शिमला। देश के खजाने का आडिट करने वाले टॉप आडिटर CAG ने प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से सरकारी खजाने को तीन हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने की करामात को उजागर करने की स्टेट AG कार्यालय की टीम के प्रयासों को तबाह कर दिया ।
इस तीन हजार करोड़ में से प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने 280 करोड़ रुपए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले कारोबारी अदाणी की कंपनी को देने का अजीब फैसला कर रखा हैं। जबकि 2713 करोड़ रुपए हालैंड की हाइडल पॉवर प्रोजेक्ट्स लेने वाली ब्रेकल नामक कंपनी से बतौर डैमेज वसूलने थे। वीरभद्र सिंह सरकार ने इस रकम को माफ कर दिया था।इस तरह वीरभद्र सिंह सरकार ने सरकारी खजाने को 2994 करोड़ के करीब चूना लगाने का काम कर रखा हैं। ये तब है जब प्रदेश आर्थिक संकट से जूझ रहा है और सरकार प्रदेश के बेरोजगारों को बेरोजगारी भता देने में आनाकानी कर रही हैं। इसके अलावा 45 हजार करोड़ का कर्जा प्रदेश पर डाल दिया गया हैं।
इस कांड को ऑडिट के दौरान स्टेट AG कार्यालय की टीम ने उजागर कर भी दिया था । ये टीम कई महीनों तक एनर्जी निदेशालय में डटी रही ।एजी की टीम ने सारे कागजात खंगाले और पाया कि वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से 280 करोड़ रुपए अदाणी की कंपनी को देने और 2713 करोड़ रुपए ब्रेकल कंपनी से बतौर डैमेज लेने को माफ कर देने के फैसले से सरकारी खजाने को 2994 करोड़ का चूना लग गया हैं।
भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक AG कार्यालय ने एक विस्तृत ऑडिट ड्रॉफ्ट बनाकर इसे 31 मार्च 2017 को विधानसभा के पटल पर रखी सालाना आडिट रिपोर्ट में शामिल करने के लिए CAG कार्यालय दिल्ली को भेज दिया था। बताते है कि जब AG कार्यालय शिमला की ओर से वीरभद्र सिंह सरकार के अफसरों से इस बावत सवाल जवाब किए जा रहे थे तो उन्हें मालूम था कि ये तीन हजार करोड़ का कांड आडिट रिपोर्ट में आ जाएगा।जब ये सवाल जवाब हो रहे थे तो reporterseye.com का तब प्रदेश सरकार के संबंधित बाबूओं के साथ लगातार संपर्क था।
ऐसे में बताया जा रहा है कि CAG कार्यालय दिल्ली में जुगाड़ भिड़ाया गया और इस ऑडिट ड्राफ्ट को ड्रॉप कर दिया गया हैं। 31 मार्च 2017 को हिमाचल विधानसभा पटल पर रखी इस रिपोर्ट में तीन हजार करोड़ रुपए के इस कांड का कोई जिक्र नहीं हैं। पूरे मामले को सिरे से गायब कर दिया दिया हैं। ये अपने आप में चौंकाने वाला कांड हैं।
ये सही है कि प्रधानमंत्री मोदी के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं और देश के टॉप कारोबारी अदाणी के दोनों के साथ ही दोस्ताना रिश्ते हैं। इन रिश्तों का कोई रोल रहा हो ये सबूतों के अभाव में अभी साफ तौर पर कहा नहीं जा सकता । लेकिन आडिट रिपोर्ट से ऑडिट ड्राफ्ट गायब हो गया है ये सच हैं। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि AG कार्यालय शिमला की टीम ने पहली बार किसी कार्यालय का आडिट किया हो और आडिट ड्राफ्ट बनाकर CAG कार्यालय दिल्ली को भेजा हो।किसी भी राज्य में संबंधित एजी की टीम की ओर से किया जाना वाला ऑडिट प्रदेश स्तर में ही कई चरणों से गुजरता हैं तब कहीं जाकर CAG कार्यालय दिल्ली को मंजूरी के लिए भेजा जाता हैं। CAG कार्यालय दिल्ली से मंजूर होने के बाद ही इसे राज्य की सालाना ऑडिट रिपोर्ट में शामिल किया जाता हैं।
ऐसे में इस ऑडिट ड्राफ्ट को ड्रॉप करने के पीछे ये नहीं कहा जा सकता है कि ये नौसीखियों ने बनाकर CAG कार्यालय दिल्ली को भेजा हो। हालांकि प्रदेश सरकार के कई बाबू जब एजी कार्यालय शिमला से सवाल जवाब हो रहे थे ये शंका जाहिर कर भी रहे थे कि ये ऑडिट ड्रॉफ्ट ड्रॉप हो जाएगा।तरह तरह की अफवाहें तब सचिवालय के गलियारों में हुआ करती थी। लेकिन अब ये अफवाहें सच साबित हो गई हैं।
ये हैं मामला
