और देवेंद्र भुटटों को लेकर भी भाजपाइयों में अंदरखाते रोष है । असल रोष ये है कि आलाकमान अपनी राजनीति की खातिर तो कांग्रेसियों को सिर पर बिठा लेते है लेकिन जब स्थानीय नेताओं के राजनीतिक कैरियर की बात आती है तो उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाता है।तब ये पाठ पढ़ाया जाता है कि टिकट किसी की बपौती नहीं हैं।
ऐसे में हमीरपुर से लेकर बाकी जगहों पर खांटी भाजपाइयों की यही कहना है कि जिनके खिलाफ वो सालों विरोध में रहे अब उनके संग चले तो कैसे चलें। साथ चलने का मतलब ही है कि अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मारना हैं।काम-धंधा सालोंंसे मंदा पड़ा हुआ हैं।
बहरहाल, सबसे ज्यादा दिलचस्प स्थिति हमीरपुर में बनी हुई हैं। हमीरपुर धूमल का गृह जिला है व उनके पुत्र अनुराग यहां सांसदी का चुनाव लड़ रहे हैं।वह भी फंसे हुए हैं। बेशक देश-विदेश का मीडिया उन्होंने अपनी बगल में बिठाया हुआ है लेकिन हमीरपुर व हमीरपुरियों के लिए उन्होंने क्या किया है इसका जवाब देते उनकी जुबान जरा लड़खड़ा जाती हैं।
यहीं पर सुजानपुर विधानसभा हलके से धूमल के राजनीतिक दुश्मन राजेंद्र राणा भी भाजपा से चुनावी रण में हैं। धूमल परिवार के पास राणा को मिटटी में मिलाने का पूरा मौका हैं लेकिन आरएसएस व नडडा–जयराम बीजेपी ने पूरी तरह से धूमल के आंगन में जिस तरह फील्डिंग सजा रखी हैं उससे धूमल परिवार के मंसूबों को पंख नहीं लग रहे हैं। हालांकि ये दीगर है कि अभी मतदान के लिए एक सप्ताह से ज्यादा का समय हैं।
कांग्रेस से भाजपा में आए इन प्रत्याशियों का काम तमाम करने या समझ लो अपनी राजनीति बचाने के काम में लगे बड़सर के एक नेता को निष्कासन के दहलीज से वापस लौटना पड़ा है। इसके अलावा बाकी नेता भी जो राणा से हिसाब चुकता करना चाहते है वो भी अब चुप करा दिए गए हैं। लेकिन शायद नडडा व संघ के लोग नहीं जानते कि धूमल कई मायनों में प्रधानमंत्री मोदी के भी गुरु रह चुके है। वो कब व कैसे क्या करेंगे ये किसी को पता भी नहीं चलेगा। अमूमन वीरभद्र सिंह ऐसा किया करते थे।
2022 के विधानसभा चुनावों में दस तारीख को हुई प्रधानमंत्री मोदी की सुजानपुर की रैली को हमीरपुर में भाजपाइ अभी तक भूले नहीं हैं। इस रैली में मोदी ने विनोद ठाकुर को जिस तरह से याद किया था तभी पता चल गया है कि यहां क्या हाेने वाला हैं। वही हुआ भी। मोदी अब फिर से मंडी में आने वाले है। इस बार उनके ‘बोलों ‘को लपकने के लिए विपक्ष पूरी तरह से तैयार बैठा है।
बहरहाल ,संघ व नडडा बीजेपी ने ये फीलिल्डिंग हमीरपुर ही नहीं बाकी जगहों पर भी सजा रखी है लेकिन सबसे ज्यादा निगाहबानी हमीरपुर में ही हैं।
यहां के प्रभारी जयराम ठाकुर के बेहद करीबी सुंदरनगर से विधायक राकेश जम्वाल को बनाया गया हैं। इसके अलावा जयराम के ही करीबी विजय अग्निहोत्री उनके साथ मोर्चा संभाले हुए हैं।
इसके अलावा ऊना से सुमित शर्मा और करसोग से बिहारी लाल शर्मा को भी यहां लगाया गया है। इनकी ज्यादा नजदीकियां संघ से रही है बाकी संघी भी बाहरी प्रदेशों से यहां से अपनी रपटें आलाकमान को भेज ही रहे हैं। लेकिन भाजपाइ हमीरपुर में 2017 को नहीं भूल रहे हैं। इसके अलावा अपने राजनीतिक अस्तित्व की जंग लड़ रहे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी हर दूसरे दिन यहां आकर भाजपाइयों को 2017 याद दिला जाते हैं।
याद रहे सुक्खू व धूमल परिवार में ज्यादा दूरियां नहीं हैं। इसीलिए नारा लग भी रहा है कि 2017 की तरह हमीरपुर से सीएम नहीं जाने देंगे। साथ ही कांग्रेसियों का ये भी कहना है कि अगर हमीरपुर से भाजपा को वोट गया तो वोट जयराम को जाएगा व जयराम ने सत्ता में रहते हुए पांच साल हमीरपुर के साथ क्या किया ये सबको पता हैं।सारा का सारा बजट मंडी में ही व मंडी में भी सिराज व धर्मपुर में खर्च हुआ,ऐसा ये कांग्रेसी इल्जाम लगाते नहीं थकते। बहरहाल, सुक्खू भी धूमल परिवार की तरह ही राणा से हिसाब चुकता करने की फिराक में है।
अब देखना है कि संघ व नडडा की सजाइ फील्डिंग में धूमल परिवार सुक्खू संग कैसे राणा को पछाड़ते है। कैप्टन रणजीत राणा को कांग्रेस से खड़ा कर वह पहला पड़ाव तो पार कर ही चुके है। इसके अलावा भी वो कई कुछ जमीन पर कर चुके है और संघ व नडडा-जयराम बीजेपी के हवलदारों को ज्यादा कुछ समझ में आ भी नहीं रहा हैं। बहरहाल, चार जून करीब ही तो हैं।
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