शिमला। बतौर भाजपा के संगठन मंत्री पवन राणा ने हिमाचल भाजपा में खूब उथल-पुथल मचाई थी और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके खेमे को पूरी तरह से तबाह कर गए थे। लेकिन दिल्ली भाजपा का संगठन मंत्री बनने के बाद उन्होंने दिल्ली में संभवत: काफी काम किया और दिल्ली में भाजपा 27 साल बाद जीत दर्ज कर पाई। अब दिल्ली में भाजपा की सरकार सत्ता में आ गई हैं।
अब बड़ा सवाल यही है कि पवन राणा के लिए अब भाजपा में क्या मुकाम है। पवन राणा आरएसएस से जुड़े रहे हैं। ऐसे में समझा जा रहा है कि उनका संगठन के स्तर पर कद बढ़ाया जाएगा।
लेकिन देखना ये है कि क्या हिमाचल की राजनीति में उनका दखल बराबर बना रहेगा या फिर उन्हें हिमाचल की राजनीति से खदेड़ दिया जाएगा। जब तक पवन राणा हिमाचल में भाजपा के संगठन मंत्री रहे वो तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और उनकी जुंडली के लिए हर काम करते रहे। पूरा आरएसएस जयराम के पक्ष में खड़ा रहा और जयराम को फेल करने में लगी ताकतों को निपटाने में पवन राणा मुख्य भूमिका निभाते रहे थे।
ऐसे में अगर आलाकमान व संघ ने उनकी हिमाचल की राजनीति में दखलअंदाजी बरकरार रखी तो जाहिर है प्रदेश में जयराम का कद छोटा नहीं हो पाएगा। जबकि धूमल खेमे को उनकी दखलअंदाजी की वजह से कई चुनौतियां का सामना करते रहना पड़ेगा। वैसे भी वर्तमान में धूमल परिवार को राजनीति तौर पर हाशिए पर धकेला हुआ हैं।
प्रदेश में भाजपा के अध्यक्ष की ताजपोशी लंबे समय से लंबित हैं। इस पद पर जिसभी खेमे के नेता की ताजपोशी होगी उससे साफ होगा कि प्रदेश में भाजपा की आगे दिशा किस खेमे के दम पर तय होगी।
हिमाचल में भाजपाइयों का विद्रोह दिल्ली में आलाकमान को अभी तक कांटे की तरह चुभता रहा हैं। अगर 2022 में भाजपा के नेता विद्रोह न करते तो संभवत:प्रदेश में आज भाजपा की सरकार होती। ये विद्रोह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा के रोके भी नहीं रूका था। इसका पूरे देश में भाजपा के भीतर बेहद गलत संदेश गया।
बेशक बाकी राज्यों में भाजपा जीत हासिल करती गई लेकिन आलाकमान को चुनौती तो हिमाचल से मिल ही गई थी। अभी भी हिमाचल में भाजपा में कई खेमे है जो पार्टी पर अपना वर्चस्व बरकरार रखने के लिए बेकरार है।
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