प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने 2006 में 480-480 मेगावाट के जंगीथोपन व थोपन पवारी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के लिए अंतराष्ट्रीय निविदाएं मंगवाई थी व नीदरलैंड की कंपनी मेसर्स ब्रेकल कारपोरेशन एनवी ने 36.13 लाख रुपए प्रति मेगावाट के हिसाब सबसे ज्याद अपफ्रंट प्रीमियम देने की पेशकश की।
इस बीच प्रदेश में सरकार बदल गई और धूमल सरकार सता में आ गई। धूमल सरकार ने अप्रैल 2009 में ब्रेकल कारपारेशन के साथ प्री-इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट साइन किया।
एजी की टीम ने पाया कि प्री –इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट(क्लॉज 4) के मुताबिक आवंटन के समय अदा की गई अप फ्रंट मनी की राशि को जब्त किया जा सकता हैं अगर पीआइए के किसी प्रावधान/क्लॉज का उल्ल्ंघन किया जाता हैं। इसके अलावा सरकार के पास ये अधिकार भी सुरक्षित था कि अगर बोली या सेलेक्शन प्रक्रिया के दौरान गलत तथ्य पेश किए जाते हैं तो पीआईए के क्लॉज 48 के मुताबिक पीआइए को रदद किया जा सकता था।
धूमल सरकार में ब्रेकल की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों की पड़ताल विजीलेंस विभाग व आयकर विभाग ने की थी व जिसमें ढेरों महत्वपूर्ण जानकारियां गलत पाई गई थी। लेकिन धूमल सरकार ने न तो ये आवंटन रदद किया और न ही किसी को कोई सजा दी। उल्टे कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज का गठन् कर दिया व कमेटी की सिफारिश पर प्रोजेक्ट को ब्रेकल को आवंटित कर दिया।( इस मामले में हिमाचल हाईकोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता की 7 अक्तूबर 2009 की जजमेंट में सारे काले कारनामों को जिक्र हैं)
कागजातों को खंगालने पर एजी की टीम ने पाया था कि पॉलिसी पैरामीटर से संबंधित एग्रीमेंट,प्री इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट, इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना पर पीआइए के क्लॉज 49 के तहत मौद्रिक जुर्माना व प्रोजेक्ट को रदद किया जा सकता था ।पीआइए के मुताबिक प्रोजेक्ट को कमीशन करने के तीन साल बाद तक ब्रेकल को सौ फीसद इक्विटी पार्टीसिपेशन रखनी थी व क्लॉज 39(1) के मुताबिक इक्विटी पार्टीसिपेशन में किसी भी तरह के बदलाव पर पीआइए को रदद किया जाना था।
।दस्तावेजों में पाया गया कि प्री बिड कंडीशंस के मुताबिक ब्रेकल को दिसंबर 2006 में लेटर ऑफ अवार्ड मिलने के तुरंत बाद 50 फीसद अप फ्रंट प्रीमियम 173.42करोड़)जमा कराना था और बाकी प्रोजेक्ट के विभिन्न चरणों के पूरा होने पर जमा कराना था। दस्तावेजों में पाया गया कि ब्रेकल ने अप फ्रंट मनी जनवरी 2008 तक जमा नहीं कराया व धूमल सरकार ने जनवरी 2008 में ब्रेकल को शो कॉज नोटिस जारी कर दिया। इस बीच रिलायंस ने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर कर दी थी ।
ब्रेकल ने मैसर्स अदानी पॉवर से कर्ज लेकर अप्रैल 2009 में 280.69 करोड़ का अप फ्रंट मनी जमा करा दिया । (ये तो बाद में 2014 में सुप्रीम कोर्ट में सार्वजनिक हुआ कि ब्रेकल ने अदानी पॉवर से कर्जा लिया था।) जिस कंपनी के पास अपफ्रंट जमा कराने के लिए पैसे नहीं थे 2006 में वीरभद्र सिंह सरकार ने उस कंपनी को 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट रेवडि़यों की तरह बांट दिया । एजी की टीम ने पाया कि ब्रेकल ने सरकार से इजाजत लिए बगैर अपने फाइनेंसर अदानी पॉवर को इक्वटी पार्टनर (49 फीसद) बनाकर कंसोरटीयम में शामिल कर लिया ।ब्रेकल की ओर से अपने फाइनेंसर को इक्विटी पार्टनर में बदल देना व सरकार की मंजूरी के बगैर कंसोरटीयम को बदलना पीआइए की शर्तों के तहत गलत जानकारी देना था और विभिन्न क्लॉजों का उल्लंघन था।
2008 में ही बोली में दूसरे नंबर आए रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने फ्राड करने व गलत जानकारी देकर इतना बड़ा प्रोजेक्ट हासिल करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
