शिमला। प्रदेश विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भाजपा में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में एक हारे हुए नेता प्रेम कुमार धूमल और एक जो जय राम ठाकुर जो मुख्यमंत्री नहीं बने हैं, उसके समर्थक राजधानी शिमला में सरकारी होटल पीटरहॉफ के बाहर प्रदेश की जनता की अपना जलवा दिखाने पर आमदा हो गए हैं। ये अपने आप में दिलचस्प ही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण भी हैं। खुद को चाल ,चरित्र और चेहरे वाली पार्टी का तमगा लगाने वाली भाजपा में ऐसा होना अपने आप में दुर्भग्यपूर्ण व पार्टी के क ांग्रेस के नकशे कदम पर चलने की आहट हैं।
जनता ने अपना फैसला बिलकुल साफ -साफ सुना दिया हैं। ऐसे में धूमल व जयराम क ो ह ी नहीं आलाकमान को भी ये फैसला मानना चाहिए था। लेकिन पिछल्ले दो दिनों से सारे जनता के फैसले क८ा अपमान करने पर आमदा हैं। निश्चित तौर पर जनता इस जलवे को याद रखेगी व मौका आने पर हिसाब किताब भी चुकता करेगी।
क यदे से धूमल को अपने व जयराम को अपने समर्थकों को क ाबू में रखना चाहिए था। क ोई भी समर्थक बिना नेता के इशारे के कुछ नहीं कर सकता। लेकिन पिछल्ले दो दिनों से जो भी पीटरहॉफ के बाहर से प्रदेश की जनता क ो जो संदेश दिया जा रहा हैं , उसके मायने जनता समझ रही हैं।
सबसे हैरानी वाला पहलू ये है कि आला कमान की ओर से भेजी गई पर्यवेक्षक व इस देश की रक्षामंत्री निर्मल सीतारमण व दूसरे व पर्यवेक्षक नरेंद्र तोमर क ो आज घेर दिया गया व जबरदस्त नारेबाजी की गई।
नहीं मालूम भाजपा नेता क्या साबित करना चाहते हैं। अपनी ही पार्टी में घमासान क ांग्रेस में हुआ करता था और आलाकमान उसे हवा भी देता था। अब हिमाचल से भाजपा में भी ये शुरू हो गया हैं। लॉबिंग हो रही हैं। धूमल जैसे बड़े कद के नेता को शायद अपने कद के हिसाब से समर्थकों को क ाबू में रखना चाहिए था। उन्हें जनता ने नकारा नहीं हैं। बेशक चुनाव हारे हैं। राजनीति में हार जीत चलती रहती हैं। लेकिन हार जाने पर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। उन्हें समर्थकों क ो इस तरह क ी नारेबाजी को दरकिनार कर जनता पर भरोसा रखना चाहिए। जनता उन्हें दोबारा मौका दे सकती हैं। लेकिन अगर वो जलवा दिखाने में लगे रहे तो हश्र कुछ भी हो सकता हैं।
प्रदेश में भाजपा के सबसे बड़े नेता शांता कुमार ने तो आज कह भी दिया कि जिस तरह क ी नारेबाजी की जा रही हैं , अगर वो प्रदेशाध्यक्ष होते तो ऐसे समर्थकों को कभी का पार्टी से बाहर क ा रास्ता दिखा देते। वह बोले भी, कि वह इस सबसे नाखुश हैं। धूमल के लिए ये टिप्पणी उनका कद छोटा करने वाली हैं। हालांकि समर्थक जयराम के भी हैं। लेकिन जीते हुए नेता का तो मुख्यमंत्री पद पर दावा बनता भी हैं। अगर मुख्यमंत्री पद के लिए दो जीते हुए विधायकों के समर्थकों कीओर से इस तरह की नारेबाजी होती तो मामला समझा जा सकता था। लेकिन धूमल हार चुके हैं। बावजूद इसके समर्थकों को आगे करना अपने कद को बौना करना हैं। हारे हुए नेता को मुख्यमंत्री बनाने क ी परिपाटी नहीं हैं। ये किसी भी पार्टी में नहीं हैं।
क ोई नहीं मानेगा कि समर्थक अपने आप ये सब कर रहे हैं। ये बात धूमल को समझनी चाहिए थी। अगर आलाकमान कल उन्हें मुख्यमंत्री बना भी दे तब भी वह अपना कद छोटा कर ही चुके हैं। उनके पास अभी भी मौका हैं कि वो खुद पहल करे और जीते हुए विधायक के नाम पर सहमति बनाने क ी पहल करे। नए मुख्यमंत्री क ो शपथ दिलाने क ा इंतजाम अपने हाथ में ले। उनका प्रदेश ही नहीं देश में भी बढ़ जाएगा। भाजपा ही नहीं दूसरी पार्टियों के लिए भी वह मिसाल बन जाते। सता तो आती जाती रहेंगी पर व्यक्तित्तत्व की टूटन खतरनाक होती हैं। धूमल इसी टूटन की ओर बढ़ रहे हैं।
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