शिमला। राजधानी के कोर एरिया में मालरोड़ पर भाजपा के करीबी एक कारोबारी की ओर सरेआम करोड़ों रुपयों की लागत से बहुमंजिला इमारत खड़ी कर देने के मामले में नगर निगम ने इस इमारत का बिजली पानी काटने के आदेश जारी कर दिए हैं। इसी के साथ कारोबारी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया हैं।
नगर निगम की आयुक्त के अदालत की ओर से यह आदेश शुक्रवार को जारी किए गए। नगर निगम ने इस इमारत के आगे के काम को बंद करने के आदेश दिए हैं। साथ ही मौके पर किसी तरह का निर्माण न हो पाए इसकी लिए निगम की ओर से एक कर्मचारी को भी इस इमारत में तैनात कर दिया हैं। इस कर्मचारी का पूरा खर्च भाजपा के करीबी उक्त कारोबारी को ही वहन करना होगा। निगमायुक्त पंकज राय ने कहा कि आदेशों की पालना की जाएगी। निगमायुक्त की अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि इस इमारत का निर्माण मंजूर नक्शे के हिसाब से नहीं हुआ हैं।
दिलचस्प यह है कि जब बहुमंजिली यह इमारत बन रही तो नगर निगम ने यह काम नहीं रूकवाया व निगमायुक्त की अदालत में मुकदमा चलता रहा और मौके पर निर्माण होता रहा। जानकारी के मुताबिक इस दौरान निगम की ओर से कम से कम चार बार नोटिस भी जारी किए गए । लेकिन काम नहीं रुका।
इस बहुमंजिली इमारत का अधिकांश काम पूरा हो जान के बाद निगम की ओर से यह आदेश हुए हैं। इस कारोबारी ने इस इमारत के मॉल की ओर के दुकानों को कपड़े व जूतों की नामी ब्रांडों को किराए पर भी दे दिया हैं।
निगम अधिकारियोें के मुताबिक सरेआम मालरोड़ पर नियमों को दरकिनार कर किए जा रहे इस निर्माण को लेकर नगर निगम के कई श्किायतें भी दी गई थी। इसके अलावा निगम के अधिकारियों ने भी निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान पाया गया कि इसकी यह इमारत मंजूर नक्शे के हिसाब से नहीं बनाई गई हैं। इसकी ऊंचाई भी मंजूर नक्शे से ज्यादा पाई गई हैं। चूंकि यह कोर एरिया हैं ऐसे में नक्शे के बाहर यहां पर कुछ नहीं हो सकता था।
नगर निगम के योजना वास्तुकार राजीव शर्मा ने कहा कि निगम ने नाटिस जारी कर काम रुकवाने को कहा गया था। लेकिन कारोबारी की ओर से काम जारी रखा गया । उसके बाद मामले को निगमायुक्त की अदालत मेें ले जाया गया व आज ये आदेश जारी किए गए हैं।
निगम अधिकारियों के मुताबिक इस इमारत में कई जगह खामिया हैं और इमारत का काम अभी पूरा नहीं हुआ हैं। बावजूद इसके इसमें कमर्शियल कारोबार शुरू हो गया हैं। निगम अधिनियम के मुताबिक ऐसा नहीं हो सकता हैं। जब तक निर्माण कार्य पूरा न हो जाए और
निगम से मंजूरी न मिल जाए तब तक किसी तरह की कमर्शियल गतिविधियां इमारत में शुरू नहीं की जा सकती। समझा जा रहा है कि उक्त कारोबारी को इसका लेंटर गिराना पड़ सकता हैं। दूसरा विक्लप यह है कि प्रदेश हाईकोर्ट में मुकदमा दायर कर अदालत से राहत ली जाए।
माल रोड़ पर ही हाईकोर्ट के समीप विलोबैंक होटल के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। रसूखदार लोगों के पास कई विकल्प होते हैं। अब देखना है कि इस मामले में जयराम सरकार किस तरह उक्त कारोबारी की मदद कर पाती हैं। याद रहे कि कोर एरिया में राष्टÑीय हरति पचांट ने हर तरह के निर्माण पर पांबदी लगाई हुई हैं। इस बावत निगम के अधिकारियों का कहना है कि इसका नक्शा 2008 में मंजूर किया गया था । अब निगम ने उक्त कारोबारी को मंजूर नक्शे के मुताबिक दोबारा नक्शा जमा कराने के आदेश दिए हैं व जितने भी उल्ल्ांघन किए गए हैं उनळें दूर करने के आदेश दिए हैं।
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