इसक बाद हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2009 में ब्रेकल को आवंटित इस प्रोजेक्ट के फैसले को रदद कर दिया। ये प्रोजेक्ट दूसरे बोलीदाता (रिलायंस) को दी जानी हैं या नहीं,इसका फैसला सरकार पर छोड़ दिया था।धूमल सरकार ने हाईकोर्ट का ओदश आने के बाद ब्रेकल की ओर से जमा कराई गई 280.69 करोड़ की अप फ्रंट मनी जब्त नहीं की गई जबकि पीआइए व आईए के विभिन्न प्रावधानों में इसका प्रावधान किया गया था।
इसके बाद ब्रेकल व रिलायंस दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2014 में वीरभद्र सिंह सरकार को निर्देश दिए कि वो 2014 में आई बोली पर प्रक्रिया शुरू करे। हालांकि नई बोली को पड़ताल के बाद सही नहीं पाया गया जुलाई 2015 में इसे रदद कर दिया गया।
वीरभद्र सिंह सरकार ने अगस्त 2015 में इस मेगा प्रोजेक्ट को 346.85करोड़ के प्रीमियम पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर को आवंटित कर दिया।
एनर्जी निदेशालय ने मार्च 2014 में प्रोजेक्ट के कमीशन होने में नौ साल की देरी होने से सरकार को जो 12 प्रतिशत फ्री बिजली मिलनी थी उसका नुकसान हो गया व विभाग ने गणना कि ये नुकसान 2713.73 करोड़ रुपए बन रहा हैं। इसके अलावा एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना करने पर 280.69 करोड़ रुपए के अप फ्रंट मनी और उस पर ब्याज को जब्त करने का प्रस्ताव पेश किया। इस बावत सरकार ने अगस्त 2013 में कानून विभाग से राय मांगी थी व कानून विभाग ने इस बावत हरी झंडी दे दी थी। लेकिन ब्रेकल से न तो 2713.73 करोड़ रुपए वसूला गया और न ही 280.69 करोड़ जबत किए गए हैं।इसका जिक्र एजी की टीम की ओर से तैयार किए आडिट ड्राफ्ट में था।
पद्रेश सरकार ने जिस ब्रेकल कंपनी ने गलत जानकारियां व फ्राड कर ये 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट हासिल किया था उस पर मेहरबानी कर दी । इस मेहरबानी की एवज में अंदरखाते क्या डील हुई किसी को पता नहीं हैं।वीरभद्र सरकार ने सितंबर 2015 में ब्रेकल कंपनी की वजह से सरकार के खजाने को हुए 2713.73 करोड़ के नुकसान की भरपाई न करने का अजीब फैसला ले लिया ।
यही नहीं वीरभद्र सिंह सरकार ने अदानी पॉवर को 280.69 करोड़ का अप फ्रंट मनी भी वापस करने का फैसला ले लिया ।एजी की टीम ने इसका जिक्र भी आडिट ड्रॉफ्ट में किया था।
एजी यहां ये उल्लेखनीय हैं कि सरकार ने अदानी पॉवर से कभी भी अप फ्रंट मनी का 280 करोड़ रुपया नहीं लिया था। ये अप फ्रंट मनी ब्रेकल से लिया गया था। ब्रेकल ने अदानी से कर्ज लिया हो तो ये अलग मसला हैं। ऐसे में वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल द्धारा अदानी की ओर से लिए कर्ज को चुकाने का फैसला लेकर अजीब कारनामा कर दिया। अदानी से कर्जा लिया था ब्रेकल ने और उसे चुकता कर रही हैं प्रदेश की जनता ।जबकि कायदे से ब्रेकल व अदानी पॉवर के बीच का मामला था। ये खुलेआम क्रप्शन नहीं हैं तो फिर ये क्या हैं,ये बड़ा सवाल हैं।
वीरभद्र सिंह सरकार ने अंबानी की रिलायंस को 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट दे दिया। ब्रेकल से 2713.73 करोड़ का नुकसान लेने से मना कर दिया और अदानी पॉवर को 280 करोड़ लौटाने का फैसला ले लिया जो सरकार ने अदानी पॉवर से कभी लिए ही नहीं थे।देश के टॉप कारोबारियों पर से मेहरबानियां करना कई सवाल खड़े करती हैं।और कारोबारी भी वो जिनकी प्रधानमंत्री मोदी से नजदीकियां हैं और प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्री से नजदीकियां हें।
एजी की टीम ने पाया था कि वीरभद्र सरकार ने पीआइए के प्रावधानों,एग्रीमेंट की शर्तों की उल्लंघना के इन कारनामों को नजरअंदाज कर प्रदेश सरकार के खजाने को 2994.42 करोड़ का नुकसान पहुंचाया हैं। लेकिन कैग की सालाना ऑडिट रिपोर्ट से ये मामला ही गायब हो गया। अगले साल क्या होता हैं इस पर निगाह रहेगी।
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