शिमला।हिमाचल प्रदेश में कार्यान्वित की जा रही निःशुल्क फल पौध पोषण परामर्श सेवा बागवानों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रही है। इस परामर्श सेवा के माध्यम से बागवानों को फल बागीचों में आवश्यक पोषक तत्वों की सही स्थिति जानने और उसके आधार पर उर्वरकों की उचित एवं संतुलित मात्रा निर्धारित करने में सहायता मिली है। निश्चित तौर पर इस सेवा का लाभ लेकर बागवान फल पौधों से अधिक एवं उत्तम गुणवत्ता की पैदावार प्राप्त कर रहे हैं।
इस योजना के अन्तर्गत, प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में उगाए जाने वाले फल पौधों से पत्तियों के नमूने एकत्रित कर उनका रासायनिक विश्लेषण किया जाता है। विश्लेषण परिणामों के आधार पर बागवानों के फल बागीचों में पोषक तत्वों की स्थिति का अध्ययन कर बागीचों के लिए उर्वरकों की संतुलित मात्रा का निर्धारण किया जाता है। इसकी जानकारी संबंधित बागवानों को लिखित रूप में डाक द्वारा अथवा उद्यान विकास अधिकारी के माध्यम से भेजी जाती है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य उन क्षेत्रों में, जहां बागीचे अधिक सघन हैं, वहां पत्ती विश्लेषण विधि द्वारा फल पौधों में पोषक तत्वों की स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना है। इसके अलावा, पत्तियों के नमूनों के विश्लेषण के आधार पर बागीचों में फल पौधों के लिए उर्वरकों की उचित एवं स्थिर मात्रा का निर्धारण करना व इसकी जानकारी संबंधित बागवानों को देना है। इसके तहत, बागवानों के लिए ऐसी नई फल पौध पोषण प्रयोगशालाओं की स्थापना करना भी है, जिनमें बागवानों को पत्ती विश्लेषण की समस्त सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा सकंे।
योजना के अन्तर्गत प्रदेश में इस समय पांच फल पौध पोषण प्रयोगशालाएं कार्य कर रही हैं। इनमें शिमला जिले के नवबहार स्थित उद्यान निदेशालय, कोटखाई एवं थानाधार, कांगड़ा जिले के धर्मशाला तथा कुल्लू जिले के बजौरा में स्थित हैं। इसके अतिरिक्त, प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में यह सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए दो डाईंग ग्राईडिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं, जो किन्नौर जिले के रिकांगपियो तथा चम्बा जिले के भरमौर में स्थित है। इन प्रयोगशालाओं की कुल क्षमता 25,000 पत्तियों के नमूनों के विश्लेषण करने की है। ऊना जिले के सलोह में नई प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। प्रयोगशाला में मुख्य पोषण तत्वों जैसे नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनीशियम के साथ-साथ सूक्ष्म तत्वों लोहा, मैगनीज़, तांबा एवं जस्ता के विश्लेषण की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। संतुलित उर्वरक प्रयोग से बागवान उच्च गुणवत्तायुक्त अधिक पैदावार प्राप्त कर अपनी आर्थिकी को और सुदृढ़ कर सकेंगे।
वर्ष 2013-14 के दौरान कुल 12000 पत्तियों के नमूने एकत्रित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इस दौरान प्रदेश के विभिन्न जिलों से कुल 12,199 नमूने प्राप्त हुए तथा कुल 7756 बागवानों को इस सेवा का लाभ प्रदान किया गया। इस प्रकार, शिमला जिले में 2028, सोलन जिले में 964, सिरमौर जिले में 1330, किन्नौर जिले में 700, बिलासपुर जिले में 125, कांगड़ा जिले में 1438, हमीरपुर जिले में 705, ऊना जिले में 699, चम्बा जिले में 1010, मण्डी जिले में 603, कुल्लू जिले में 1636 तथा लाहुल-स्पीति में 138 पत्तियों के नमूनों का विश्लेषण किया गया।
इस वर्ष के दौरान प्रदेश के विभिन्न जिलों से जून, 2014 तक विभिन्न प्रयोगशालाओं में कुल 3871 नमूने प्राप्त हुए, जिनमें से 2775 नमूनों का विधायन तथा 1117 नमूनों का विश्लेषण किया गया है। बागीचों के जिस स्थान से नमूने लिए जाएं वहां पौधों की स्थिति एक जैसी होनी चाहिए। सामान्य अवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए नमूना लेने के लिए बागीचे को विभिन्न खण्डों में इस प्रकार बांटा जाना चाहिए जिससे प्रत्येक खण्ड से लिए हुए नमूने उस खण्ड की सामान्य स्थिति तथा समस्या का प्रतिनिधित्व कर सकें। एकत्रित पत्तियों को अधिक देर तक धूप में नहीं रखा जाना चाहिए। नमूना हरी व ताजी अवस्था में ही निकटतम प्रयोगशाला में पहुंचाया जाना चाहिए।
पर्णपाती (डेसीडुअस) फल पौधे जैसे सेब, नाशपाती, चैरी, आड़ू, प्लम, खुमानी, बादाम इत्यादि से पत्तियां उसी मौसम में पैदा हुई टहनियों के मध्य भाग से 1जुलाई से 15 अगस्त तक या फूल आने के 8 से 12 सप्ताह के बीच लिए जाने चाहिए। बागीचे की सामान्य अवस्था का प्रतिनिधित्व करने के लिए यह आवश्यक है कि पत्तियां टहनियों के फल लगने वाले भाग के निकट से न ली जाएं क्योंकि फल अपनी विकास अवस्था में निकट की पत्तियों से अधिकतम खुराक लेते हैं। इसलिए ऐसी टहनियों से प्राप्त पत्तियों से सही परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं।
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